विकासनगर: सीआरपीएफ की 62 बटालियन के टीकम सिंह चौहान 6 अप्रैल 2010 को वाहिनी की एक कंपनी छत्तीसगढ़ के दंतेवाड़ा जिले के जंगलों के समीप गश्त लगा रही थी, तभी लगभग 700 नक्सलियों ने उन पर घात लगाकर हमला किया और अंधाधुंध फायरिंग करने लगे. इस हमले में सिपाही टीकम सिंह ने साहस एवं वीरता का परिचय देते हुए बड़ी ही बहादुरी के साथ नक्सलियों का मुकाबला किया. उन्होंने अपनी जान की परवाह किए बिना आखिरी सांस तक लड़ते रहे और वीरगति को प्राप्त हुए.
नक्सली हमले में शहीद हुए थे टीकम
देहरादून के चकराता तहसील के जामुवा गांव के रहने वाले शहीद सीआरपीएफ जवान टीकम सिंह चौहान पांच बहनों और दो भाइयों में पांचवें नंबर के थे. 18 साल की उम्र में वे सीआरपीएफ में भर्ती हुए थे. अप्रैल 2009 में वे कमलेश चौहान के साथ शादी के बंधन में बंधे. अगले साल जनवरी 2010 में उनके घर पर बेटे ने जन्म लिया. बेटा करीब ढाई महीने का हुआ था कि उसके सिर से पिता का साया उठ गया. 6 अप्रैल 2010 को ताड़मेटला में गश्त पर निकले जवानों में टीकम सिंह भी शामिल थे, जो नक्सलियों का मुकाबला करते हुए शहीद हुए थे.
शहीद की पत्नी कमलेश चौहान की चुनौतियां
11 साल पहले नक्सली हमले में टीकम सिंह शहीद हो गए. टीकम सिंह की पत्नी कमलेश चौहान ने ढाई महीने के बच्चे का पालन पोषण किया और आज वह एक प्राइवेट स्कूल में पांचवी क्लास में पढ़ाई कर रहा है. कमलेश चौहान बताती हैं कि इन 11 सालों में कई समस्याओं से उन्हें जूझना पड़ा. पुत्र अमर सिंह चौहान के कभी बीमार पड़ने पर बड़ी समस्या आती थी. शहीद टीकम सिंह के परिवार के लोग बताते हैं कि सरकार ने समय-समय पर उनकी मदद की है. कमलेश चौहान अपने परिवार की देखरेख के साथ-साथ ही घर के काम भी बखूबी निभा रही हैं. साथ ही अपने पुत्र को सीआरपीएफ अधिकारी बनने के लिए प्रेरित कर रही हैं. ताकि वह भी देश की सेवा कर सकें.
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