ऋषिकेश: कोरोना वायरस के चलते विश्व प्रसिद्ध बदरीनाथ धाम के कपाट 15 मई को सुबह साढ़े चार बजे शुभ मुहूर्त में खुलेंगे. बदरीनाथ धाम के लिए तिल का तेल निकालने की परंपरा नरेंद्रनगर राजमहल में हुई. बदरीनाथ में ग्रीष्मकालीन पूजापाठ के दौरान बदरी विशाल के लेप और अखण्ड ज्योति के लिए तिल का तेल निकलाने की प्रक्रिया सदियों पुरानी है. जो आज भी टिहरी नरेंद्रनगर राजमहल में निभाई जाती है.
टिहरी के नरेंद्रनगर राजमहल में महारानी की अगुवाई में राज परिवार और डिमरी समाज की सुहागिन महिलाओं द्वारा तिल का तेल निकाला जाता है. लॉकडाउन के चलते महारानी और 7 सुहागिन महिलाओं ने पीले वस्त्र धारण कर तिलों को भूना, फिर सिलबट्टा में पीसकर तेल निकाला. निकाले गए तेल को एक घड़े में रखा जाता है, जिसे गाडू घड़ा कहा जाता है.
सुहागिनों ने निकाला तिल का तेल. ये भी पढ़ें:प्रदेश सरकार से नाखुश हैं राजधानी के मिठाई व्यापारी, जानिए क्यों है नाराजगी
ऋषिकेश से गढ़वाल के प्रमुख शहरों से होते हुए बदरीनाथ धाम के कपाट खुलने वाले दिन ही गाडू घड़ा यात्रा धाम पहुंचती थी. लेकिन कोरोना वायरस के चलते गाडू घड़ा यात्रा ग्रीन जोन से सीधे बदरीनाथ पहुंचेगी. गाडू घड़ा कलश यात्रा के दर्शन करने के लिए श्रद्धालुओं की भारी भीड़ जुटती थी. माना जाता है कि इसके दर्शन मात्र से बदरीनाथ धाम के दर्शन हो जाते हैं.
गाडू घड़ा का महत्व
उत्तराखंड में 400 सालों के गौरवमयी इतिहास को अपने में समेटे गाडू घड़ा यात्रा काफी मशहूर है. प्राचीन काल से ही गाडू घड़ा यात्रा को कपाट खुलने से पहले चारधाम यात्रा के प्रचार-प्रसार के लिए आयोजित किया जाता रहा है. साथ ही नरेंद्रनगर राजमहल गाडू घड़ा कलश यात्रा में भी शिरकत करता है.
तिल के तेल से भगवान बदरी विशाल का पूरी यात्रा काल के दौरान अभिषेक और श्रृंगार किया जाता है. इस पूरी यात्रा में बदरीनाथ के डिमरी समाज का सबसे अहम रोल होता है. प्राचीन काल से ही बदरीनाथ धाम की यात्रा का प्रचार-प्रसार का जिम्मा डिमरी समाज के लोगों के ही पास है. गाडू घड़ा यात्रा को चारधाम यात्रा का आगाज भी माना जाता है.