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उत्तराखंड का नया ट्रांसपोर्ट! जल्द पूरे होंगे रोपवे प्रोजेक्ट, गुलजार होंगे पहाड़, बढ़ेगी आमदनी

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Published : Jun 1, 2022, 9:28 PM IST

उत्तराखंड में तस्वीर को बदलने के लिए राज्य सरकार केंद्र के साथ मिलकर कई प्रोजेक्ट पर काम कर रही है, जिसमें एक रोपवे से जुड़े प्रोजेक्ट है. उत्तराखंड सरकार रोपवे से जुड़े करीब 4 छोटे और 10 बड़े प्रोजेक्ट पर विशेष फोकस कर रही है. ये रोपवे प्रोजेक्ट उत्तराखंड के विकास में मिल का पत्थर साबित हो सकते हैं और यहां से टूरिज्म को नई रफ्तार दे सकते हैं.

ropeway project in Uttarakhand
ropeway project in Uttarakhand

देहरादून:अगर सब कुछ ठीक रहा तो आने वाले 4 सालों में उत्तराखंड कई मायनो में बदल जाएगा. ऋषिकेश-कर्णप्रयाग रेल मार्ग का काम तो तेजी से चल ही रहा है. इसके अलावा केदारनाथ धाम समेत कई ऐसे धार्मिक और पर्यटन स्थलों पर रोपवे से जोड़ने की तैयारी है. ताकि बच्चे और बुजुर्ग आसानी से इन जगहों पर जा सकें और प्राकृतिक सौंदर्य का लुफ्त उठा सकें.

उत्तराखंड में कई ऐसे तीर्थ और पर्यटन स्थल हैं, जहां आसानी से पहुंच पाना मुमकिन नहीं है. यहां तक पहुंचने के लिए पर्यटकों को लंबी पैदल दूरी तय करना पड़ती है, जो हर किसी के बस की बात नहीं है, लेकिन आने वाले दिनों में ऐसा नहीं होगा. क्योंकि इन बातों को ध्यान में रखते हुए उत्तराखंड में कई रोपवे प्रोजेक्ट पर काम चल रहा है.

बदलेगी प्रदेश की तस्वीर: उत्तराखंड सरकार की मानें तो आने वाले तीन से चार सालों में प्रदेश के उन स्थलों पर रोपवे की सुविधा मिल जाएगी, जहां पर अभी लोगों को घंटों सफर तय करके जाना पड़ता है. लिहाजा रोपवे प्रोजेक्ट के धरातल पर उतरने के बाद न सिर्फ घंटों को मिनटों में सिमट जाएगा, बल्कि पर्यटकों को काफी आराम मिलेंगे और अच्छे से उत्तराखंड की हसीन वादियों का आनंद ले सकेंगे.
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पर्यटन को लगेंगे रोपवे से पंख: उत्तराखंड में चारधाम यात्रा पर हर कोई हेलीकॉप्टर से सफर नहीं कर सकता है, लेकिन हर किसी का सपना होता है कि वो आसमान से खूबसूरत वादियों पहाड़ों का आनंद ले और कम समय में ज्यादा खूबसूरत जगहों को एक्सप्लोर करे. इसके लिए सबसे बढ़िया जरिया रोपवे ही है, जिस पर उत्तराखंड सरकार लगातार काम कर रही है.

रोपवे के सर्वे का काम जारी:उत्तराखंड में पर्यटकों की बढ़ती भीड़ और उनकी परेशानियों को कम करने के लिए सरकार कई जगहों पर रोपवे के सर्वे करा चुकी है. इतना ही नहीं केंद्र सरकार के तमाम विभाग भी उत्तराखंड में रोपवे के करीब 10 बड़े प्रोजेक्ट का ब्लू प्रिंट तैयार कर चुके हैं, जिन्हें जल्द ही धरातल पर उतारा जाएगा. रोपवे के बन जाने से न सिर्फ उत्तराखंड में पर्यटकों की संख्या बढ़ेगी, बल्कि राज्य को राजस्व के साथ-साथ एक नई पहचान भी मिलेगी.

उत्तराखंड में मौजूद रोपवे:पहाड़ी राज्यों में अगर देखा जाए तो उत्तराखंड एक ऐसा पहला राज्य है, जहां बड़ी संख्या में पहले से ही रोपवे मौजूद है. मौजूदा समय में मनसा देवी हरिद्वार, चंडी देवी हरिद्वार, मसूरी, नैनीताल, सुरकंडा देवी टिहरी और चमोली के औली में फिलहाल रोपवे की सुविधा है. लेकिन अगर हम आपसे यह कहे कि आने वाले समय में देहरादून से मसूरी, गौरीकुंड से केदारनाथ, गोविंदघाट से हेमकुंड साहिब, जलीपानी से दीवाड़ा, कीर्ति खाल, भैरवगढ़ी और यमुनोत्री जैसे धामों में रोपवे का नाम सुनकर आपके दिमाग में भी एक पिक्चर तैयार हो जाती होगी. खुशनुमा मौसम, मूर्ति, ऊंचे पहाड़ और पहाड़ों से बीच बादल ये वो पल है, जो आप कभी भुला नहीं पाएंगे.

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चार बड़े प्रोजेक्ट: इन सभी अनुभवों को ताजा करने के लिए देहरादून से मसूरी और गौरीकुंड से केदारनाथ रोपवे का काम लगभग शुरू हो गया है. सरकार की मानें तो ये प्रोजेक्ट साल 2024 तक पूरा कर लिया जाएगा. राज्य सरकार सबसे पहले 4 बड़े प्रोजेक्ट पर काम कर रही है, जिसमें केदारनाथ, यमुनोत्री, हेमकुंड साहिब और देहरादून-मसूरी रोपवे में शामिल है.

एशिया का दूसरा सबसे लंबा रोपवे: देहरादून-मसूरी रोपवे एशिया का दूसरा सबसे लंबा रोपवे होगा. इसी प्रोजेक्ट की जिम्मेदारी कार्यदाई संस्था एनएचआई को दी गई है. इसके साथ ही पर्यटन विभाग इस पूरे काम को देख रहा है. ये रोपवे देहरादून के पुरुकुल गांव से लाइब्रेरी मसूरी के बीच बनाया जाएगा. इस रोपवे की कुल लंबाई 5.5 किमी होगी. एशिया का सबसे बड़ा रोपवे हॉन्गकॉन्ग के गोंगपिंग में है, जिसकी लंबाई 5.7 किमी है.
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समय ही होगी बचत: देहरादून-मसूरी रोपवे प्रोजेक्ट के बाद लोगों को काफी समय बचेगा. अभी देहरादून से मसूरी जाने में करीब एक घंटा लगता है, लेकिन इस प्रोजेक्ट के पूरे होने के बाद देहरादून से मसूरी महज 18 से 20 मिनट में पहुंचा जा सकेगा. इसके साथ ही पर्यावरण के लिहाज से भी यह रोपवे काफी कारगर साबित होगा. देहरादून-मसूरी रोपवे के जरिए हर एक घंटे में करीब दो हजार यात्री देहरादून से मसूरी पहुंच सकेंगे.

एमओयू साइन हुए: राज्य सरकार ने केदारनाथ, मसूरी, और ऋषिकेश से नीलकंठ तक के रोपवे प्रोजेक्ट की डीपीआर लगभग तैयार हो चुकी है. वहीं कई रोपवे प्रोजेक्ट का एमओयू साइन हो गया है. पर्यटन विभाग ने सड़क परिवहन निर्माण राजमार्ग मंत्रालय के साथ एमओयू साइन किया है, जबकि एनएचएआई को नोडल विभाग बनाया गया है.

केंद्र सरकार से मिली हरी झंडी:केंद्र सरकार की तरफ से कई प्रोजेक्ट को हरी झंडी मिल चुकी है, लेकिन अभी भी कई प्रोजेक्ट पर पर्यावरण मंत्रालय का रुख स्पष्ट नहीं है. लिहाजा राज्य सरकार अब केंद्र के विभागों की तरफ से आने वाली एनओसी का इंतजार कर रही है. जैसे ही केंद्रीय पर्यावरण मंत्रालय से उत्तराखंड को रोपवे बनाने की इजाजत मिलेगी. तभी गढ़वाल और कुमाऊं में रोपवे का निर्माण कार्य शुरू कर दिया जाएगा.
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उत्तराखंड सरकार में पर्यटन मंत्री सतपाल महाराज का कहना है कि पर्यटन को बढ़ावा देने और पर्यावरण को सुरक्षित रखने के लिए प्रदेश में कई प्रोजेक्ट पर काम कर रही है. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी लगातार उत्तराखंड को तवज्जो देते आए हैं. लिहाजा प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भी यह चाहते हैं कि केदारनाथ की यात्रा को और सुगम बनाने के लिए रोपवे का होना बहुत जरूरी है. क्योंकि अभी भी बहुत से ऐसे वर्ग हैं, जो केदारनाथ, मसूरी और यमुनोत्री समेत अन्य पर्यटक स्थलों पर नहीं जा पाते हैं.

रोपवे शुरू होने के बाद न केवल भगवान और भक्तों के बीच दूरी कम होगी, बल्कि राज्य को भी उसका फायदा होगा. फिलहाल मसूरी और केदारनाथ रोपवे का काम जल्दी शुरू करवा रहे हैं, ताकि तय समय पर इन कामों को पूरा कर लिया जाए. मंत्री सतपाल महाराज ने दावा किया है कि आने वाले समय में उत्तराखंड में बड़ी तेजी से पर्यटकों की संख्या बढ़ेगी. मंत्री सतपाल महाराज ने कहा कि ये कोई छोटे-मोटे प्रोजेक्ट नहीं हैं. इनके शुरू होने से पहले जमीन से लेकर आसमान तक तमाम सर्वे करवाए जाएंगे, लिहाजा किसी भी काम में ढिलाई नहीं बरती जाएगी और राज्य सरकार लगातार इस काम की मॉनिटरिंग कर रही है.

कई प्रोजेक्ट धरातल पर नहीं उतरे: पूर्व में अगर देखा जाए तो राज्य सरकार ने पहले भी कई रोपवे की घोषणाएं की हैं, जो अभी तक धरातल पर नहीं उतरे हैं. जिसमें 3 साल पहले चमोली स्थित हेमकुंड साहिब के लिए घांघरिया से हेमकुंड रोपवे निर्माण का काम अब तक शुरू नहीं हुआ है. यहां जाने के लिए श्रद्धालुओं को 19 किलोमीटर पैदल चलना पड़ता है.

घोषणाओं की हकीकत:इसके अलावा पौड़ी में भी 3 प्रस्ताव पूर्व में पर्यटन विभाग ने दिए थे, जिसमें पोखडा ब्लॉक जलपाड़ी दिवा डांडा और जयहरीखाल का सिर्फ सर्वेक्षण हुआ है. यहां पर भैरव मंदिर स्थित है. इसी वजह से यहां पर राज्य सरकार ने रोपवे बनाने की घोषणा की थी. फिलहाल यहां पर जाने के लिए श्रद्धालुओं को 7 किलोमीटर लंबा सफर तय करना पड़ता है. यहां का भी काम अब तक शुरू नहीं हुआ है.

शिलान्यास के बाद नहीं हुआ निर्माण:इसके साथ ही यमुना घाटी स्थित खरसाली गांव में तत्कालीन मुख्यमंत्री रमेश पोखरियाल निशंक ने भी रोपवे का शिलान्यास तो किया, लेकिन आज तक 4 किलोमीटर लंबे इस रोपवे का निर्माण नहीं हो पाया. इसकी लागत लगभग उस वक्त 70 करोड़ रुपए आंकी गई थी.

कागजों में ही कैद घोषणा: इसके साथ ही उत्तरकाशी में ही दयारा बुग्याल में भी रोपवे बनाने की घोषणा की गई थी, लेकिन यह घोषणा भी सिर्फ कागजों में ही कैद होकर रह गई. केदारनाथ मंदिर तक पहुंचाने वाला रोपवे का काम भी लगातार बयानबाजी में ही चल रहा है, लेकिन प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के आने के बाद राज्य सरकार ने इस में थोड़ी तेजी जरूर दिखाई है. फिलहाल डीपीआर और दूसरी जरूरतों का हवाला राज्य सरकार दे रही है.

नारायण दत्त तिवारी के समय अटकी योजना: इसके साथ ही चंपावत में भी 6 रोपवे की घोषणा तत्कालीन मुख्यमंत्री नारायण दत्त तिवारी ने की थी. वह भी आज तक पूरी नहीं हुई है. पिथौरागढ़ में भी रोपवे के काम का नक्शा जरूर बना, लेकिन धरातल पर चंडी का मंदिर और असुरचुला ध्वजा तक रोपवे का काम अब तक शुरू नहीं हुआ है.

इसके साथ ही अल्मोड़ा में भी तत्कालीन मुख्यमंत्री नारायण दत्त तिवारी ने रोपवे बनाने की घोषणा तो की थी, लेकिन वह भी अब तक पूरी नहीं हुई है. ऐसे में संशय इस बात पर है कि राज्य सरकार आने वाले सालों में जिन 10 बड़े प्रोजेक्ट और 40 छोटे प्रोजेक्ट बनाने की बात कर रही है. लेकिन, वो प्रोजेक्ट कब पूरे होंगे, यह देखना दिलचस्प होगा.

सरकार को रखना होगा पहाड़ों का भी ध्यान: वैसे उत्तराखंड की भौगोलिक स्थिति को देखें तो प्रदेश का 71.05 प्रतिशत क्षेत्र वन भूमि पर है. रोपवे बनने से बेहतर कनेक्टिविटी तो हो जाएगी, लेकिन सरकार को इस बात का ध्यान भी रखना पड़ेगा कि उत्तराखंड भूकंप की दृष्टि से बेहद संवेदनशील है. लिहाजा यहां के पहाड़ों पर लगातार हो रहे निर्माण कहीं आने वाले समय में खतरा ना बन जाए. उत्तराखंड में हर साल आने वाली आपदा, जंगल की वन अग्नि राज्य को हर साल बेहद नुकसान पहुंचाती है. ऐसे में राज्य सरकार को तमाम पहलुओं पर गहनता से विचार करना होगा.

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