देहरादून: नए राज्य बनने के बाद उत्तराखंड को स्वायत्त संस्थाओं से काफी उम्मीदें थी. उम्मीद की जा रही थी कि ये संस्थाएं लोगों को रोजगार देने के साथ ही सरकार को बड़ा राजस्व भी देगी, जिससे प्रदेश में विकास दर बढ़ेगी और उत्तराखंड विकास के नए आयाम छुएगा. लेकिन वक्त के साथ ये सपना टूटता चला गया. ये निगम कर्ज में डूबते चले गए और राज्य सरकार पर बोझ बन गए.
उत्तराखंड के लिए निगम की भूमिका सबसे ज्यादा अहम है. ऐसा इसलिए क्योंकि राज्य में मूलभूत सुविधाओं को आम जनता तक पहुंचाने के लिए निगमों को भी जिम्मेदारी दी गई है. उत्तराखंड पावर कॉरपोरेशन लिमिटेड (UPCL) को बिजली पहुंचाने की जिम्मेदारी दी गई है, तो पेयजल निगम को आम लोगों तक स्वच्छ पानी पहुंचाने का दायित्व दिया गया. कृषि क्षेत्र में उत्तराखंड बीज एवं तराई विकास निगम को बेहतर बीज तैयार करने की महत्वपूर्ण जिम्मेदारी दी गई है. प्रदेश के लिए बेहद महत्वपूर्ण पर्यटन के रूप में गढ़वाल मंडल विकास निगम (GMVN) और कुमाऊं मंडल विकास निगम (KMVN) काम कर रहा है.
इसके अलावा यातायात व्यवस्था को सुचारू करने के लिए उत्तराखंड परिवहन निगम जिम्मेदार है और सरकार ने इसका काम एक निगम को सौंपा है. कुल मिलाकर देखे तो प्रदेश में सरकार ने निगमों को ही आम लोगों की मूलभूत सुविधाएं दुरुस्त करने के लिए जिम्मेदारी दी है, लेकिन यह प्रदेश का दुर्भाग्य ही है कि राज्य में अधिकतर निगम बेहद खराब हालात से गुजर रहे हैं.
बिजली, पानी यातायात, पर्यावरण, कृषि और पर्यटन इन सभी सेक्टर को निगम देख रहे हैं, लेकिन हालात देखिए कि जिन निगमों को मालामाल होना चाहिए था, वह आज सरकार की दया का इंतजार कर रहे हैं. ऐसा नहीं कि यह निगम हमेशा से ही घाटे में रहे हो. कुछ निगम ऐसे हैं जिनका नाम प्रदेश ही नहीं देश भर में लिया जाता था. लेकिन आज वह भी प्रबंधन के चलते घाटे के दलदल में धंसते जा रहे हैं.
कुप्रबंधन, कुनीतियों और भ्रष्टाचार से बिगड़ी हालत:उत्तराखंड के निगमों में कुप्रबंधन ने इन्हें राजस्व के रूप में कमजोर किया है. यही नहीं आर्थिक रूप से हालात को बद से बदतर करने के लिए भी इनकी कुनीतियां ही जिम्मेदार रही है. इस सबसे बढ़कर भ्रष्टाचार के बोलबाले ने इन निगमों की वित्तीय स्थिति को और खराब किया है.