देहरादून: अखिल भारतीय अखाड़ा परिषद के अध्यक्ष महंत नरेंद्र गिरि का देवभूमि उत्तराखंड से खास लगाव रहा. धर्मनगरी हरिद्वार की शांत वादियां, यहां की आध्यात्मिक अनुभूति से अभिभूत थे. महंत नरेंद्र गिरि ने कोरोना संक्रमण के बीच कुंभ को सफल और सुरक्षित बनाने में विशेष भूमिका निभाई थी. महंत नरेंद्र गिरि हमेशा ही संतों के साथ हिंदू संस्कृति के प्रचार-प्रसार को लेकर काम करते रहते थे.
महंत नरेंद्र गिरि ने संत जीवन की शुरुआत उत्तर प्रदेश की थी, मगर उन्होंने हरिद्वार से अपने इस जीवन को एक नया रूप दिया. यहां वे अखिल भारतीय अखाड़ा परिषद राष्ट्रीय अध्यक्ष बने. अखाड़ा परिषद के पूर्व अध्यक्ष ज्ञानदास के कार्यकाल के बाद श्रीमहंत नरेंद्र गिरि की अध्यक्ष पद पर ताजपोई हुई थी. उन्हें इस पद की जिम्मेदारी 2016 में उज्जैन कुंभ में मिली थी. इस पद पर रहते हुए महंत नरेंद्र गिरि ने इस साल हरिद्वार में हुए कुंभ में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई. हालांकि ये कुंभ उनका आखिरी कुंभ रहा.
इस दौरान उन्होंने तमाम चुनौतियों से निपटते हुए सभी 13 अखाड़ों के साथ समन्वय और सामंजस्य स्थापित कर कोरोनाकाल में कुंभ को भव्य और दिव्य तरीके से संपन्न करवाया. महंत नरेंद्र गिरि ने अपने कुशल नेतृत्व के जरिये ऐसे दौर में दिव्य औप भव्य कुंभ को संपन्न करवाया जब हर कोई डरा हुआ था. पूरे कुंभ के दौरान कोई अप्रिय घटना नहीं घटी.
हरिद्वार कुंभ करवाने में महत्वपूर्ण योगदान:दरअसल, कुंभ का आयोजन कोरोना संक्रमण की दूसरी लहर के बीच हुआ था. बढ़ते संक्रमण को देखते हुए जनहित में नरेंद्र गिरि ने कुंभ को सांकेतिक कराने के फैसला लिया था. अखाड़ा परिषद के अध्यक्ष होने के नाते उन्होंने मेष संक्रांति (वैशाखी) के शाही स्नान के बाद कुंभ को सांकेतिक कराया था. हालांकि, उनको बैरागी संतों की नाराजगी भी झेलनी पड़ी थी. 27 अप्रैल का आखिरी चैत्र पूर्णिमा का बैरागियों का स्नान सांकेतिक हुआ था.
इसी बीच खुद महंत नरेंद्र गिरि 11 अप्रैल को कोरोना पॉजिटिव पाए गये थे, जिसके बाद वो एम्स ऋषिकेश में भर्ती रहे और वो सोमवती अमावस्या और मेष संक्रांति का शाही स्नान नहीं कर पाए थे. महंत नरेंद्र गिरि के संक्रमित आने के बाद अन्य संतों में भी हड़कंप मच गया था. उनके संपर्क में आए सभी संत आइसोलेट हो गए थे.