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दिव्य और भव्य कुंभ के ध्वजवाहक बने थे महंत नरेंद्र गिरि, देवभूमि से था गहरा लगाव

महंत नरेंद्र गिरि का निधन हो गया है. उनकी मौत की खबर से हरिद्वार का संत समाज सकते में है. गौरतलब है कि नरेंद्र गिरि देश की आध्यात्मिक परंपरा 13 अखाड़ों के संघ अखाड़ा परिषद के अध्यक्ष थे. महामंडलेश्वर के चयन में भी उनकी अहम भूमिका रहती थी.

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हरिद्वार कुंभ में महंत नरेंद्र गिरी

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Published : Sep 20, 2021, 8:25 PM IST

Updated : Sep 21, 2021, 3:06 PM IST

देहरादून: अखिल भारतीय अखाड़ा परिषद के अध्यक्ष महंत नरेंद्र गिरि का देवभूमि उत्तराखंड से खास लगाव रहा. धर्मनगरी हरिद्वार की शांत वादियां, यहां की आध्यात्मिक अनुभूति से अभिभूत थे. महंत नरेंद्र गिरि ने कोरोना संक्रमण के बीच कुंभ को सफल और सुरक्षित बनाने में विशेष भूमिका निभाई थी. महंत नरेंद्र गिरि हमेशा ही संतों के साथ हिंदू संस्कृति के प्रचार-प्रसार को लेकर काम करते रहते थे.

महंत नरेंद्र गिरि ने संत जीवन की शुरुआत उत्तर प्रदेश की थी, मगर उन्होंने हरिद्वार से अपने इस जीवन को एक नया रूप दिया. यहां वे अखिल भारतीय अखाड़ा परिषद राष्ट्रीय अध्यक्ष बने. अखाड़ा परिषद के पूर्व अध्यक्ष ज्ञानदास के कार्यकाल के बाद श्रीमहंत नरेंद्र गिरि की अध्यक्ष पद पर ताजपोई हुई थी. उन्हें इस पद की जिम्मेदारी 2016 में उज्जैन कुंभ में मिली थी. इस पद पर रहते हुए महंत नरेंद्र गिरि ने इस साल हरिद्वार में हुए कुंभ में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई. हालांकि ये कुंभ उनका आखिरी कुंभ रहा.

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इस दौरान उन्होंने तमाम चुनौतियों से निपटते हुए सभी 13 अखाड़ों के साथ समन्वय और सामंजस्य स्थापित कर कोरोनाकाल में कुंभ को भव्य और दिव्य तरीके से संपन्न करवाया. महंत नरेंद्र गिरि ने अपने कुशल नेतृत्व के जरिये ऐसे दौर में दिव्य औप भव्य कुंभ को संपन्न करवाया जब हर कोई डरा हुआ था. पूरे कुंभ के दौरान कोई अप्रिय घटना नहीं घटी.

हरिद्वार कुंभ करवाने में महत्वपूर्ण योगदान:दरअसल, कुंभ का आयोजन कोरोना संक्रमण की दूसरी लहर के बीच हुआ था. बढ़ते संक्रमण को देखते हुए जनहित में नरेंद्र गिरि ने कुंभ को सांकेतिक कराने के फैसला लिया था. अखाड़ा परिषद के अध्यक्ष होने के नाते उन्होंने मेष संक्रांति (वैशाखी) के शाही स्नान के बाद कुंभ को सांकेतिक कराया था. हालांकि, उनको बैरागी संतों की नाराजगी भी झेलनी पड़ी थी. 27 अप्रैल का आखिरी चैत्र पूर्णिमा का बैरागियों का स्नान सांकेतिक हुआ था.

इसी बीच खुद महंत नरेंद्र गिरि 11 अप्रैल को कोरोना पॉजिटिव पाए गये थे, जिसके बाद वो एम्स ऋषिकेश में भर्ती रहे और वो सोमवती अमावस्या और मेष संक्रांति का शाही स्नान नहीं कर पाए थे. महंत नरेंद्र गिरि के संक्रमित आने के बाद अन्य संतों में भी हड़कंप मच गया था. उनके संपर्क में आए सभी संत आइसोलेट हो गए थे.

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हरिद्वार से संतों ने जताया दुख: अखिल भारतीय अखाड़ा परिषद के अध्यक्ष एवं प्रयागराज बाघम्बरी पीठ के पीठाधीश्वर महंत नरेंद्र गिरि महाराज के निधन पर हरिद्वार के संत स्तब्ध हैं. हरिद्वार के धर्म जगत में शोक की लहर है. निरंजनी अखाड़े के सचिव एवं मां मनसा देवी ट्रस्ट के अध्यक्ष रविंद्र पुरी महाराज ने उनके निधन को संत समाज के लिए अपूर्णीय क्षति बताया है. हरिद्वार के संतों ने महंत नरेंद्र गिरि की मौत की जांच की मांग की है. संतों का कहना है कि नरेंद्र गिरि ने हाल ही में हरिद्वार आने की बात कही थी, वो आत्महत्या जैसा कदम नहीं उठा सकते.

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संतों में विशेष महत्व: महंत नरेंद्र गिरि पिछले करीब दो दशक से साधु संतों के बीच अहम स्थान रखते थे. प्रयागराज आगमन पर बडे़ नेता हों या फिर आला पुलिस-प्रशासनिक अधिकारी, वे महंत से आशीर्वाद लेने और लेटे हनुमान जी का दर्शन करने जरूर जाते रहे हैं.

निरंजनी अखाड़े से जुड़े थे नरेंद्र गिरि: नरेंद्र गिरि वर्तमान में अखिल भारतीय अखाड़ा परिषद के अध्यक्ष होने के साथ-साथ निरंजनी अखाड़ा के महासचिव भी थे. नरेंद्र गिरि ने ही डेरा सच्चा सौदा के प्रमुख गुरमीत राम रहीम सिंह, राधे मां, निर्मल बाबा, रामपाल, आसाराम और उसके बेटे नारायण साईं सहित 14 संतों को फर्जी संत घोषित किया था.

कब हुई थी निरंजनी अखाड़े की स्थापना: निरंजनी अखाड़े की स्थापना विक्रम संवत 960 कार्तिक कृष्णपक्ष के दिन गुजरात के मांडवी में हुई थी. जहां पर महंत अजि गिरि, मौनी सरजूनाथ गिरि, पुरुषोत्तम गिरि, हरिशंकर गिरि, रणछोर भारती, जगजीवन भारती, अर्जुन भारती, जगन्नाथ पुरी, स्वभाव पुरी, कैलाश पुरी, खड्ग नारायण पुरी, स्वभाव पुरी ने मिलकर अखाड़ा की नींव रखी. अखाड़े का मुख्यालय प्रयागराज में है. वहीं उज्जैन, हरिद्वार, त्रयंबकेश्वर और उदयपुर में भी अखाड़े ने अपने आश्रम बना रखे हैं. मौजूदा वक्त में 33 महामंडलेश्वर, 1000 के करीब साधु और 10 हजार नागा शामिल हैं.

Last Updated : Sep 21, 2021, 3:06 PM IST

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