देहरादून: बीते दो महीने से उत्तराखंड की राजनीति में खासकर बीजेपी संगठन में यह चर्चाएं तेज थी कि कभी भी हरिद्वार से विधायक मदन कौशिक की प्रदेश अध्यक्ष की कुर्सी छीन सकती है. शुक्रवार को ईटीवी भारत ने इसको लेकर एक खबर भी प्रकाशित की थी और शनिवार को ईटीवी भारत खबर पर मुहर लग गई. बीजेपी हाईकमान में मदन कौशिक को प्रदेश अध्यक्ष के पद से हटाकर केदारनाथ के पूर्व विधायक महेंद्र भट्ट को उत्तराखंड बीजेपी के प्रदेश अध्यक्ष की जिम्मेदारी सौंप दी है.
आखिर क्यों हटाया मदन कौशिक को?: मदन कौशिक को प्रदेश अध्यक्ष से हटाए जाने के बाद सिसायी गलियारों में ये चर्चा जोर से उठ रही है कि आखिरकार ऐसी कौन सी वजह थी जिस वजह से मदन कौशिक को तत्काल प्रभाव से हटाया गया है. क्या मदन कौशिक के धुर विरोधी जिस घेराबंदी में बीते कई महीनों से लगे हुए थे, वह अपने प्रयासों में कामयाब रहे या फिर चुनावों में जिस तरह से उनके ऊपर आरोप-प्रत्यारोप की बौछार हुई उसका वह शिकार हुए हैं. कुछ लोग तो यह भी कह रहे हैं कि पार्टी ने उन्हें टेंपरेरी ही अध्यक्ष पद दिया था, क्योंकि पार्टी हमेशा से चाहती थी कि पहाड़ी जनपद से ही कोई प्रदेश अध्यक्ष बने.
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संगठन और सरकार में दूरियां: वैसे देखा जाए तो उत्तराखंड विधानसभा चुनाव 2022 के बाद से ही कौशिक के खिलाफ माहौल बनाना शुरू हो गया था. संगठन और सरकार में दूरियां साफ नजर आ रही थीं. बार-बार देखने में आ रहा था कि मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी हरिद्वार जाते हैं, लेकिन मदन कौशिक मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी के कार्यक्रमों में शामिल ही नहीं हो रहे थे. कई बार इस तरह के चर्चाओं ने भी जोर पकड़ा है कि सरकार और संगठन का सही से तालमेल नहीं बैठ पा रहा है.
विरोधी गुट ने मौके पर मारा चौका:राज्य के कुछ बड़े नेता लगातार इस प्रयास में थे कि किसी तरह से मदन कौशिक की घेराबंदी की जाए. मदन कौशिक के धुर विरोधियों को एक मौका तब मिल गया, जब हरिद्वार से ही विधानसभा चुनाव के परिणाम बीजेपी की संभावनाओं के विपरीत आए. हरिद्वार जिले की ग्रामीण, ज्वालापुर और लक्सर विधानसभा सीट समेत कुमाऊं की जिन सीटों पर बीजेपी प्रत्याशी हारे, वहां से मदन कौशिक के खिलाफ आवाज उठने लगी.
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लक्सर सीट से बीजेपी प्रत्याशी संजय गुप्ता ने तो सीधे-सीधे अपनी हार के लिए मदन कौशिक को जिम्मेदार ठहराया था. इसके बाद कई और प्रत्याशियों ने भी मदन कौशिक के खिलाफ बयानबाजी की थी. इसके बाद से ही मदन कौशिक के खिलाफ माहौल बनता चला गया. संगठन ने इस पूरे मामले को लेकर जांच भी बैठाई थी. हालांकि उसकी रिपोर्ट संगठन ने सार्वजनिक नहीं की, लेकिन चुनावों के कुछ महीनों बाद जिस तरह से मदन कौशिक को प्रदेश अध्यक्ष पद से हटाया गया, उस पर जानकारों का कहना है कि संगठन ने यह फैसला उन तमाम आरोपों के बाद ही लिया है.
त्रिवेंद्र के बाद ही कौशिक की उल्टी गिनती शुरू हो गई थी: रमेश पोखरियाल निशंक के हरिद्वार से सांसद बनने के बाद से ही एक बड़ा धड़ा मदन कौशिक के खिलाफ हमेशा से आवाज उठाता रहा है. शायद यही कारण है कि उत्तराखंड में सबसे वरिष्ठतम नेताओं में से एक मदन कौशिक को त्रिवेंद्र सिंह रावत के मुख्यमंत्री पद से हटने के बाद से यह बताने की कोशिश की गई कि संगठन और सरकार में अगर वह नहीं भी रहेंगे तो भी संगठन और सरकार ठीक वैसे ही चलेगा.
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त्रिवेंद्र सरकार में मिली थी अहम जिम्मेदारी: 2017 में जब बीजेपी सरकार सत्ता में आई थी तो त्रिवेंद्र सिंह रावत को मुख्यमंत्री बनाया गया था. तत्कालीन त्रिवेंद्र सरकार के कार्यकाल में मदन कौशिक को कैबिनेट मंत्री के तौर पर न सिर्फ अहम मंत्रालय मिले थे, बल्कि सरकार का प्रवक्ता भी बनाया गया था. लेकिन त्रिवेंद्र के हटते ही मदन कौशिक के दिन भी लद गए. मदन कौशिक को सरकार के बाहर कर संगठन की जिम्मेदारी सौंपी गई. मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी के राज में तो मदन कौशिक का और बुरा हाल हो गया और उन्हें चार महीने बाद प्रदेश अध्यक्ष के पद से हटा दिया गया.