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लॉकडाउन इफेक्ट: दांव पर श्रमिकों की आजीविका, अर्थव्यवस्था की सुस्ती से बढ़ा जोखिम - लॉकडाउन का असर

कोरोना के खिलाफ जंग में लॉकडाउन के दौरान आम आदमी मुसीबतों से घिरा रहा. इन 53 दिनों में किसी का रोजगार छिन गया तो कोई खुद व्यवसायी होने के बाद भी लाचार और मजबूर है. सबसे बड़ा संकट श्रमिकों के ऊपर आया है. अर्थव्यवस्था की सुस्ती ने उनका जोखिम और बढ़ा दिया है.

देहरादून:
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Published : May 14, 2020, 8:15 AM IST

Updated : May 15, 2020, 11:09 AM IST

देहरादून: कोरोना वायरस के संक्रमण ने देश दुनिया में यूं तो लोगों की जिंदगियों को ही आफत में डाल दिया है, लेकिन महामारी की दस्तक ने कई दूसरे जोखिम भी पैदा कर दिए हैं. खासतौर पर असंगठित क्षेत्र के श्रमिकों के लिए कोविड-19 ने भुखमरी के हालात बना दिये हैं. हालांकि सरकारें इन हालातों को बदलने की कोशिशों में जुटी हुई हैं. असंगठित क्षेत्र के मजदूरों को लेकर ईटीवी भारत की स्पेशल रिपोर्ट...

अर्थव्यवस्था की सुस्ती से बढ़ा जोखिम.

देश में असंगठित क्षेत्र का मजदूर अपने भविष्य को लेकर आशंकित है. उत्तराखंड में कुल श्रमिकों का 90 फीसदी श्रमिक असंगठित क्षेत्र का ही है. लिहाजा राज्य में श्रमिकों की एक बड़ी संख्या लाचार है. चिंता की बात ये है कि प्रदेश सरकार को असंगठित क्षेत्र के श्रमिकों की सही संख्या तक का बोध नहीं है. जाहिर है कि ऐसे हालात में सरकार अनुमान के आधार पर ही राहत देने का प्रयास कर रही है.

वैसे अनुमानत: पांच लाख से ज्यादा असंगठित क्षेत्र के श्रमिक प्रदेश में मौजूद हैं. जबकि रजिस्टर्ड श्रमिकों की संख्या 2,36,000 के करीब है. उत्तराखंड सरकार में श्रम मंत्री हरक सिंह रावत की मानें तो दो लाख श्रमिकों के खाते में 2,000 रुपये सरकार की तरफ से डाले गए हैं, जबकि जिन श्रमिकों के श्रम कार्ड नहीं बने हैं उनको ऑनलाइन कार्ड भी मुहैया करवाए गए हैं. जिन श्रमिकों के पास राशन कार्ड नहीं हैं उन्हें भी राशन दिया जा रहा है. जिनके पास खाना बनाने की व्यवस्था नहीं है उन्हें खाने के पैकेट बांटे जा रहे हैं.

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उत्तराखंड में श्रमिकों की मदद करने के मकसद से राशन की आपूर्ति समेत अन्य योजनाओं का लाभ तो दिया जा रहा है लेकिन अब भी कई प्रदेश या बाहर के श्रमिक इन सहूलियतों से महरूम हैं. ऐसे में जिन्हें सुविधाएं नहीं मिल पा रहीं वो सरकार से आपूर्ति बेहतर करने की मांग कर रहे हैं तो सरकार की सहायता पाने वाले लोग सरकार का शुक्रिया भी कर रहे हैं.

असंगठित क्षेत्र के श्रमिकों की सबसे ज्यादा संख्या मैदानी जिलों में मौजूद है. इसीलिए श्रमिकों की सबसे ज्यादा खराब हालत भी मैदानी जिलों में ही है. वैसे रजिस्टर्ड श्रमिकों की संख्या से भी यहां की बेहद ज्यादा संख्या का अनुभव किया जा सकता है.

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श्रमिकों के आंकड़ों पर एक नजर

  • उत्तराखंड में रजिस्टर्ड श्रमिकों की संख्या 2,36,000.
  • प्रदेश में पंजीकृत कारख़ाने 3,450 हैं, जिसमें 5 लाख से ज्यादा श्रमिक हैं.

जिलेवार रजिस्टर्ड श्रमिकों की संख्या

जिला श्रमिकों की संख्या
देहरादून 71637
उधम सिंह नगर 51628
हरिद्वार 41472
अल्मोड़ा 13510
उत्तरकाशी 1937
चंपावत 4017
चमोली 16072
टिहरी 14197
नैनीताल 38776
पौड़ी 20973
पिथौरागढ़ 16746
बागेश्वर 3872
रुद्रप्रयाग 6355

ऐसा नहीं है कि असंगठित क्षेत्र के श्रमिकों को लेकर हर तरफ से निराशा हो. पीएम मोदी और राज्य सरकारों की अपील के बाद कई व्यवसाई ऐसे भी हैं जो अर्थव्यवस्था की मार पड़ने के बावजूद भी अपने श्रमिकों को भुगतान कर रहे हैं. देहरादून के कारोबारी अनिल चड्ढा श्रमिकों के प्रति संवेदनशीलता जताते हुए कहते हैं कि उनके पास करीब 12 श्रमिक काम कर रहे हैं और वे सभी को उनका वेतन दे रहे हैं. अनिल चड्ढा कहते हैं कि ऐसे बुरे दौर में भी वे श्रमिकों के साथ हैं. हालांकि काम-धंधे बंद होने से नुकसान बढ़ रहा है, जिसे ज्यादा समय तक सहना मुश्किल है. ऐसे में राज्य सरकार को व्यवसायियों के लिए जल्द कोई कदम उठाना चाहिए ताकि वह श्रमिकों के प्रति अपनी जिम्मेदारी को ऐसे ही निभाते रहें.

Last Updated : May 15, 2020, 11:09 AM IST

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