देहरादून: उत्तराखंड में विकास की रफ्तार की कीमत आज जोशीमठ चुका रहा है. जोशीमठ में लगातार हो रहे भू-धंसाव से लोग डरे हुए हैं. सड़कों और घरों में पड़ी दरारें चौड़ी होती जा रही हैं. जोशीमठ के साथ ही उत्तराखंड के कई और शहर एवं गांव भी विनाश की भेंट चढ़ते हुए दिख रहे हैं. हालांकि देर से ही सही लेकिन सरकार और प्रशासन नींद से जागा तो सही और टूटते पहाड़ों की बचाने की शुरुआत तो हुई. वहीं, वैज्ञानिक भी अब प्रदेश के संवेदनशील क्षेत्रों और लूज रॉक मैटेरियल पर बसे गांवों और कस्बों का दोबारा से सर्वे कराए जाने पर जोर दे रहे हैं, ताकि भविष्य के बड़े खतरों को समय रहते डाला जा सके.
उत्तराखंड विषम भौगोलिक परिस्थितियों वाला राज्य है. इस वजह से यहां अक्सर लोगों को आपदाओं का सामना करना पड़ता है. 2013 की केदारनाथ आपदा हो या फिर उत्तरकाशी में वरुणावत भूस्खलन की त्रासदी, ये वो जख्म हैं जो आजतक नहीं भरे हैं. वहीं अब जोशीमठ में बने हालात ने एक बार फिर पुराने हादसों पर सोचने को मजबूर कर दिया है. उत्तराखंड के कई गांवों में जोशीमठ जैसे हालात सालों से बने हुए है. वहीं कुछ गांव ऐसे है, जहां आज नहीं तो कल इस तरह के खतरों का सामना करना पड़ेगा.
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वीडियो हिमालय भूविज्ञान संस्थान (wadia institute of himalayan geology) देहरादून के पूर्व हिमनद वैज्ञानिक डॉ डीपी डोभाल का कहना है कि प्रदेश में तमाम शहर और गांव लूज रॉक मैटेरियल पर बसे हुए हैं. यहीं कारण है कि पहाड़ों में कई भी थोड़ी बहुत हलचल होती है तो संवेदनशील क्षेत्रों या फिर लूज रॉक मैटेरियल पर बसे घरों को सीधे नुकसान पहुंचता है यानी वहां उस भूमि पर बने तमाम घर जमींदोज हो जाते हैं. जिसका जीता जागता उदाहरण इन दिनों प्रदेश के जोशीमठ शहर में दिखाई दे रहा है. लिहाजा, जोशीमठ शहर जैसी स्थिति प्रदेश के किसी अन्य क्षेत्र में न हो इसके लिए वैज्ञानिक अभी से ही उन तमाम क्षेत्रों का शुरू से सर्वे कराए जाने की बात कह रहे हैं.
पहाड़ में हो रही हलचल आपदाओं का कारण: वैज्ञानिक डॉ डीपी डोभाल का कहना है कि उत्तराखंड के पहाड़ काफी युवा स्थिति में है, वो लगातार बढ़ रहे हैं. ऐसे में पहाड़ों में लगातार हलचल देखी जा रही है. लिहाजा प्रदेश के पर्वतीय क्षेत्रों में लगातार हो रही हलचलों के चलते प्रदेश के तमाम संवेदनशील क्षेत्रों में आपदा जैसे हालात बनते रहे हैं. डॉ डीपी डोभाल के मुताबिक पहाड़ में हो रही हलचलों की वजह से भूस्खलन जैसी घटनाएं भी देखी जा रही है. लिहाजा प्रदेश के जिन भी संवेदनशील क्षेत्रों और लूज रॉक मैटेरियल पर गांव या फिर कस्बे बसे हुए हैं, उन सभी क्षेत्रों का नए सिरे से सर्वे कराए जाने की जरूरत है.
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4500 फुट से अधिक ऊंचाई पर खतरा ज्यादा: डॉ डीपी डोभाल के अनुसार पहले प्रदेश के 3000 से 3500 फीट तक ऊंचाई वाले क्षेत्रों में भी अच्छी खासी बर्फबारी देखी जाती रही है, लेकिन समय के अनुसार बर्फबारी का क्षेत्र धीरे-धीरे ऊपर की ओर खिसकता चला गया. लिहाजा अब जिन क्षेत्रों में हल्की-फुल्की बर्फबारी होती है, उन क्षेत्रों में बसावट काफी अधिक बढ़ गई है. यानी प्रदेश के 5000 फुट से ऊपर भी लोगों ने अपना बसेरा बना लिया है और इन सभी क्षेत्रों की स्थिति यह है कि ये सभी क्षेत्र लूज रॉक मैटेरियल पर स्थित है. ऐसे में 4500 फुट से अधिक ऊंचाई पर मौजूद गांव या कस्बों का नए सिरे से सर्वे कराए जाने की आवश्यकता है. ताकि जोशीमठ शहर जैसी दृष्टि भी उन गांवों कस्बों में ना हो.