देहरादून:देवभूमि उत्तराखंड अपने धामों और मंदिरों के लिए विश्व विख्यात है. यही कारण है कि प्रदेश में हर साल देश-विदेश से आने वाले श्रद्धालुओं का तांता लगा रहता है. प्रदेश की राजधानी देहरादून में भी हरे-भरे जंगलों के बीच एक ऐसा ही प्राचीन सिद्धपीठ है, जहां आकर एक ओर लोगों के मन को शांति मिलती है. वहीं दूसरी ओर दिल से मांगी गई हर दुआ भी कबूल होती है.
उत्तराखंड की राजधानी देहरादून एक खूबसूरत शहर होने के साथ ही आस्था का केंद्र भी है. यहां विश्व के 84 सिद्ध पीठों में से चार सिद्ध पीठ मौजूद हैं. जिसमें लक्ष्मण सिद्ध, कालू सिद्ध, मानक सिद्ध और मांडू सिद्ध मंदिर शामिल हैं. इन चारों सिद्ध पीठों का अपना एक अलग ही इतिहास है. मान्यता है कि यहां सच्चे मन से मांगी गई हर मनोकामना पूर्ण होती है. इन्हीं चार सिद्ध पीठों में सबसे प्रसिद्ध है लक्ष्मण सिद्ध मंदिर.
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देहरादून शहर से 12 किलोमीटर की दूरी पर स्थित लक्ष्मण सिद्धपीठ की अपनी ही भव्यता है. यह मंदिर महृषि अत्री और उनकी पत्नी अनुसूया के पुत्र भगवान दत्तात्रेय के 84 सिद्ध पीठों में से एक है. इसका जिक्र श्रीमद्भागवत कथा में भी मिलता है. वहीं मान्यता है कि इसी स्थान पर राजा दशरथ के बेटे लक्ष्मण ने ब्रह्म हत्या के दोष से मुक्ति पाने के लिए तप किया था.
लक्ष्मण सिद्ध मंदिर के इतिहास के बारे में मंदिर के पुरोहित बताते हैं कि भगवान राम के छोटे भाई लक्ष्मण ने मेघनाद का वध करने के बाद ब्रह्म हत्या के दोष से मुक्ति पाने के लिए कुछ समय तक भगवान दत्तात्रेय के इसी सिद्ध पीठ में संत रूप में कठोर तपस्या की थी. जिसके बाद से इस सिद्ध पीठ को लक्ष्मण सिद्ध के नाम से जाना जाने लगा.
भगवान दत्तात्रेय के 84 सिद्ध पीठों में से एक इस लक्ष्मण सिद्ध पीठ को लेकर लोगों में अटूट आस्था है. यही कारण है कि इसके दर्शन के लिए हर साल दूर-दूर से श्रद्धालु यहां पहुंचते हैं. मंदिर पहुंचे श्रद्धालु बताते हैं कि वे कई सालों से इस मंदिर में आ रहे हैं. वे कहते हैं कि जब भी उन्होंने यहां आकर सच्चे मन से कोई मनोकामना की है, उनकी वह मनोकामना जरूर पूरी हुई है.
लक्ष्मण सिद्ध मंदिर में हर रविवार को विशाल भंडारे का आयोजन किया जाता है. यह भंडारा मनोकामना पूर्ण होने पर श्रद्धालुओं की ओर से कराया जाता है. बताया जाता है कि इस भंडारे को करवाने के लिए कई महीनों पहले से बुकिंग लेनी होती है. लोगों की आस्था का केंद्र होने के साथ-साथ यह मंदिर पर्यटन स्थल के रूप में भी विकसित हो रहा है. जिस कारण श्रद्धालुओं व पर्यटकों का आकर्षण इस क्षेत्र में बढ़ रहा है. वार्षिक मेले के दौरान हजारों की संख्या में भक्त इस मंदिर तक पहुंचते हैं.