देहरादून: उत्तराखंड में हिमाचल की तर्ज परभू-कानून(land law) की मांग इन दिनों सोशल मीडिया पर सबसे ज्यादा ट्रेंड(trend) कर रही है. पहली बार फेसबुक, इंस्टाग्राम(Instagram)पर कोई राजनीतिक मुद्दा इतना गरमा रहा है. इससे उत्तराखंड की इस भू-कानून(Uttarakhand Land Law) की मांग में उन लोगों को भी ऊर्जा मिली है, जो पिछले लंबे समय से इसकी लड़ाई लड़ रहे हैं.
युवाओं द्वारासोशल मीडिया(social media)पर चलाए जा रहे इस अभियान में 1 जुलाई को अपने घर पर 15 मिनट के सांकेतिक धरने की अपील की गई है. जिसके बाद यह कैंपेन तेजी से आगे बढ़ने वाला है. आइये आपको बताते हैं क्या है भू-कानून और इससे क्या लाभ मिलेगा.
छाया भू-कानून की मांग
यह पहली बार नहीं है जब उत्तराखंड का कोई राजनीतिक मुद्दा इंस्टाग्राम पर ट्रेंड कर रहा है. इंस्टाग्राम युवाओं का पसंदीदा प्लेटफॉर्म है. इस इस पर ज्यादातर युवा अपना समय बिताते हैं. अगर राजनीतिक मुद्दों की बात करें तो यह अक्सर ट्विटर पर सिमट कर रह जाता है, लेकिन इस बार उत्तराखंड के युवाओं ने भू-कानून की मांग की जिम्मेदारी अपने हाथ में ले ली है. इस मुहिम को ट्वीट से आगे फेसबुक और इंस्टाग्राम तक ले गये हैं.
यही वजह है कि पिछले कुछ दिनों से हर सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर भू-कानून का मुद्दा ही छाया हुआ है. भू-कानून को लेकर चलाया जा रहा हैशटैग ट्रेंड कर रहा है. दरअसल, खाली होते उत्तराखंड के गांव, कम होते रोजगार और पलायन के बाद यहां पर लगातार बाहरी लोगों का आगमन चरम पर है, जिसके कारण यहां बड़ी संख्या में जमीनें खरीदी और बेची जा रही हैं.
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उत्तराखंड में हिमाचल की तरह एक सख्त भू-कानून की मांग को लेकर पिछले कई सालों से अभियान चला रहे सागर रावत बताते हैं कि यह लड़ाई उत्तराखंड के जल-जंगल-जमीन, संस्कृति, रोटी-बेटी और हक हकूक की लड़ाई है. वहीं भू-कानून को लेकर उत्तराखंड के कुमाऊं से आने वाले आरजे पंकज जीना ने भी इंस्टाग्राम पर भू-कानून को लेकर कैंपेन शुरू किया हुआ है.
इसके अलावा ट्विटर, फेसबुक पर भी #उत्तराखंड_मांगे_भू_कानून बहुत ज्यादा ट्रेंड कर रहा है. पिछले दो दिन से सोशल मीडिया पर भू-कानून के नाम से हैशटैग छाया हुआ है. वहीं कई युवा संगठन इस कैंपेन को सोशल मीडिया पर चला रहे हैं.
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गढ़-कुमाऊं संगठन ने पूरे दिन भू-कानून को लेकर सोशल मीडिया पर पोस्ट किये. वहीं इसके अलावा लोकगीत, पोस्टर और एनिमेशन के जरिये युवा इस मुहिम को ट्विटर, फेसबुक और इंस्टाग्राम पर चला रहे हैं. 1 जुलाई को इस मुहिम को अगले स्तर पर ले जाने के लिए सभी से सोशल मीडिया पर अपने ही घर पर 15 मिनट का सांकेतिक वर्चुअल धरना देने की अपील की गई है.
क्या होता है भू-कानून और उत्तराखंड में क्या है इसका इतिहास
भू-कानून का सीधा-सीधा मतलब भूमि के अधिकार से है. यानी आपकी भूमि पर केवल आपका अधिकार है न की किसी और का. जब उत्तराखंड बना था तो उसके बाद साल 2002 तक बाहरी राज्यों के लोग उत्तराखंड में केवल 500 वर्ग मीटर तक जमीन खरीद सकते थे. वर्ष 2007 में बतौर मुख्यमंत्री बीसी खंडूड़ी ने यह सीमा 250 वर्ग मीटर कर दी. इसके बाद 6 अक्टूबर 2018 को भाजपा के मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र रावत एक नया अध्यादेश लाए, जिसका नाम 'उत्तरप्रदेश जमींदारी विनाश एवं भूमि सुधार अधिनियम,1950 में संशोधन का विधेयक' था. इसे विधानसभा में पारित किया गया.
इसमें धारा 143 (क), धारा 154(2) जोड़ी गई. यानी पहाड़ों में भूमि खरीद की अधिकतम सीमा को समाप्त कर दिया गया. अब कोई भी राज्य में कहीं भी भूमि खरीद सकता था. साथ ही इसमें उत्तराखंड के मैदानी जिलों देहरादून, हरिद्वार, यूएसनगर में भूमि की हदबंदी (सीलिंग) खत्म कर दी गई. इन जिलों में तय सीमा से अधिक भूमि खरीदी या बेची जा सकेगी.