देहरादून: बैडमिंटन की विश्व चैंपियनशिप में पहाड़ के लाल ने कमाल कर दिखाया है. स्पेन के ह्यूएलवा में चल रही बैडमिंटन की विश्व चैंपियनशिप में लक्ष्य सेन ने ब्रॉन्ज मेडल हासिल किया है. अल्मोड़ा के 20 साल के इस खिलाड़ी को शनिवार को हमवतन किदांबी श्रीकांत से बेहद करीबी सेमीफाइनल में 17-21, 21-14, 21-17 से हार का सामना करना पड़ा.
सिंगल्स के सेमीफाइनल में लक्ष्य सेन का मुकाबला श्रीकांत से हुआ. ये रोमांचक मुकाबला मुकाबला एक घंटे नौ मिनट तक चला. लक्ष्य विश्व प्रतियोगिता में पहली बार खेलते हुए पुरुष एकल में पदक जीतने वाले प्रथम भारतीय खिलाड़ी बन गये हैं.
विश्व बैडमिंटन चैंपियनशिप में लक्ष्य ने हासिल किया ब्रॉन्ज मेडल लक्ष्य सेन ने बार्सिलोना से ईटीवी भारत को भेजा अपना संदेश:स्पेन के खूबसूरत शहर बार्सिलोना से ईटीवी भारत के बात करते हुए लक्ष्य सेन ने कहा कि वो अपनी इस सफलता से खुश हैं. वो भविष्य में भी देश को अपने खेल से खुशी के और पल दे सकें इसकी पूरी कोशिश करेंगे. लक्ष्य ने पूरे देश के खेल प्रेमियों और खासकर उत्तराखंड और अल्मोड़ा के लोगों का शुक्रिया अदा किया.
लक्ष्य के पिता भी गए थे स्पेन:इस महत्वपूर्ण प्रतियोगिता के लिए लक्ष्य सेन के पिता और कोच डीके सेन भी स्पेन पहुंचे थे. ईटीवी भारत ने जब उनसे बात की तो उस वक्त वो बार्सिलोना में थे. डीके सेन ने कहा कि वो लक्ष्य के प्रदर्शन से खुश हैं. वो चाहते हैं कि लक्ष्य इसी तरह अंतरराष्ट्रीय प्रतियोगिताओं में शानदार प्रदर्शन करते रहें.
बता दें लक्ष्य को बैडमिंटन विरासत में मिला है. वह उत्तराखंड के अल्मोड़ा से आते हैं और उनके दादाजी वहां बैडमिंटन खेला करते थे. उनके पिता डीके सेन भी बैडमिंटन कोच हैं, लेकिन लक्ष्य के खेल की ललक जगी अपने भाई चिराग को देखकर. चिराग 13 साल की उम्र में नेशनल रैंकर बन गए थे. घर में बैडमिंटन का माहौल था और फिर बड़े भाई को देखकर लक्ष्य ने भी इस खेल में रुचि दिखाई. उनके दादाजी जब खेलने जाते तो वह लक्ष्य को अपने साथ ले जाते और फिर पिता ने उनको इस खेल का बारीकियां सिखानी शुरू कर दीं.
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2010 लक्ष्य सेन के लिए जीवन बदलने वाला साल कहा जा सकता है. इस साल वह बेंगलुरू में एक जूनियर स्तर का टूर्नामेंट खेल रहे थे. यहां भारत के महान बैडमिंटन खिलाड़ी प्रकाश पादुकोण और भारत के पूर्व कोच विमल कुमार की नजरें उन पर पड़ीं. लक्ष्य के साथ उनके भाई चिराग भी थे, लेकिन विमल और पादुकोण दोनों को लक्ष्य का खेल ज्यादा भाया. चिराग का प्रकाश पादुकोण की अकादमी में चयन हुआ लेकिन लक्ष्य सेन भी वहां रहना चाहते थे. विमल को लगा कि वह अभी काफी युवा हैं लेकिन उनकी प्रतिबद्धता और जुनून को देखकर वह मान गए.
लक्ष्य ने अल्मोड़ा में सीखे बैडमिंटन के गुर
15 साल की उम्र में लक्ष्य सेन ने नेशनल जूनियर अंडर-19 का खिताब अपने नाम किया. 2015 में लक्ष्य ने अंडर-17 नेशनल का खिताब जीता. 2016 में उन्होंने दोबारा अंडर-19 में गोल्ड मेडल अपने नाम किया. उन्होंने 17 साल की उम्र में 2017 में सीनियर नेशनल फाइनल्स खेला और खिताब जीता. 2018/19 में वह दोबारा सीनियर नेशनल फाइनल्स में खेले लेकिन इस बार उनके हिस्से रजत पदक आया. जूनियर स्तर पर लक्ष्य कमाल दिखा रहे थे. 2018 में एशियाई जूनियर चैंपियनशिप में स्वर्ण पदक जीता. उन्होंने जूनियर विश्व चैंपियन थाईलैंड के विटिड्सारन को को हराया. उन्होंने 2018 में यूथ ओलिंपिक गेम्स में रजत पदक भी जीता.
उत्तराखंड के अल्मोड़ा से हैं लक्ष्य सेन
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अब इस युवा खिलाड़ी ने बीडब्ल्यूएफ विश्व चैंपियनशिप में अपने करियर में बड़ी उपलब्धि हासिल की है. निश्चित तौर पर लक्ष्य को पुरुष वर्ग में भारत के अगले सितारे के रूप में देखा जा सकता है. उन्होंने बताया है कि वह इस काबिल हैं.
उत्तराखंड के हैं लक्ष्य सेन, अल्मोड़ा है जन्मस्थली
भारत के स्टार बैडमिंटन खिलाड़ी लक्ष्य सेन उत्तराखंड के हैं. लक्ष्य का जन्म अल्मोड़ा में हुआ. बंगलौर में इन्पायर्ड इंडियन फेडरेशन के समारोह में लक्ष्य को शानदार प्रदर्शन के लिए यूथ आईकॉन ऑफ द ईयर का सम्मान भी दिया गया है. लक्ष्य के पिता डीके सेन भी बैडमिंटन कोच हैं. मां निर्मला धीरेन सेन ने भी बेटों के खेल और उनकी सफलता की लिए बहुत कुर्बानी दी है. लक्ष्य के बड़े भाई चिराग सेन भी भारतीय बैडमिंटन खिलाड़ी हैं.
अपने पिता डीके सेन के साथ लक्ष्य सेन
क्या उत्तराखंड सरकार करेगी प्रोत्साहित: लक्ष्य सेन कर्नाटक की राजधानी बेंगलुरू में प्रकाश पादुकोण की अकादमी में ट्रेनिंग लेते हैं. उत्तराखंड के अनेक खिलाड़ी वहां प्रशिक्षण लेते हैं. उम्मीद है इस शानदार प्रदर्शन के बाद उत्तराखंड सरकार भी बैडमिंटन को लेकर जागरूक होगी. सरकार अगर हैदराबाद की गोपींचद अकादमी और बैंगलुरू की प्रकाश पादुकोण अकादमी जैसी सुविधाएं यहां खड़ी कर दे तो देश और लक्ष्य सेन की तरह और भी बड़े बैडमिंटन सितारे मिल सकते हैं.
बैडमिंटन के जानकारों का कहना है कि मुख्य समस्या अकादमी के लिए जमीन मिलने और इंफ्रास्ट्रक्चर खड़ा करने में आती है. उत्तराखंड की वर्तमान धामी सरकार लक्ष्य सेन और उनके जैसे उत्तराखंड के अंतरराष्ट्रीय खिलाड़ी और डीके सेन जैसे कोच से अनुभव लेकर अंतरराष्ट्रीय स्तर की अकादमी खोल सकती है, जिससे उत्तराखंड के नौनिहालों को ट्रेनिंग के लिए हैदराबाद या बैंगलुरू न जाना पड़े.