देहरादून:दिल्ली में साल 2012 में हुए निर्भयाकांड के बाद महिलाओं से जुड़े किसी भी अपराध में पीड़ित पक्ष को सरकार की ओर से सहायता धनराशि का प्रावधान है. लेकिन दुर्भाग्यवश इस विषय में जागरूकता की कमी के चलते महिला पीड़ित पक्ष को आर्थिक योजना का लाभ नहीं मिल पा रहा है. उत्तराखंड बात करें तो यहां हर साल औसतन 2800 से अधिक महिला अपराध के मामले सामने आते हैं, लेकिन मुआवजे की बात करें तो साल भर में करीब 35 पीड़ितों को ही इस योजना का लाभ मिल रहा है.
ऐसे में पुलिस मुख्यालय ने इस योजना के जागरूकता के लिए प्रदेश के सभी थाना प्रभारियों को लिखित आदेश जारी कर महिलाओं से जुड़े अपराधों में पीड़ितों को मिलने वाली मुआवजा धनराशि योजना के संबंध में जागरूकता बढ़ाने के निर्देश दिए हैं. इतना ही नहीं मुख्यालय ने इस विषय में महिला अपराध से जुड़े पक्ष के रिकॉर्ड भी मंगवाए हैं, ताकि राज्य में दुष्कर्म, हत्या, पॉक्सो या अन्य तरह के महिलाओं से जुड़े आपराधिक मामलों में पीड़ित पक्ष को सहायता धनराशि योजना का लाभ दिलाया जा सके.
वहीं, पुलिस मुख्यालय द्वारा प्रदेश के सभी थानों में एक एप्लीकेशन के रूप में प्रारूप भेजा गया है, जिसमें कुल महिला अपराध और कितने पीड़ितों ने इस योजना में आवेदन किया. इसकी जानकारी इसमें भरकर देनी होगी. बता दें, देशभर में 2012 के बाद तेजी से महिला अपराध मामलों में सरकार की ओर से मुआवजा धनराशि देने की योजना आगे बढ़ी थी. लेकिन जागरूकता के अभाव के चलते बेहद कम संख्या में पीड़ितों को आर्थिक योजना का लाभ मिल रहा है.
जिला विधिक सेवा प्राधिकरण देता है मुआवजा
महिला अपराध से जुड़े मामलों में सरकार की ओर से मिलने वाली मुआवजा धनराशि के लिए संबंधित थाना स्तर से मुकदमे के आधार पर रिपोर्ट तैयार कर जिला विधिक सेवा प्राधिकरण को दी जाती है. उसी के आधार पर प्राधिकरण जांच के आधार पर सरकार से मिलने वाली मुआवजा राशि को पीड़ित पक्ष के लिए रिलीज करता है. इतना ही नहीं महिला अपराध से जुड़े मामलों में अदालतों से मिलने वाले आदेश और खुद जिला विधिक सेवा प्राधिकरण भी अपने स्तर से इस योजना का लाभ पीड़ित पक्ष को दिलाने में प्रयासरत है. लेकिन जागरूकता की कमी के कारण इस आर्थिक योजना का लाभ उत्तराखंड में बेहद कम संख्या में महिला पीड़ित पक्ष को मिल रहा है.
आधिकारिक आंकड़ों के मुताबिक साल 2018 से मार्च 2021 तक राज्यभर में 9,464 महिला अपराध के तहत मामले दर्ज हुए हैं. जबकि अगर देहरादून जिले में मुआवजे की बात करें, तो यहां साल 2015 से 2021 तक केवल 349 पीड़ितों को मुआवजा मिला है.