देहरादूनःआज पूरे देशभर में दिवाली 2023 का पर्व पूरे हर्ष और उल्लास के साथ मनाया जा रहा है, लेकिन अगर कोई किसी कारणवश इस दिवाली को नहीं पाया या फिर वो दोबारे से दीपावली का त्योहार मनाना चाहता है तो वो उत्तराखंड के जौनसार बावर का रुख कर सकता है. जी हां, देहरादून के जनजातीय क्षेत्र में आज से यानी इस दिवाली से ठीक एक महीने बाद बूढ़ी दिवाली मनाने की परंपरा है. जहां पारंपरिक लोक संस्कृति का समागम देखने को मिलता है.
जौनसार बावर में एक महीने बाद मनाई जाती है दिवालीः दरअसल, देहरादून जिले के जौनसार बावर जनजाति क्षेत्र में पौराणिक परंपरा आज भी जिंदा है. जहां पर देश दुनिया की दीपावली से अलग हटकर एक महीने बाद दीपावली का पर्व मनाया जाता है. जिसे 'बूढ़ी दिवाली' कहा जाता है. दीपावली पर जहां देश और दुनिया पटाखे के शोर शराबे के बीच दिवाली मनाई जाती है तो वहीं जौनसार बावर में ईको फ्रेंडली और परंपरागत तरीके से दिवाली मनाने की परंपरा है.
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जौनसार बावर में यही बूढ़ी दीपावली कई दिनों तक मनाई जाती है. साख बात ये है कि यह दिवाली काफी खास होती है. क्योंकि, इस दिवाली में पटाखे नहीं छुड़ाए जाते हैं. बल्कि, भीमल की लकड़ी की मशाल जलाकर मनाई जाती है. इस दौरान ग्रामीण पारंपरिक वेशभूषा में सज धज कर गांव के पंचायती आंगन या खलिहान में एकत्रित होते हैं, फिर ढोल दमाऊ की थाप पर मशालें जलाते हैं और रासो तांदी, झैंता, हारुल आदि नृत्य करते हैं. इसे बिरुडी पर्व से भी जाना जाता है.