देहरादून: राजधानी देहरादून समेत उत्तराखंड के कई इलाकों में शनिवार तड़के बारिश ने जमकर ताड़व मचाया (cloudburst in dehradun) है. देहरादून और टिहरी में बादल फटने की घटना भी सामने आई है (cloudburst in uttarakhand), जिस वजह से इन इलाकों में ज्यादा तबाही हुई (dehradun Disaster 2022) है. देहरादून में तो पांच लोगों के मलबे में दबे होने की सूचना भी है. उत्तराखंड में हर मॉनसून सीजन के दौरान बादल फटने की घटनाएं सामने आती है.
साल 2022 में उत्तराखंड में बादल फटने की घटनाएं खूब हुई है 20 अगस्त 2022 को जहां देहरादून के मालदेवता स्थित बादल फटने की घटनाएं हुई हैं. वहीं इससे पहले भी जून महीने में इसी क्षेत्र में बादल फटा था. इतना ही नहीं उत्तरकाशी, पौड़ी गढ़वाल के कोटद्वार में नैनीताल और पिथौरागढ़ जैसे जनपदों में भी बादल फटने की इस साल घटनाएं रिकॉर्ड की गई है.
बादल फटना तकनीकी शब्द:मौसम वैज्ञानिकों के मुताबिक बादल फटना बारिश का एक चरम रूप है. बादल फटना एक तकनीकी शब्द है. वैज्ञानिक तौर पर ऐसा नहीं होता कि बादल गुब्बारे की तरह या किसी सिलेंडर की तरह फट जाता हो. उदाहरण के तौर पर, जिस तरह पानी से भरा गुब्बारा अगर फूट जाए तो एक साथ एक जगह बहुत तेजी से पानी गिरता है. ठीक वैसी ही स्थिति बादल फटने की घटना में देखने को मिलती है. इस प्राकृतिक घटना को 'क्लाउड बर्स्ट' या 'फ्लैश फ्लड' भी कहा जाता है.
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बादल फटने की घटना मुख्यत: तब होती है, जब बहुत ज्यादा नमी वाले बादल एक जगह रुक जाते हैं. पानी की बूंदों का वजन बढ़ने से बादल का घनत्व (density) काफी बढ़ जाता है और फिर अचानक मूसलाधार बारिश शुरू हो जाती है. बादल फटने पर 100 मिलीमीटर प्रति घंटे की दर से पानी बरसता है. इस दौरान इतना पानी बरसता है कि क्षेत्र में बाढ़ जैसे हालात पैदा हो जाते हैं
पहाड़ों पर ही क्यों ज्यादा बादल फटते हैं: पानी से भरे बादल जब हवा के साथ आगे बढ़ते हैं तो पहाड़ों के बीच फंस जाते हैं. पहाड़ों की ऊंचाई इसे आगे नहीं बढ़ने देती है. पहाड़ों के बीच फंसते ही बादल पानी के रूप में परिवर्तित होकर बरसने लगते हैं. बादलों की डेंसिटी बहुत ज्यादा होने से बहुत तेज बारिश होती है. कुछ ही मिनट में 2 सेंटीमीटर से ज्यादा बारिश हो जाती है. बादल फटने की घटना अक्सर धरती से करीब 15 किलोमीटर की ऊंचाई पर देखने को मिलती है.
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बादल फटने के बाद कैसा होता है मंजर?बादल फटने के बाद इलाके का मंजर भयावह होता है. नदी नालों का अचानक जलस्तर बढ़ने से आपदा जैसे हालात बन जाते हैं. पहाड़ पर बारिश का पानी रुक नहीं पाता, इसीलिए पानी तेजी से नीचे की ओर आता है. नीचे आने वाला पानी अपने साथ मिट्टी, कीचड़ और पत्थरों के टुकड़ों के साथ लेकर आता है. कीचड़ का यह सैलाब इतना खतरनाक होता है कि जो भी उसके रास्ते में आता है उसको अपने साथ बहा ले जाता है.