देहरादून: दशहरे को बुराई पर अच्छाई की जीत का सबसे बड़ा प्रतीक माना जाता है. हिंदू पचांग के अनुसार, दशहरा दीवाली से ठीक 20 दिन पहले आश्विन मास की शुक्ल पक्ष की दशमी तिथि को मनाया जाता है. शहरा को बुराई पर अच्छाई की जीत पर सबसे बड़ा प्रतीक माना जाता है. नवरात्रि दशहरा हिन्दू धर्म का प्रमुख त्योहार है. इस त्योहार को बुराई पर अच्छाई की जीत और असत्य पर सत्य की विजय के रूप में मनाया जाता. हर साल यह पर्व आश्विन मास शुक्ल पक्ष की दशमी तिथि के दिन मनाया जाता है. पूरे देश में विजयादशी के दिन रावण के पुतले को फूंकने की परंपरा है.
हिन्दी पंचांग के अनुसार, आश्विन मास के शुक्ल पक्ष की दशमी तिथि को हर वर्ष दशहरा या विजयादशमी का त्योहार मनाया जाता है. इस वर्ष आश्विन शुक्ल दशमी तिथि का प्रारंभ 25 अक्टूबर को सुबह 7 बजकर 41 मिनट पर हो रहा है, जो 26 अक्टूबर को सुबह 09 बजे तक है. ऐसे में इस वर्ष दशहरे का त्योहार 25 अक्टूबर दिन मनाया जा रहा है.
विजयादशमी पर पूजा मुहूर्त
विजयादशमी की पूजा का शुभ मुहूर्त दोपहर 1 बजकर 12 मिनट से दोपहर 3 बजकर 27 मिनट तक है. आपको पूजा के लिए कुल 2 घंटे 15 मिनट का समय है. इस दिन विजय मुहूर्त दोपहर 1 बजकर 57 मिनट से दोपहर 2 बजकर 42 मिनट तक है. यह कुल समय 45 मिनट का है.
क्यों मनाया जाता है दशहरा
पौराणिक कथाओं के अनुसार जब भगवान 14 वर्षों के वनवास में थे, तो लंकापति रावण ने उनकी पत्नी माता सीता का अपहरण कर उन्हें लंका की अशोक वाटिका में बंदी बना कर रखा लिया था. श्रीराम ने अपने छोटे भाई लक्ष्मण, भक्त हनुमान और वानर सेना के साथ रावण की सेना से लंका में ही पूरे नौ दिनों तक युद्ध लड़ा. मान्यता है कि उस समय प्रभु राम ने देवी मां की उपासना की थी और उनके आशीर्वाद से आश्विन मास की दशमी तिथि पर अहंकारी रावण का वध किया था.
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एक दूसरी कथा के अनुसार असुरों के राजा महिषासुर ने अपनी शक्ति के बल पर देवताओं को पराजित कर इन्द्रलोक सहित पृथ्वी पर अपना अधिकार कर लिया था. भगवान ब्रह्रा के दिए वरदान के कारण किसी भी कोई भी देवता उसका वध नहीं कर सकते थे. ऐसे में त्रिदेवों सहित सभी देवताओं ने अपनी शक्तियों से देवी दुर्गा की उत्पत्ति की. इसके बाद देवी ने महिषासुर के आंतक से सभी को मुक्त करवाया. मां की इस विजय को ही विजयदशमी के नाम से मनाया जाता है.
दशहरे के दिन होती है शस्त्र पूजा
दशहरे के दिन शस्त्र पूजा का विधान है. सनातन परंपरा में शस्त्र और शास्त्र दोनों का बहुत महत्व है. शास्त्र की रक्षा और आत्मरक्षा के लिए धर्मसम्म्त तरीके से शस्त्र का प्रयोग होता रहा है. प्राचीनकाल में क्षत्रिय शत्रुओं पर विजय की कामना लिए इसी दिन का चुनाव युद्ध के लिए किया करते थे. पूर्व की भांति आज भी शस्त्र पूजन की परंपरा कायम है और देश की तमाम रियासतों और शासकीय शस्त्रागारों में आज भी शस्त्र पूजा बड़ी धूमधाम के साथ की जाती है.
शस्त्र पूजा मुहूर्त
दशहरा के दिन शस्त्र पूजा के लिए विजय मुहूर्त उत्तम माना जाता है. इस मुहूर्त में किए गए कार्य में सफलता अवश्य प्राप्त होती है. विजयादशमी के दिन शस्त्र पूजा के लिए विजय मुहूर्त दोपहर 13:57 बजे से दोपहर 14:42 बजे तक है. इस समयकाल में आपको अपने शस्त्रों की पूजा करनी चाहिए.
दशहरा के दिन पूजा की परंपरा