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स्वतंत्रता दिवस: करगिल के जांबाजों की 'शौर्यगाथा'

देश पर कुर्बान होने वाले जांबाजों में उत्तराखंड के वीरों का कोई सानी नहीं हैं. जब-जब देश की आन-बान पर कोई संकट आया, तब तब उत्तराखंड के जाबांजों ने देश की रक्षा के लिए अपना सर्वस्व न्यौछावर किया.

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स्वतंत्रता दिवस पर जानिए करगिल की कहानी

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Published : Aug 14, 2020, 10:31 PM IST

Updated : Aug 14, 2020, 10:49 PM IST

देहरादून: उत्तराखंड वीर सैनिकों की भूमि है. प्रदेश के समृद्ध सैन्य इतिहास के चलते प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी उत्तराखंड को सैन्य धाम मानते हैं. आजादी से पहले हो या आजादी के बाद हुए युद्ध. देश के लिए शहादत देना उत्तराखंड के शूरवीरों की परंपरा रही है. आजादी के बाद से अब तक 2000 हजार से अधिक सैनिकों ने देश की रक्षा के लिए अपनी शहादत दी है.

करगिल युद्ध में भी उत्तराखंड के वीरों ने हर मोर्चे पर अपने युद्ध कौशल का परिचय देते हुए दुश्मनों के छक्के छुड़ाए थे. कारगिल युद्ध की वीर गाथा भी उत्‍तराखंड की वीरभूमि के जिक्र बिना अधूरी है. करगिल युद्ध में प्रदेश के 75 जवानों ने देश की रक्षा करते हुए अपने प्राणों की आहूति दी थी. इनमें 37 जवान ऐसे भी थे, जिन्हें युद्ध के बाद उनकी बहादुरी के लिए पुरस्कार भी मिला था.

74वें स्वतंत्रता दिवस के मौके पर मिलिए ऐसे जांबाज से, जिन्होंने दुश्मन के छक्के छुड़ाते हुए करगिल में तिरंगे का मान-सम्मान बरकरार रखा. 2 राजपूताना राइफल्स के राजेंद्र तंवर और 2 नागा रेजिमेंट के बहादुर गुरुंग करगिल में देश की खातिर अपने पैर गवां दिए.

ETV BHARAT से खास बातचीत में राजेंद्र तंवर का कहना है कि मुझे देश की सेवा करते हुए तीन बार युद्ध में शामिल होने का मौका मिला. कारगिल की लड़ाई पर बोलते हुए राजेंद्र तंवर ने कहा कि तोलोलिंग पहाड़ी पर कब्जा करने के लिए 40 सैनिकों के दल ने हमला किया. इस दौरान पहाड़ी पर करीब 60 पाकिस्तानी सैनिक मौजूद थे. जो भारतीय सैनिकों को आता देख ताबड़तोड़ फायरिंग कर रहे थे. वहीं पहाड़ी पर मैन-टू-मैन की फायरिंग में राजेंद्र के बाएं पैर में गोली लगी, जिसकी वजह से उन्हें अपना पैर खोना पड़ गया. राजेंद्र का कहना है कि तोलोलिंग पर आमने-सामने की लड़ाई में पाकिस्तानी सैनिकों का बहुत नुकसान हुआ. पाकिस्तानियों को खदेड़ कर भारतीय सेना ने तोलोलिंग की पहाड़ी पर कब्जा कर लिया.

राजेश तंवर बताते हैं कि युद्ध के दौरान कई बार घर-परिवार की यादें भी आती रहती हैं. करगिल युद्ध के दौरान मेरी पत्नी गर्भवती थीं, लेकिन मन में हमेशा घर से पहले देश रक्षा धर्म निभाने का ख्याल आता रहा, जो मेरे हौसले को बढ़ाता गया और मैं दुश्मनों से डटकर मुकाबला करने लगा.

करगिल के जांबाजों की 'शौर्यगाथा'.

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2 नागा रेजीमेंट के रिटायर्ड जवान बहादुर गुरुंग का कहना है कि मास्को वैली में को कब्जे से छुड़ाने के लिए कुमाऊं रेजिमेंट के साथ नागा रेजीमेंट के 30 जवानों को फतह करने के लिए भेजा गया था. ऊंची पहाड़ी पर जवान चल रहे थे और इन्हीं में बहादुर गुरुंग भी शामिल थे. घुप अंधेरे में जवानों ने इस पहाड़ी को फतह करने के लिए अपने कदम बढ़ाए. अंधेरे में बेहद चुपचाप तरीके से आगे बढ़ने के बावजूद पहाड़ी पर बैठे पाकिस्तानियों को सेना की इस मूवमेंट की खबर लग गई. जिसके बाद पाकिस्तानियों ने रॉकेट लॉन्चर और हैवी गन से बर्स्ट फायर करने लगे.

भारतीय सेना के जवानों ने भी पाकिस्तान पर जमकर फायरिंग की और उन्हें पीछे भागने पर मजबूर कर दिया. हालांकि इसी दौरान पाकिस्तानी फौज द्वारा बिछाई गई माइंस पर पैर पड़ने की वजह से बहादुर गुरुंग को अपना दाया पैर गंवाना पड़ा. देश के लिए अपने पैर गंवाने वाले राजेंद्र तंवर और बहादुर गुरुंग के हौसले अब भी कम नहीं हुए हैं. दोनों का कहना है कि अगर देश की रक्षा के लिए सेना आज भी बुलाएगी तो वे हरदम दुश्मनों से लड़ने को तैयार हैं.

Last Updated : Aug 14, 2020, 10:49 PM IST

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