देहरादून: उत्तराखंड वीर सैनिकों की भूमि है. प्रदेश के समृद्ध सैन्य इतिहास के चलते प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी उत्तराखंड को सैन्य धाम मानते हैं. आजादी से पहले हो या आजादी के बाद हुए युद्ध. देश के लिए शहादत देना उत्तराखंड के शूरवीरों की परंपरा रही है. आजादी के बाद से अब तक 2000 हजार से अधिक सैनिकों ने देश की रक्षा के लिए अपनी शहादत दी है.
करगिल युद्ध में भी उत्तराखंड के वीरों ने हर मोर्चे पर अपने युद्ध कौशल का परिचय देते हुए दुश्मनों के छक्के छुड़ाए थे. कारगिल युद्ध की वीर गाथा भी उत्तराखंड की वीरभूमि के जिक्र बिना अधूरी है. करगिल युद्ध में प्रदेश के 75 जवानों ने देश की रक्षा करते हुए अपने प्राणों की आहूति दी थी. इनमें 37 जवान ऐसे भी थे, जिन्हें युद्ध के बाद उनकी बहादुरी के लिए पुरस्कार भी मिला था.
74वें स्वतंत्रता दिवस के मौके पर मिलिए ऐसे जांबाज से, जिन्होंने दुश्मन के छक्के छुड़ाते हुए करगिल में तिरंगे का मान-सम्मान बरकरार रखा. 2 राजपूताना राइफल्स के राजेंद्र तंवर और 2 नागा रेजिमेंट के बहादुर गुरुंग करगिल में देश की खातिर अपने पैर गवां दिए.
ETV BHARAT से खास बातचीत में राजेंद्र तंवर का कहना है कि मुझे देश की सेवा करते हुए तीन बार युद्ध में शामिल होने का मौका मिला. कारगिल की लड़ाई पर बोलते हुए राजेंद्र तंवर ने कहा कि तोलोलिंग पहाड़ी पर कब्जा करने के लिए 40 सैनिकों के दल ने हमला किया. इस दौरान पहाड़ी पर करीब 60 पाकिस्तानी सैनिक मौजूद थे. जो भारतीय सैनिकों को आता देख ताबड़तोड़ फायरिंग कर रहे थे. वहीं पहाड़ी पर मैन-टू-मैन की फायरिंग में राजेंद्र के बाएं पैर में गोली लगी, जिसकी वजह से उन्हें अपना पैर खोना पड़ गया. राजेंद्र का कहना है कि तोलोलिंग पर आमने-सामने की लड़ाई में पाकिस्तानी सैनिकों का बहुत नुकसान हुआ. पाकिस्तानियों को खदेड़ कर भारतीय सेना ने तोलोलिंग की पहाड़ी पर कब्जा कर लिया.