देहरादून: उत्तराखंड में चाय की खेती के लिए अपार संभावनाएं हैं, लेकिन जरूरत है एक ठोस और प्रभावी कदम उठाने की. इतिहासकार बताते हैं कि 1835 में जब अंग्रेजों ने कोलकाता से चाय के पौधों की खेप उत्तराखंड भेजी तो उन्हें भी विश्वास नहीं रहा होगा कि चाय के बागान धीरे-धीरे उत्तराखंड में फैल जाएंगे. उत्तराखंड में फिलहाल देहरादून, बागेश्वर के कौसानी, कत्यूर घाटी सहित कई जगहों पर चाय की खेती हो रही है.
उत्तराखंड मूल के चाय विशेषज्ञ विनोद बिष्ट अपना करियर दार्जिलिंग और नॉर्थ ईस्ट में चाय बागानों को विकसित करने में गुजार दिया है. ईटीवी भारत से खास बातचीत में चाय विशेषज्ञ विनोद बिष्ट ने बताया कि उन्होंने वर्ष 1979 में दार्जिलिंग में चाय की बागान के साथ अपने करियर की शुरुआत की है. इसके बाद उन्होंने करीब 35 साल आसाम में चाय की उत्तम किस्मों को विकसित करने में बिता दिया.
एक्सपर्ट से जानिए उत्तराखंड में कितने सफल हुए चाय के बागान. बागान की विशेष पोशाक
बागानों की विशेषता के बारे में बताते हुए विनोद बिष्ट ने कहा कि चाय बागानों में काम करने के लिए विशेष पोशाक होती है. क्योंकि बागानों में तापमान अधिक होता है. ऐसे में खेतों में काम करने वाले पोशाक पहनकर ही पत्तियों को चुनते हैं.
बागान के लिए अलग कीटनाशक
विनोद बिष्ट के मुताबिक सामान्य फसलों की अपेक्षा चाय बागान में इस्तेमाल होने वाले कीटनाशक अलग होते हैं. सामान्य फसलों में ऐसे कीटनाशकों का इस्तेमाल किया जाता है, जिसकी असर देर तक रहता है. लेकिन चाय बागानों में पत्तियों के आने में ज्यादा समय नहीं लगता. इसीलिए उनपर कम तीव्रता वाले कीटनाशक का प्रयोग किया जाता है.
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ऑर्थोडॉक्स चाय की कीमत 1580 डॉलर प्रतिकिलो
विनोद बिष्ट के मुताबिक दार्जिलिंग की चाय विश्व प्रसिद्ध है. इसके साथ ही आसाम की चाय भी बड़े स्तर पर लोकप्रिय है. जिसे देश की बड़ी कंपनियां रीपैकिंग करती है. ऐसे में दार्जिलिंग की सिल्वर टिप्स ऑर्थोडॉक्स चाय विदेशों में आयात की जाती है. जिसकी अंतरराष्ट्रीय कीमत 1580 डॉलर प्रति किलो है. सिल्वर टिप्स ऑर्थोडॉक्स चाय की खासियत पूर्णिमा के दिनों में इसकी खेती का होना है. जिसकी वजह से यह इतनी महंगी है. इसकी पत्तियों पर सिल्वर रंग के धब्बों की वजह से ही इसे सिल्वर टिप्स कहा जाता है.
उत्तराखंड में इसीलिए सफल नहीं चाय बागान
चाय विशेषज्ञ विनोद बिष्ट के मुताबिक उत्तराखंड में चाय बागान इसलिए कारगर साबित नहीं हो पाए. क्योंकि यहां पर जमीन की कीमत बहुत ज्यादा है. इसके साथ ही उत्तराखंड में श्रमिकों का खर्च भी नॉर्थ ईस्ट में आने वाले खर्च से कई गुना ज्यादा है. उत्तराखंड एक पर्यटन राज्य है और यहां पर पारिश्रमिक मूल्य उत्तरी पूर्वी राज्यों से कई ज्यादा है. उत्तराखंड में सिंचाई के लिए पानी नहीं मिलने पर बड़े पैमाने पर खेत बंजर होते जा रहे हैं. पहाड़ी इलाकों में पानी की समस्या के चलते कुछ फसलें नहीं हो पा रही हैं. जिसे देखते हुए सरकार को पहाड़ी इलाकों में सिंचाई और पेयजल की पर्याप्त व्यवस्था करनी चाहिए.
उत्तराखंड बनने के बाद 2002-03 में चाय की खेती पर विशेष जोर दिया गया है. उत्तराखंड के अल्मोड़ा, बागेश्वर, चंपावत, चमोली, नैनीताल, पिथौरागढ़ और रुद्रप्रयाग जिलों में चाय बागानों की स्थापना के साथ उत्तराखंड चाय विकास बोर्ड बागानों की संख्या बढ़ाने के साथ पारंपरिक खेती को बढ़ावा देने में जुटा हुआ है.