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उत्तराखंड: नया सीएम बनते ही मुख्यसचिव बदलने का रहा इतिहास, जानें कौन रहा किसका खास?

मुख्य सचिव सरकार और शासन के बीच एक महत्वपूर्ण कड़ी होता है. मुख्य सचिव ही सरकार के एजेंडे, योजनाओं को जमीनी स्तर तक पहुंचाने में मुख्य भूमिका निभाते हैं. उत्तराखंड में मुख्य सचिव बने सभी अधिकारियों का इतिहास रोचक रहा है.

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उत्तराखंड में जानें कब कौन रहा ब्यूरोक्रेसी का 'BOSS'

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Published : Jul 5, 2021, 10:31 PM IST

Updated : Jul 6, 2021, 4:38 PM IST

देहरादून: सरकार मेंमुख्य सचिव(Chief Secretary)का क्या रोल होता है? सरकार मुख्यमंत्री नहीं बल्कि मुख्य सचिव ही चलाते हैं. कई वरिष्ठ पत्रकार और राजनीतिक विशेषज्ञ यही कहते हैं. बता दें कि उत्तराखंड में जितनी अहम भूमिका बार-बार बदले गए मुख्यमंत्रियों की है, उतनी ही महत्वपूर्ण भूमिका मुख्य सचिव की भी होती है. चीफ सेक्रेटरी की कुर्सी पर बैठने वाले अधिकारी पर ही निर्भर करता है कि वो कैसे सरकार की योजनाओं को अमलीजामा पहनाए.

उत्तराखंड में चीफ सेक्रेटरी रहे अधिकारियों का इतिहास

उत्तराखंड राज्य गठन के साथ हीनित्यानंद स्वामी(Nityananda Swami) को पहला मुख्यमंत्री बनाया गया. तब अजय विक्रम सिंह (Ajay Vikram Singh) चीफ सेक्रेट्री थे. तब उनके रिटायरमेंट को उस वक्त केवल 6 महीने बचे थे. उनके रिटायर्ड होते ही उत्तराखंड के मधुकर गुप्ता को मुख्य सचिव बनाया गया. 2002 में चुनाव के बाद बनी कांग्रेस सरकार में भी मधुकर गुप्ता ने मुख्य सचिव के तौर पर अपनी सेवाएं दी.

उत्तराखंड सचिवालय.

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2003 में आरएस टोलिया बने मुख्य सचिव

मुख्य सचिव मधुकर गुप्ता के रिटायरमेंट के बाद 1 सितंबर 2003 को आरएस टोलिया उत्तराखंड के मुख्य सचिव बने. उस समय उत्तराखंड में एनडी तिवारी मुख्यमंत्री थे. कांग्रेस के दिग्गज नेता और नए नवेले उत्तराखंड के एक कद्दावर मुख्यमंत्री एनडी तिवारी के साथ मुख्य सचिव आरएस टोलिया की खूब पटती थी.

स्वर्णिम अक्षरों में लिखा जाता है टोलिया का नाम

उत्तराखंड की ब्यूरोक्रेसी में टोलिया का नाम स्वर्णिम अक्षरों में लिखा जाता है. 1 सितंबर 2003 से 4 अक्टूबर 2005 तक मुख्य सचिव रहे आरएस टोलिया उत्तराखंड के सीमांत जिले पिथौरागढ़ से आते थे और उनके जहन में पहाड़ के विकास की चिंता हमेशा रहती थी. वह हफ्तों तक पहाड़ के दौरे पर रहते थे और पहाड़ के विकास के लिए नीतियां बनाने में जुटे रहते थे.

उत्तराखंड में बने तमाम छोटे-बड़े बोर्ड परिषद भी आरएस टोलिया की देन हैं. बात चाहे उत्तर प्रदेश तराई बीज निगम की हो, जड़ी बूटी शोध संस्थान गोपेश्वर हो या सेलाकुई हर्बल मेडिकल प्लांट. बतौर मुख्य सचिव आरएस टोलिया का ही ये कांसेप्ट रहा है. उत्तराखंड में तमाम परिषद बनने के बाद कई समाजसेवी संस्थाएं भी उत्तराखंड में विकास के लिए आगे आईं. इसके अलावा उन्होंने पहाड़ों के उत्थान के लिए कई किताबें भी लिखी हैं.

2006 में एसके दास ने संभाली चीफ सेक्रेटरी की जिम्मेदारी

एनडी तिवारी के मुख्यमंत्री रहते ही आरएस टोलिया 5 अक्टूबर 2005 को रिटायर्ड हुए. फिर कुछ महीनों तक मुख्य सचिव की कमान आईएएस अधिकारी एम.रामचंद्रन के हाथ में रही. बहुत कम समय के बाद ही उन्हें केंद्र में प्रतिनियुक्ति में भेज दिया गया. जिसके बाद फरवरी 2006 में आईएएस अधिकारी एसके दास ने चीफ सेक्रेटरी की जिम्मेदारी संभाली. एनडी तिवारी के साथ-साथ जब प्रदेश में सत्ता बदली और भाजपा की सरकार आयी तब भी चीफ सेक्रेटरी की कुर्सी पर एसके दास बने रहे.

चीफ सेक्रेटरी से ज्यादा सीएम के सचिव के चर्चे

अमूमन कहा जाता है कि जब प्रदेश में सत्ताधारी दल बदलता है तो मुख्य सचिव भी बदला जाता है. लेकिन वर्ष 2007 में आई भारतीय जनता पार्टी के मुख्यमंत्री भुवन चंद खंडूड़ी ने ऐसा नहीं किया. उन्होंने मुख्य सचिव एसके दास को ही अपना मुख्य सचिव बनाए रखा. तब राजनीतिक गलियारों में चर्चा रहती थी कि खंडूड़ी सरकार में मुख्य सचिव एसके दास से ज्यादा मुख्यमंत्री खंडूड़ी के सचिव प्रभात सारंगी की चलती थी.

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इसके बाद वर्ष 2008 में मुख्य सचिव एसके दास में वीआरएस ले लिया. वे लोक सेवा आयोग चले गए. जिसके बाद इंदु कुमार पांडे उत्तराखंड के नए मुख्य सचिव बने. खंडूड़ी सरकार जाने के बाद रमेश पोखरियाल निशंक को मुख्यमंत्री बनाया गया, तब सुभाष कुमार को मुख्य सचिव बनाया गया.

कांग्रेस ने आलोक जैन को बनाया मुख्य सचिव

जिसके बाद प्रदेश में एक बार फिर से चुनाव हुए. इस बार सरकार कांग्रेस की आई. कांग्रेस ने विजय बहुगुणा को मुख्यमंत्री बनाया. उनके साथ मुख्य सचिव भी बदले गये. इस बार कांग्रेस ने आलोक जैन को मुख्य सचिव बनाया. मगर, कुछ ही दिनों के बाद उन्हें बदल दिया गया. उसके बाद एक बार फिर सुभाष कुमार को उत्तराखंड का मुख्य सचिव बनाया गया. उन्होंने रिटायर होने के बाद भी उत्तराखंड विद्युत विनायक आयोग का पद संभाला.

समय से पहले हटाए गए थे सुभाष कुमार

दरअसल, 1 मई 2012 को मुख्य सचिव रहे सुभाष कुमार को उनके पद से हटाया गया था, क्योंकि उनके खिलाफ कोर्ट में एक याचिका दायर हुई थी, जिनमें उनके मूल निवास के प्रमाण पत्र को तिब्बत का बताया गया था. हालांकि, यह दावा कोर्ट में झूठ निकला और एक बार फिर से सुभाष कुमार को मुख्य सचिव बनाया गया. दोबारा 3 मई 2013 से सुभाष कुमार से पद ग्रहण किया. वो 21 अक्टूबर 2014 तक मुख्य सचिव पद पर रहे.

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हरीश रावत ने चहेते राकेश शर्मा को दी जिम्मेदारी

कांग्रेस की सरकार के रहते प्रदेश ने भीषण 2013 की आपदा का दौर देखा, जिसके बाद उत्तराखंड में एक बार फिर से नेतृत्व परिवर्तन हुआ. इस बार कांग्रेस ने मुख्यमंत्री की कमान हरीश रावत के हाथ में दी. हालांकि, इस बीच कुछ समय के लिए भारत सरकार से एन. रविशंकर भी उत्तराखंड में मुख्य सचिव पद पर आए, लेकिन वो यहां ज्यादा समय नहीं रहे. फिर तत्कालीन मुख्यमंत्री हरीश रावत ने अपने चहेते मुख्य सचिव राकेश शर्मा को मुख्य सचिव की जिम्मेदारी सौंपी.

राकेश शर्मा सबसे जबरदस्त मुख्य सचिव

उत्तराखंड की ब्यूरोक्रेसी में कहा जाता है कि राकेश शर्मा सबसे जबरदस्त मुख्य सचिव थे. उन्होंने अपने रिटायरमेंट से पहले के कुछ चंद महीनों में ही उत्तराखंड की ब्यूरोक्रेसी को दिखाया कि काम कैसे होता है. 31 जुलाई 2015 से 16 नवंबर 2015 तक उत्तराखंड में मुख्य सचिव रहे राकेश शर्मा के बारे में एक बात कही जाती है कि सरकार अगर कुछ भी फैसला ले तो विपरीत परिस्थितियों में भी उसे अमलीजामा कैसे पहनाना है ये राकेश शर्मा की खूबी थी. कहते हैं उनके पास हर मर्ज की दवा रहती थी.

राकेश शर्मा.

राकेश शर्मा के लिए स्पेशल पोस्ट क्रिएट हुई

वहीं, हरीश रावत सरकार में ही राकेश शर्मा का रिटायरमेंट हुआ. लेकिन हरीश रावत राकेश शर्मा के इतने मुरीद थे कि उनका रिटायरमेंट का समय पूरा हो जाने के बाद भी उनके लिए हरीश रावत ने अलग से प्रधान सचिव का पद स्वीकृत करवाया और उन्हें रिटायरमेंट के बाद भी सरकार में बनाए रखा.

शत्रुघ्न सिंह बने मुख्य सचिव

इसके बाद मुख्य सचिव के पद पर शत्रुघ्न सिंह आए. जिस वक्त हरीश रावत की सरकार पर बीजेपी ने धावा बोला, यहां दल बदल हुआ तब यहां शत्रुघ्न सिंह ही मुख्य सचिव थे.

शत्रुघ्न सिंह

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2017 में उत्पल कुमार सिंह केंद्र से भेजे गये

इसके बाद वर्ष 2017 में एक बार फिर से उत्तराखंड में सत्ता परिवर्तन हुआ. भाजपा की सरकार बनी. त्रिवेंद्र सिंह रावत को प्रदेश की कमान सौंपी गई. तब कुछ समय के लिए रामास्वामी ही मुख्य सचिव थे. 25 अक्टूबर 2017 को एस रामास्वामी को अप्रत्याशित घटनाक्रम के तहत हटा दिया गया. इसके पीछे सबसे बड़ी वजह उनका ढीला रवैया और सुस्त चाल मानी जाती है. उनकी जगह पर केंद्र में प्रतिनियुक्ति पर तैनात आईएएस अफसर उत्पल कुमार सिंह को जिम्मेदारी दी गई. उत्पल कुमार सिंह 30 जुलाई 2020 को रिटायर हो गए थे. उसके बाद मुख्यमंत्री रहे त्रिवेंद्र रावत के चहेते आईएएस अधिकारी ओमप्रकाश को मुख्य सचिव बनाया गया.

उत्पल कुमार सिंह.

त्रिवेंद्र रावत ने ओमप्रकाश पर जताया भरोसा

बताया जाता है कि पूर्व मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र रावत और पूर्व मुख्य सचिव ओमप्रकाश के बीच काफी करीबियां थी. ये करीबी वर्ष 2007 में आई भाजपा सरकार के बाद से ही शुरू हुई थी. तब त्रिवेंद्र रावत के पास कृषि मंत्रालय था. ओमप्रकाश कृषि मंत्रालय के सचिव हुआ करते थे. उस वक्त त्रिवेंद्र रावत के ऊपर आई कई मुसीबतों को ओमप्रकाश ने अपने ऊपर लिया था. ओमप्रकाश का रिकॉर्ड पब्लिक डोमेन में अच्छा नहीं माना जाता था. यही वजह थी कि त्रिवेंद्र रावत की कुर्सी जाने की वजह कई लोगों ने ओमप्रकाश को बताया.

ओम प्रकाश.

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सुखबीर सिंह संधू बने नये मुख्य सचिव

उत्तराखंड में मुख्यमंत्री परिवर्तन के साथ-साथ मुख्य सचिव के परिवर्तन के बाद भी शुरू होने लगी. त्रिवेंद्र रावत के बाद मुख्यमंत्री तीरथ सिंह रावत को बनाया गया. तब मुख्य सचिव बदलने की कवायद शुरू हुई. तीरथ सिंह के कार्यकाल में ओमप्रकाश मुख्य सचिव बने रहे. 3 जुलाई को एक बार फिर से प्रदेश में नेतृत्व परिवर्तन हुआ. अबकी बार खटीमा विधायक पुष्कर धामी को प्रदेश का मुख्यमंत्री बनाया गया. उनके शपथ लेने के अगले दिन ही ओमप्रकाश को मुख्य सचिव पद से हटा दिया गया. ओम प्रकाश के बाद ये जिम्मेदार सुखबीर सिंह संधू को दी गई है.

सुखबीर सिंह संधू

ओमप्रकाश भी पद से हटाए गए

भाजपा की इसी सरकार में एक बार फिर से मुख्य सचिव ओमप्रकाश को भी उनके तय समय से पहले 5 जुलाई 2021 को हटाया जा चुका है. ओमप्रकाश को हटाए जाने के पीछे उनका रिजर्व नेचर, साथ ही उनसे जुड़े कई तमाम ऐसे विवाद हैं जो उनकी विदाई का कारण बने, इसमें वर्तमान सीएम पुष्कर सिंह धामी से विवाद भी एक कारण है.

सरकार के हाथ-पांव और मशीनरी होती है ब्यूरोक्रेसी

वरिष्ठ पत्रकार जय सिंह रावत बताते हैं कि प्रदेश कि जो टर्मिनल पोस्ट हैं, वह अक्सर सरकार में बड़े बदलाव के साथ बदली जाती हैं. जय सिंह रावत के अनुसार किसी भी सरकार के हाथ-पांव और मशीनरी ब्यूरोक्रेसी होती है. उस ब्यूरोक्रेसी का बॉस मुख्य सचिव होता है. सरकार कैसे काम करेगी यह काफी हद तक मुख्य सचिव पर ही निर्भर रहता है.

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मुख्य सचिव होता है सबसे ज्यादा अनुभवी

वरिष्ठ पत्रकार राकेश खंडूड़ी कहते हैं कि सरकार का एजेंडा सरकार की लाइन मुख्य सचिव जमीनी स्तर तक पहुंचाते हैं और मुख्यमंत्री और मुख्य सचिव के बीच ट्यूनिंग कैसी है. इस पर काफी हद तक सरकार निर्भर करती है. पत्रकार राकेश खंडूड़ी के अनुसार मुख्य सचिव एक ऐसा पद है, जिसके पास बड़ा अनुभव होता है. उसे सारे प्रशासनिक कार्यों का ज्ञान होता है. अगर मुख्य सचिव चाहे तो सरकार दिन दोगुनी और रात चौगुनी रफ्तार से दौड़ सकती है.

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वरिष्ठ पत्रकार और उत्तराखंड सचिवालय पर अपना गहरा अनुभव रखने वाले चेतन गुरंग बताते हैं कि मुख्य सचिव एक ऐसा अधिकारी होता है, जो शासन में काम करने वाले हर एक अधिकारी की विशेषता और उसकी कमी को अच्छे से जानता है. गुरंग कहते हैं उत्तराखंड शासन में आज भी कई ऐसे विभाग या फिर पद हैं जिन पर अधिकारियों की पोस्टिंग की जरूरत है. आज एक ही अधिकारी को कई पद दिए गए हैं जो कि तर्कसंगत नहीं हैं.

Last Updated : Jul 6, 2021, 4:38 PM IST

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