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'ब्लैक गोल्ड' की बढ़ रही 'चमक', जानिए कैसे तय होती हैं तेल की कीमतें - एक्साइज ड्यूटी उत्पाद कर

भारत क्रूड ऑयल विदेशों से आयात करता है, फिर कच्चे तेल को रिफाइनरी में प्रोसेस किया जाता है. केंद्र सरकार की टैक्स, सेंट्रल एक्साइज, राज्यों के वैट और डीलर कमीशन के बाद जनता तक पहुंचने में तेल की कीमतें आसमान छूने लगती हैं.

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'ब्लैक गोल्ड' की बढ़ रही 'चमक'

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Published : Jul 12, 2020, 7:58 PM IST

देहरादून: कोरोना वायरस की मार के चलते पूरी दुनिया के कारोबार पर असर पड़ा है. कच्चे तेल की कीमतें कम हो रही हैं. लेकिन भारत में पेट्रोल और डीजल की कीमतें बढ़ती जा रही हैं. बढ़ती कीमतों के बीच पूरे देश में हाहाकार मचा हुआ है. दरअसल, जून 2017 में सरकार ने दाम को लेकर अपना नियंत्रण हटा लिया था और कहा था कि अंतरराष्ट्रीय बाजार में उतार-चढ़ाव के हिसाब से रोजाना कीमतें तय होंगी. दरअसल, कच्चे तेल की कीमतें गिरने की वजह से डीजल-पेट्रोल के दाम भी कम होने थे. लेकिन सरकार ने एक्साइज ड्यूटी बढ़ाकर उन्हें स्थिर रखा है.

जुलाई में इंडियन बास्केट कच्चे तेल की कीमत 40 डॉलर प्रति बैरल के आसपास है. लेकिन भारत में डीजल-पेट्रोल की कीमतें बढ़ती जा रहीं हैं. इसी का असर है कि पिछले महीने डीजल की कीमत में 11.23 रुपए/लीटर और पेट्रोल के दाम में 9.17 रुपए/लीटर की बढोतरी हुई है. भारत में पेट्रोल-डीजल दोनों की कीमत रोजाना बाजार के हिसाब से तय होती है. विदेशी मुद्रा दरों के साथ अंतरराष्ट्रीय बाजार में क्रूड की कीमतें क्या हैं, इस आधार पर रोज पेट्रोल और डीजल की कीमतों में बदलाव होता है. इन्हीं मानकों के आधार पर तेल कंपनियां पेट्रोल और डीजल के रेट रोज तय करती है. भारत में 80 प्रतिशत कच्चे तेल का आयात होता है. कच्चे तेल की कीमतें प्रति बैरल में होती है. एक बैरल में 159 लीटर क्रूड ऑयल होता है. भारत में मुख्य तौर पर डीजल-पेट्रोल पर एक्साइज ड्यूटी, वैट और डीलर कमीशन होते हैं.

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जब भी विश्व में कच्चे तेल की कीमत में कमी होती है तो सरकार इस पर लगने वाली एक्साइज ड्यूटी बढ़ा देती है. अंतरराष्ट्रीय बाजार में कच्चा तेल भले ही सस्ता हो जाए, लेकिन आपको पेट्रोल की कीमत ज्यादा ही चुकानी पड़ती है क्योंकि, सरकार अपना टैक्स बढ़ा देती है, ताकि कंपनियों को तय मानक से ज्यादा फायदा न हो सके. तो आइए जानते हैं डीजल-पेट्रोल पर कौन-कौन से टैक्स लगते हैं.

एक्साइज ड्यूटी (उत्पाद कर)

एक्साइज ड्यूटी (Excise duty) एक तरह का टैक्स है, जो भारत के अंदर कोई प्रोडक्ट प्रोड्यूस करने या उसे बेचने पर लगाया जाता है. सरकार उस पैसे से रेवेन्यू जनरेट करती है और फिर उससे समाज कल्याण के काम में इस्तेमाल करती है.

ड्यूटी- ड्यूटी का मतलब किसी सामान के बॉर्डर पार करने पर लगने वाले टैक्स से होता है. जैसे आयात होने वाले सामानों पर इम्पोर्ट ड्यूटी या आयात शुल्क होता है. साथ ही किसी सामान के बनकर तैयार होने पर उस पर लगने वाली एक्साइज ड्यूटी भी इसमें शामिल है.

दरअसल, लोगों के पास जो डीजल और पेट्रोल आता है उसे कई प्रक्रियाओं से गुजरकर तैयार किया जाता है, जिसमें लागत भी आती है. फिर इसमें डीलर का कमीशन, केंद्र और राज्य सरकारों का टैक्स और परिवहन लागत को जोड़ा जाता है, जिसके कारण इसकी कीमत लगभग दोगुनी भी हो जाती है.

ऐसे आप तक पहुंचता है तेल.

ऐसे तय होती हैं कीमतें

केंद्र सरकार के पेट्रोलियम योजना एवं विश्लेषण प्रकोष्ठ (Petroleum Planning and Analysis Cell) के मुताबिक, सरकार रिफाइन होने के बाद सभी कीमतों को मिलाकर 1 लीटर तेल की बेस प्राइस 18 रुपए रखती है. अब इसमें केंद्र सरकार द्वारा 33 रुपए की एक्साइज ड्यूटी लगाई गई. राज्य सरकार द्वारा 19 रुपए का वैट भी जोड़ दिया गया. फिर इसमें 4 रुपए डीलर का कमीशन जोड़ा गया. इन सभी टैक्स को मिलाने के बाद उपभोक्ताओं से एक लीटर पेट्रोल के लिए 74 रुपए वसूले जाते हैं. इसी तरह राज्य सरकार डीजल पर 12 रुपए वैट वसूलती है.

पिछले 5 महीनों में तेल की कीमतें.

कच्चे तेल की कीमत क्यों कम हो रही

देश-दुनिया में शायद ही किसी ने सोचा होगा कि दुनियाभर में 'ब्लैक गोल्ड' के नाम से मशहूर कच्चा तेल 1 अप्रैल 2020 को (25 डॉलर/बैरल) पानी से भी सस्ता हो गया था. दरअसल, रूस तेल प्रोडक्शन घटाने के पक्ष में नहीं था, जबकि ओपेक देश (पेट्रोलियम निर्यातक देशों का संगठन) प्रोडक्शन घटाने की बात कह रहे थे. यही असहमति प्राइस वॉर का कारण बन गई. जिसे लेकर सऊदी अरब ने रूस के साथ क्रूड को लेकर प्राइस वॉर छेड़ दिया है, जिसकी वजह से कीमतें घट रही हैं.

OPEC क्या है

OPEC (Organization of the Petroleum Exporting Countries) की स्थापना 14 सितम्बर 1960 को पांच देशों द्वारा बगदाद सम्मेलन में हुई थी. यह पेट्रोलियम निर्यात करने वाले देशों का एक स्थायी अंतर सरकारी संगठन है. सितंबर 2019 में विश्व के कुल कच्चे तेल उत्पादन में ओपेक सदस्य देशों का हिस्सा 33.1% था. वर्तमान में ओपेक के कुल 14 सदस्य देश हैं. ओपेक की स्थापना के पहले 5 वर्षों तक इसका मुख्यालय जिनेवा स्विट्जरलैंड में था. लेकिन 1 सितंबर 1965 को इसे ऑस्ट्रिया के वियना ट्रांसफर कर दिया गया. भारत अपना ज्यादातर कच्चा तेल OPEC देशों से ही खरीदता है.

सुबह छह बजे बदलती है कीमत

प्रतिदिन सुबह छह बजे पेट्रोल और डीजल की कीमतों में बदलाव होता है. सुबह छह बजे से ही नई दरें लागू हो जाती हैं.

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9 मिलियन टन तेल जहाजों में स्टोर

भारत विश्व का तीसरा सबसे बड़ा तेल का कंज्यूमर और आयातक है. केंद्रीय पेट्रोलियम मंत्री धर्मेंद्र प्रधान ने ईंधन की बढ़ती कीमतों पर कहा था कि 'सस्ती कीमतों का फायदा उठाते हुए हमने 5.33 मिलियन टन वाले स्ट्रेटेजिक स्टोरेज को भर लिया है. 9 मिलियन टन तेल अभी भी जहाजों में स्टोर है, जो विश्व के अलग-अलग हिस्सों में है'.

80 फीसदी आयात करता है भारत

भारत अपनी जरूरत का 80 फीसदी तेल आयात करता है. धर्मेंद्र प्रधान ने कहा कि भारत ने जितना तेल स्टोर किया है. वह जरूरत का करीब 20 फीसदी है. सरकार स्ट्रेटेजिक स्टोर को 1 मिलियन टन बढ़ाने पर विचार कर रही है.

पेट्रोलियम मंत्रालय से जुड़े अधिकारियों के मुताबिक, 2018-19 में कुल 21 करोड़ 16 लाख टन पेट्रोलियम उत्पादों की खपत हुई. इससे पहले 2015-16 में यह 18 करोड़ 47 लाख टन रही थी. देश में कच्चे तेल का उत्पादन खपत के मुकाबले काफी कम है, लेकिन कच्चे तेल को विभिन्न उत्पादों में बदलने के मामले में भारत सरप्लस स्थिति में है. बीते वित्त वर्ष में पेट्रोलियम उत्पादों का उत्पादन 26.24 करोड़ टन के आसपास रहा. पेट्रोलियम योजना एवं विश्लेषण प्रकोष्ठ के मुताबिक, उत्तराखंड में वर्ष 2018-19 में 17 लाख मीट्रिक टन पेट्रोलियम पदार्थों की खपत हुई थी. वहीं, 2019-20 में 16 लाख मीट्रिक टन पेट्रोलियम पदार्थों की खपत हुई है.

भारत ने कितना तेल स्टोर किया है?

भारत दुनिया का तीसरा सबसे बड़ा कच्चे तेल का आयातक देश भी है. धर्मेंद्र प्रधान के मुताबिक, भारत में 53.3 लाख टन स्ट्रेटेजिक स्टोरेज हैं, जोकि पूरी तरह से भरे हुए हैं. इसके अलावा कई जहाजों पर भी करीब 85 से 90 लाख टन तेल का भंडार है. इसका एक बड़ा हिस्सा खाड़ी देशों में है.

किस देश में कितना लगता है टैक्स

अमेरिका में कुल कीमत का 19 फीसदी, जापान में 47 फीसदी, यूके में 62 फीसदी और फ्रांस में 63 फीसदी टैक्स के रूप में लगता है.

भारत में जेट फ्यूल

जेट फ्यूल या एविएशन टरबाइन फ्यूल (एटीएफ) की जरूरत विमानों के संचालन के लिए किया जाता है. जिसका प्रयोग जेट और टर्बोप्रॉप इंजन वाले विमान को पावर देने के लिए किया जाता है. यह एक विशेष प्रकार का पेट्रोलियम आधारित ईंधन है. अधिकतर कॉमर्शियल विमानन कंपनियां ईंधन के तौर पर जेट-ए एवं जेट ए-1 ईंधन का इस्‍तेमाल करती है.

कैसे तय होती है एटीएफ की कीमत

एटीएफ की कीमतें क्रूड ऑयल की कीमतों के साथ ऊपर-नीचे होती रहती है. क्योंकि एटीएफ क्रूड ऑयल के शुद्धिकरण प्रक्रिया (अर्क निकालकर) से बनता है. इस प्रकार वैश्विक मांग, आपूर्ति, वैश्विक आर्थिक परिदृश्य, करेंसी वैल्यू, राजनीतिक तनाव के चलते भी एटीएफ की दरें घटती-बढ़ती रहती हैं.

एटीएफ के सस्ता होने का फायदा

वैश्विक अर्थव्‍यवस्‍था के विकास में एविएशन सेक्टर की भूमिका महत्वपूर्ण है. एटीएफ का सस्ता होना एविएशन इंडस्ट्री के लिए बड़ी राहत की बात होती है. अगर एटीएफ की दरों में कमी होती है और एयरलाइंस पैसेंजर किराए में कमी का ऐलान करती है तो जनता को इसका सीधा फायदा मिल सकता है. क्‍योंकि, एविएशन सेक्टर में एयरलाइंस का 40 से 50 फीसदी खर्च एटीएफ की खरीददारी पर ही होता है.

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