देहरादून: देशभर में विजयदशमी का त्यौहार बड़े ही धूमधाम से मनाया जा रहा है. 9 दिनों तक नवदुर्गा की पूजा और व्रत करने के बाद नवमी के दिन कन्याओं का पूजन किया जाता है. दशमी के दिन से पूर्णमासी तक गोरखा समुदाय के हर घर और कुटुंब में बड़े-बुजुर्ग छोटों को तिलक लगाने की परंपरा को निभाते हैं, जो आपसी रिश्तो के अटूट बंधन को और मजबूत करती है.
विजयदशमी की मान्यता: धार्मिक मान्यता अनुसार आज के ही दिन भगवान श्री राम ने रावण का वध कर लंका पर विजय प्राप्त की थी. असत्य पर सत्य और अधर्म पर धर्म की विजय पताका लहराने के हर्षोल्लास में दशहरे का त्यौहार मनाने की त्रेता युग से परंपरा में चली आ रही है. क्या आपको मालूम है गोरखा समुदाय में विजयदशमी का कितना महत्व है. विजयदशमी के दिन से अगले 5 दिनों तक गोरखा समुदाय में दशहरे का त्यौहार बड़े ही हर्ष, उमंग और खुशियों की सौगात वाले उत्सव के रूप में मनाया जाता है.
लाल और सफेद टीका: गोरखा समुदाय में 5 दिनों तक चलने वाला दशहरा इसलिए भी खास है, क्योंकि साल भर इंतजार के बाद परिवार रिश्तेदार एक दूसरे को अपने घर आने का निमंत्रण देते हैं. जिसमें कुटुंब के छोटे बड़ों का मिलन होता है. सदियों पुरानी परंपरा के मुताबिक बड़े बुजुर्ग लाल और सफेद रंग का टीका रिश्तों के सम्मान को कायम रखने के लिए लगाते हैं. लाल टीका जिसमें सिंदूर और चावल होता है, उसे राज सिंहासन समृद्धि के प्रतीक के रूप में माना जाता है. जबकि सफेद रंग यानी दही और चावल का टीका शांति और आपसी भाईचारा निभाने का संदेश देता है.
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इतना ही नहीं इन दोनों रंगों के टीका में सबसे खास महत्व जवरा यानी 5 तरह के हरियाली पौधों का होता. नवमी के पहले दिन से तिल, मक्का, जौ, गेहूं व बाजरा को पूजा स्थल पर जमाया जाता है. जिसे गोरखा समुदाय में जवरा कहते हैं. यह जवरा तिलक करने के साथ ही आशीर्वाद के रूप में बड़ों द्वारा छोटों को दिया जाता है.