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राजतरंगिणी और अष्टाध्यायी में है कालसी हरिपुर का वर्णन, जानिए धार्मिक और ऐतिहासिक महत्व

Religious and historical importance of Kalsi Haripur कालसी हरिपुर का बड़ा धार्मिक और ऐतिहासिक महत्व है. ये स्थान इतना प्रसिद्ध था कि राजतरंगिणी और अष्टाध्यायी तक में इस स्थान का जिक्र है. आज सनातन धर्म के संस्कारों और व्रत त्यौहारों के लिए जो मान्यता हरिद्वार और ऋषिकेश को प्राप्त है, वही मान्यता कभी कालसी हरिपुर को भी प्राप्त थी. इसे यज्ञों की भूमि भी कहा जाता है. आइए आपको बताते हैं, कालसी हरिपुर का धार्मिक और ऐतिहासिक महत्व.

kalsi haripur
कालसी हरिपुर

By ETV Bharat Uttarakhand Team

Published : Oct 30, 2023, 5:04 PM IST

Updated : Oct 30, 2023, 10:17 PM IST

राजतरंगिणी और अष्टाध्यायी में है कालसी हरिपुर का वर्णन.

विकासनगर:उत्तराखंड के देहरादून जिला मुख्यालय से करीब 50 किमी दूर उत्तर भारत का जौनसार बावर का प्रवेश द्वार कालसी हरिपुर का युगों-युगों से वैभवशाली इतिहास रहा है, जो अपने धार्मिक और ऐतिहासिक महत्व को उजागर करता है. इसका सबसे बड़ा प्रमाण कालसी हरिपुर से जीवनदायिनी मां यमुना नदी का अपने निर्मल जल के साथ कल-कल प्रवाह करना है. इसके अलावा कालसी हरिपुर से यमुना के साथ अन्य सहायक उपनदियों का संगम भी इसे वैभवशाली बनाता है.

सामाजिक कार्यकर्ता और इतिहासकार श्रीचंद शर्मा बताते हैं कि कालसी हरिपुर उत्तर भारत का पहला स्थान है, जहां चार नदियों यमुना, टौंस (तमसा), अमलावा और नौरा नदी का संगम स्थल है. वह बताते हैं कि सीएम पुष्कर सिंह धामी द्वारा हाल ही में यमुना नदी के तट पर हरिपुर कालसी में स्नान घाट, यमुना घाट के निर्माण कार्य और लोक पंचायत की ओर से प्रस्तावित जमुना कृष्ण धाम मंदिर का शिलान्यास किया गया. इसके साथ ही अब कालसी की पहचान प्रदेश के चारों तरफ बढ़ने लगी है.

बाढ़ से बर्बाद हुआ जौनबार बावर का इतिहास: हालांकि, श्रीचंद शर्मा बताते हैं कि कालसी की बात करने के दौरान हरिपुर का स्मरण करना भी बेहद जरूरी है. वह बताते हैं कि कई सालों पहले हरिपुर, हरिद्वार के बाद ऐसा स्थान था, जिसकी मान्यता पूरे हिमालय में थी. लेकिन सातवीं शताब्दी के आखिरी में हरिपुर में आई बाढ़ से पूरा जौनसार बावर (यमुना नदी का मार्ग) बर्बाद हो गया. तब से कालसी हरिपुर अपनी ख्याति को प्राप्त करने के लिए जद्दोजहद कर रहा है. उन्होंने कहा कि जौनसार बावर की संस्कृति भी उतनी ही पुरानी मानी जाती है, जितना पुराना यमुना नदी का धरती पर अवतरित होना है.
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राजतरंगिणी और अष्टाध्यायी किताबों में कालसी का इतिहास: वह बताते हैं कि इतिहास की दृष्टि से कालसी का शिलालेख बहुत पुराना नहीं है. 1860 में अंग्रेज अधिकारी मिस्टर फॉरेस्ट ने इसको खोजा था. भारतीय इतिहास का जिक्र साहित्य जगत के तहत राजतरंगिणी और अष्टाध्यायी दो बड़ी किताबों में किया गया है. किताबों में दी गई जानकारी को हम कुलिंद साम्राज्य के रूप में भी जानते हैं. कुलिंद का इतिहास भारतीय इतिहास में बड़ा इतिहास रहा है. कालसी की धरती कुलिंद के नाम से भी प्रसिद्ध है. इन पुस्तकों में जौनसार बावर का लिखित इतिहास भी है. इसलिए ये कहा जा सकता है कि कालसी का इतिहास काफी पुराना और ऐतिहासिक है.

देवताओं को समर्पित है जौनसार बावर की भूमि: इतिहासकार श्रीचंद शर्मा की मानें तो जौनसार बावर देवताओं को समर्पित है. यहां चार नदियों का महासंगम स्थल है. इस महासंगम के कारण इसको यज्ञ क्षेत्र माना गया है. श्रीचंद शर्मा कहते हैं कि रामायण में भगवान राम, रघुकुल और आचार्य सगर के भी पूर्वज रहे हैं. जौनसार बावर में आचार्य सगर और राजा अम्बरीष ने अंबाडी (बाढ़वाला) के अंदर यज्ञ किया था. इसलिए बाढ़वाला क्षेत्र को यज्ञ भूमि भी कहा जाता है.
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चारों नदियों के संगम पर धार्मिक कर्मकांडों का काफी महत्व: इतिहासकार शर्मा बताते हैं कि आज अगर किसी के परिवार से कोई स्वर्गवासी हो जाता तो उनकी अस्थियां हरिद्वार-ऋषिकेश गंगा में विसर्जन से लेकर सभी धार्मिक कर्मकांड किया जाना सनातम धर्म के संस्कार माने जाते हैं. लेकिन कई सालों पहले जब सब लोग हरिद्वार नहीं जा पाते थे, तो वह सब धार्मिक कर्मकांड कालसी हरिपुर में चार नदियों के संगम पर किया जाता था. लेकिन जागरूकता के अभाव के कारण जौनसार बावर के लोग भी यहां की महत्ता को भूलते जा रहे हैं. उन्होंने कहा कि उत्तराखंड सरकार को इस क्षेत्र के उद्भव के लिए जागरूकता अभियान चलाना चाहिए. यहां घाट बनवाने चाहिए. इससे कालसी हरिपुर का धार्मिक महत्व और भी बढ़ेगा. साथ ही पर्यटन और धर्मिक आस्था को नए पंख लगेंगे.

Last Updated : Oct 30, 2023, 10:17 PM IST

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