सरकारी स्कूलों में फ्री किताबें पर संकट! देहरादून: उत्तराखंड के स्कूलों में नया सेशन शुरू होने के लिए बेहद कम समय रह गया है और अब तक शिक्षा विभाग विद्यालयों तक किताबें नहीं पहुंचा पाया है. जानकारों की माने तो पहले कोरोना और अब रूस यूक्रेन युद्ध के कारण पब्लिशर्स की दिक्कतें बढ़ गयी हैं. ऐसे में शिक्षा विभाग के लिए सरकारी विद्यालयों तक किताबें पहुंचाना मुश्किल होगा.
दरअसल, उत्तराखंड के सरकारी विद्यालयों में मुफ्त किताबें बच्चों तक पहुंचाने के प्रयास चल रहे हैं, इसके लिए शिक्षा विभाग ने टेंडर आमंत्रित कर लिए हैं. लेकिन मुश्किल यह है कि कागज, स्याही और छपाई के महंगा होने से कम दामों में पुस्तकों की छपाई का काम खटाई में पड़ सकता है.
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बता दें कि 2018 के बाद कोरोना के चलते इनके दाम बेहद ज्यादा बढ़ गए थे, उधर रूस यूक्रेन युद्ध के चलते कागज, स्याही और छपाई के दाम 3 गुना तक बढ़ गए हैं. ऐसे में शिक्षा विभाग टेंडर के दौरान पब्लिशर्स के कम दामों में भाग लेने को लेकर आशंकित दिख रहा है.
बताया गया कि 240 रुपए में आने वाले कागज के रिम के दाम बढ़कर ₹600 से भी ज्यादा हो चुके हैं. इसी तरह स्याही के दाम ₹210 किलोग्राम थे, जो अब ₹500 किलोग्राम हो चुकी है. उधर छपाई के रेट भी 3 गुना बढ़ चुके हैं. ऐसे में आशंका है कि शिक्षा विभाग की निविदा में पुराने दामों पर शायद ही कोई पब्लिशर्स दिलचस्पी दिखाएगा.
हालांकि शिक्षा विभाग के महानिदेशक बंशीधर तिवारी कहते हैं कि विभाग जल्द से जल्द निविदा पूरी कर बच्चों तक पुस्तके पहुंचाने का प्रयास कर रहा है. बंशीधर तिवारी ने बताया कि रूस यूक्रेन युद्ध के चलते प्रिंटिंग से जुड़े सामान की कीमतें आसमान छू रही है और इसका सीधा असर प्रिंटिंग से जुड़े व्यवसाय पर दिखाई दे रहा है.
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उधर शिक्षा विभाग के सामने चुनौती है कि वह पुराने और कम दामों पर पुस्तकों की प्रिंटिंग करवा कर विद्यालयों में बच्चों तक पुस्तकें पहुंचाएं. स्कूलों में फ्री किताबें पहुंचाने के लिए शिक्षा विभाग के सामने बेहद बड़ी चुनौती है, क्योंकि अब नया सेशन शुरू होने जा रहा है. लिहाजा आने वाले दो महीनों के भीतर सभी स्कूलों में पुस्तकें पहुंचाना अब मुश्किल ही दिखाई दे रहा है.
इससे भी बड़ी बात यह है कि जिस तरह टेंडर में पब्लिशर्स के भाग न लेने को लेकर आशंका व्यक्त की गई है. ऐसे में यदि टेंडर प्रक्रिया को पूरा नहीं किया जाता तो बच्चों को मुफ्त किताबें देना शिक्षा विभाग के लिए नामुमकिन हो जाएगा. वैसे यह दिक्कतें केवल सरकारी स्कूलों तक किताबों को पहुंचाने की ही नहीं है. बल्कि तमाम न्यूज़पेपर और दूसरे प्रिंटिंग से जुड़े काम भी महंगे हो गए हैं और इन सभी में परेशानियां काफी ज्यादा बढ़ती हुई दिखाई दे रही हैं.