देहरादून:आगामी विधानसभा चुनाव में महज कुछ ही महीनों का वक्त बचा है, जिसे देखते हुए राजनीतिक पार्टियां पूरे जोरशोर से तैयारियों में जुटी हैं. जहां सत्ताधारी पार्टी बीजेपी जहां आगामी विधानसभा चुनाव में जवानों और किसानों को रिझाने का प्रयास कर रही है. वहीं, पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत दलित वोट बैंक को साधने का प्रयास करते नजर आ रहे हैं. हरीश रावत ने यह भी इच्छा जताई कि वो दलित को मुख्यमंत्री बनना देखना चाहते हैं. आखिर क्या है हरीश रावत का यह चुनावी स्टैंड और आगामी चुनाव में दलित नाम का कितना पड़ेगा फर्क?
पंजाब कांग्रेस प्रभारी हरीश रावत ने पंजाब में किसी दलित को प्रदेश की जिम्मेदारी मिलने के बाद उत्तराखंड में भी भविष्य में दलित मुख्यमंत्री देखने की बात कही है. हरीश रावत के इस बयान के बाद बीजेपी समेत अन्य सभी राजनीतिक पार्टियों के राजनीतिक समीकरण बिगड़ना तय है. क्योंकि एक आंकड़े के अनुसार पूरे प्रदेश में करीब 22 फीसदी वोट बैंक दलित है और करीब 18 सीटों पर दलित निर्णायक भूमिका में हैं.
हरीश रावत की इच्छा:उत्तराखंड में 2022 की शुरुआत में विधानसभा चुनाव होने हैं. इसके लिए राज्य में भाजपा और आम आदमी पार्टी के साथ ही कांग्रेस चुनावी बिगुल फूंक चुकी है. कुछ दिन पहले लक्सर की परिवर्तन यात्रा रैली में हरीश रावत ने पंजाब में सीएम बनने की घटना पर कुछ इस तरह अपनी बात कही- 'मैं ईश्वर से और गंगा मैया से प्रार्थना करता हूं कि अपने जीवन में उत्तराखंड में किसी दलित को राज्य के मुख्यमंत्री के रूप में देख सकूं. हम इस लक्ष्य के लिए प्रतिबद्ध रहेंगे'.
कांग्रेस के लिए चुनौती:प्रदेश में दलित वोट बैंक को साधना कांग्रेस और हरीश रावत के लिए इतना आसान भी नहीं है, जितना दिख रहा है. दरअसल, प्रदेश में दलित वोटबैंक छितरा हुआ है. ये कभी एकमुश्त कभी किसी ओर नहीं जाता है, जिसका तोड़ निकालना कांग्रेस के लिए बड़ी चुनौती है. वहीं, प्रदेश में आम आदमी पार्टी की सक्रियता भी कांग्रेस की राह में एक बड़ा रोड़ा है. तीसरी सबसे बड़ी चुनौती पार्टी में किसी बड़े दलित चेहरे का न होना है, जिससे सीधे तौर पर दलित वोट बैंक को साधा जा सके.
वरिष्ठ पत्रकार भागीरथ शर्मा भी यही मानते हैं कि हरीश रावत का यह बयान महज एक चुनावी दांव है. उन्होंने कहा कि मुख्यमंत्री मेरिट बेस पर बनाए जाते हैं. लेकिन पंजाब में जो हुआ वह सिर्फ दलित वोट बैंक को आकर्षित करने का ही एक एजेंडा है. क्योंकि पंजाब में करीब 30 से 31 प्रतिशत दलित हैं. इसी तरह हरिद्वार और उधम सिंह नगर जिले में भी काफी संख्या में दलित हैं. कई सीटों पर दलित निर्णायक भूमिका में भी है, जिसके चलते कांग्रेस को लगता है कि वह दलित प्रेम दिखाकर दलित वोट को अपने पाले में कर सकती है.