देहरादूनःदेवभूमि उत्तराखंड में जितना हम में बसती हैं उतनी ही हम में देवभूमि बसती है. देवभूमि उत्तराखंड जितनी सुंदर है उतनी ही यहां प्राकृतिक आपदाओं का जोखिम भी है. अंतरराष्ट्रीय आपदा न्यूनीकरण दिवस के मौके पर आइए जानते हैं कि उत्तराखंड आपदाओं से निपटने के लिए कितना तैयार है, वह भी तब जब 2013 का बड़ा अनुभव हमारे सामने है. उत्तर प्रदेश से अलग हुआ पहाड़ी राज्य उत्तराखंड जितना खुद में असीम सुंदरता को समेटे हुए है उतनी ही यहां आपदाओं का भी बोलबाला है, जिसकी एक झलक उत्तराखंड राज्य मात्र अपनी 13 वर्ष की बाल्यावस्था में देख चुका है.
भौगोलिक दृष्टिकोण से उत्तराखंड राज्य जितनी विविधताओंं से भरा है उतनी ही यहां प्रकृति अपना कोहराम भी मचाती है. हर साल पूरा मानसून सीजन उत्तराखंड के लोगों के साथ-साथ राज्य सरकार की भी सांसें थामकर रखता है, तो वहीं हर साल आने वाली आपदाओं में कई जानें भी जाती हैं. आपदाओं की बात करें तो 2013 का उदाहरण हम सबके लिए सबसे बड़ा है.
2013 की आपदा ने खोल दी आंखें, भयावह था वो मंजर
16-17 जून 2013 की सुबह उत्तराखंड के केदारनाथ में खराब मौसम के साथ उजाला तो हुआ लेकिन शाम होते-होते त्रासदी का ऐसा अंधेरा छा गया जो अगली सुबह उत्तराखंड को अंदर से चकनाचूर कर चुका था. जून महीने के उस रविवार ने उत्तराखंड को ऐसे हाशिए पर लाकर खड़ा कर दिया जहां से उत्तराखंड अगले कई सालों तक जूझता रहा और अब 6 सालों बाद भी उत्तराखंड लगातार आपदा से जूझने के लिए तंत्र को मजबूत कर रहा है.
उस समय आपदा प्रबंधन का यह हाल था कि बचाव कार्य तो दूर की बात है, आपदा के कई दिनों बाद भी राज्य सरकार के पास नुकसान की सही जानकारी भी नहीं थी. आपदा के करीब तीन दिन बाद ही सरकार को केदारघाटी में हुए नुकसान का आंकलन लग पाया था और उसके बाद मात्र एनडीआरएफ और सेना के कंधों पर इस आपदा से उबरने की जिम्मेदारी थी. संसाधनों और कनेक्टिविटी के हालात इतने लचर थे कि केवल मीडिया रिपोर्ट्स ही सूचनाओं का एकमात्र जरिया बाकी बचा था.
बहरहाल, मात्र 13 साल की बाल्यावस्था में उत्तराखंड राज्य के सामने यह चुनौती कोई सामान्य चुनौती नहीं थी. इस तरह के हालातों का किसी ने दूर-दूर तक सोचा भी नहीं था, लिहाजा इस तरह की चुनौतियों के लिए प्रदेश का तैयार होना मुमकिन नहीं था, लेकिन इतनी बड़ी चुनौती के सामने आने के बाद राज्य सरकार ने गंभीरता दिखाते हुए इस बात को स्वीकार किया कि उत्तराखंड राज्य कोई सामान्य राज्य नहीं है, बल्कि विशेष परिस्थितियों वाला हिमालयी राज्य है, जहां इस तरह की चुनौतियों के लिए 24*7 तैयार रहना होगा.
आपदा के बाद लगातार प्रदेश सरकार ने आपदा प्रबंधन और न्यूनीकरण को लेकर तमाम तरह की पहल शुरू की. आज की तारीख में आपदा प्रबंधन इस तरह के हालातों से निपटने के लिए खुद को काफी हद तक तैयार मान रहा है.
बता दें कि वर्तमान में उत्तराखंड आपदा प्रबंधन और न्यूनीकरण विभाग कितना मुस्तैद है और 6 सालों में इस तरह की दैवीय आपदाओं से निपटने के लिए क्या कुछ नया किया गया है. आपदा निदेशक पीयूष रौतेला ने आपदा प्रबंधन को लेकर तमाम बातें ईटीवी भारत को बताईं.
कितना मजबूत है उत्तराखंड का आपदा प्रबंधन तंत्र
एसडीआरएफ का गठन
2013 की आपदा के बाद हालांकि हालात अचानक नियंत्रण से बाहर हुए थे, लेकिन इसके बावजूद भी राज्य सरकार के पास इन बिगड़े हुए हालातों से निपटने के लिए कुछ मजबूत रणनीति और तंत्र नहीं था. जिसकी कमी को 2013 की आपदा में सबसे ज्यादा महसूस किया गया. इस घटना के बाद राज्य सरकार द्वारा 2014 में स्टेट डिजास्टर रिस्पांस फोर्स का गठन किया गया. उत्तराखंड राज्य आज उन कुछ चुनिंदा राज्यों की लिस्ट में जुड़ चुका है जिसके पास खुद की आधुनिक डिजास्टर रिस्पांस फोर्स मौजूद है.
कनेक्टिविटी में सुधार, 180 सेटेलाइट फोन, हर जिले में ड्रोन और वेदर स्टेशन की स्थापना
आपातकालीन संचार तंत्र को मजबूत किए जाने के लिए आपातकालीन परिचालन केंद्रों और प्रत्येक तहसील स्तर पर सेटेलाइट फोन उपलब्ध कराए गए. आज की तारीख में कुल 180 सैटेलाइट फोन आपदा प्रबंधन द्वारा उपलब्ध कराए गए हैं.