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उत्तराखंडः हरक सिंह रावत से जुड़ा है ये अनोखा मिथक, क्या इस बार टूटेगा?

उत्तराखंड के वन मंत्री हरक सिंह रावत इन दिनों सीबीआई के मुकदमे में नाम आने को लेकर चर्चाओं में है. ऐसे भी एक बार फिर हरक सिंह रावत से जुड़े उस मिथक पर बहस तेज हो गई है, जो उनके मंत्री पद से जुड़ा हुआ है. जानिए हरक सिंह रावत का मंत्री पद से जुड़ा ये अनोखा मिथक.

देहरादून स्पेशल

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Published : Oct 24, 2019, 7:55 PM IST

Updated : Oct 24, 2019, 9:03 PM IST

देहरादून:उत्तराखंड के तेजतर्रार और दबंग नेता हरक सिंह रावत इन दिनों 2016 के स्टिंग मामले में मुकदमा दर्ज होने के बाद चर्चाओं में हैं. उत्तराखंड में हरक सिंह रावत एक ऐसे नेता हैं जो 1991 में चुनाव जीतकर विधानसभा पहुंचे और उत्तरप्रदेश में तत्कालीन सरकार में सबसे कम उम्र के मंत्री भी बने. हरक सिंह रावत के कद का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि उन्होंने उत्तर प्रदेश में बतौर मंत्री काम किया. राज्य स्थापना के बाद उत्तराखंड में भी दो बार मंत्री बन चुके हैं. यही नहीं हरक ने विपक्ष में नेता प्रतिपक्ष की भूमिका भी अदा की है, लेकिन इस सब के बीच हरक सिंह के साथ एक ऐसा मिथक जुड़ गया है जो उनके लिए पीड़ा दायक है. जी हां, उत्तराखंड में हरक सिंह रावत एक ऐसे नेता हैं, जिन्होंने कभी भी अपना मंत्री पद का कार्यकाल पूरा नहीं किया है. दरअसल, 1991 में बेहद कम उम्र में ही मंत्री बनने वाले हरक सिंह अब तक 3 सरकारों में मंत्री बन चुके हैं.

हरक सिंह रावत से जुड़ा है ये अनोखा मिथक

हरक सिंह रावत साल 1991 में भाजपा से टिकट लेकर पौड़ी सीट पर जीत हासिल की और कल्याण सिंह सरकार में उत्तर प्रदेश में पर्यटन मंत्री बने. लेकिन 1992 में बाबरी मस्जिद विध्वंस के बाद कल्याण सिंह सरकार बर्खास्त कर दी गयी. इसके साथ ही हरक सिंह रावत बतौर मंत्री अपना करीब एक साल का ही कार्यकाल पूरा कर पाए.

इसके बाद हरक सिंह 2002 में राज्य स्थापना के बाद पहली निर्वाचित सरकार में कांग्रेस के टिकट पर लैंसडाउन से चुनाव जीत गए. उन्हें तिवारी सरकार में मंत्री पद से नवाजा गया. हरक सिंह को राजस्व, खाद्य और आपदा प्रबंधन की जिम्मेदारी दी गई थी, लेकिन तभी एक साल बाद ही साल 2003 में जैनी नाम की असम निवासी महिला ने उन पर यौन उत्पीड़न का आरोप लगाकर सनसनी फैला दी. मामले में हरक सिंह को नैतिकता के आधार में इस्तीफा देना पड़ा और वो अपना कार्यकाल पूरा नहीं कर सकें.

तीसरी बार हरक सिंह रावत मंत्री पद से तब चूक गए जब उन्होंने 2012 में रुद्रप्रयाग से जीते और विजय बहुगुणा सरकार में मंत्री पद संभाला. बहुगुणा सरकार में हरक सिंह रावत चिकित्सा शिक्षा, कृषि और सैनिक कल्याण मंत्री रहे. इस बार हरक सिंह रावत अपना कार्यकाल पूरा कर पाते, इससे पहले ही तत्कालीन सीएम हरीश रावत के खिलाफ मोर्चा खोलते हुए उन्होंने अपने 9 विधायकों के साथ बगावत कर दी. हरक सिंह रावत कांग्रेस छोड़ते हुए बीच कार्यकाल में बीजेपी में शामिल हो गए. इस तरह हरक सिंह रावत तीसरी बार मंत्री बनने के बावजूद भी अपना कार्यकाल पूरा नहीं कर पाए.

साल 2017 के चुनाव में हरक सिंह रावत एक बार फिर कोटद्वार से चुनाव लड़कर जीत कर आए हैं और त्रिवेंद्र सरकार में वन मंत्री भी हैं. लेकिन एक बार फिर सीबीआई द्वारा हरक सिंह रावत के खिलाफ मुकदमा दर्ज करने के बाद उनके मंत्री पद को लेकर संकट गहराने लगा है. विपक्ष के कई देता जहां उनके इस्तीफे की मांग करने लगे हैं तो आपराधिक सरहद के मामले में मुकदमा दर्ज होने के बाद पार्टी के स्तर पर भी उनके मंत्री पद पर मुश्किलें खड़ी हो गई हैं.

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ऐसे में सवाल यही उठता है कि क्या हरक सिंह रावत के साथ मंत्री पद को लेकर जुड़ा हुआ मिथक टूट पाएगा या फिर एक बार फिर उन्हें आधे कार्यकाल में ही मंत्री पद गंवाना पड़ेगा. हालांकि, हरक सिंह रावत इस सवाल पर खुद की सफाई देते हुए कहते हैं कि जो काम करते हैं उन पर ही आरोप लगते हैं जो काम नहीं करते उन पर आरोप भी नहीं लगते.

हरक सिंह रावत पर सीबीआई द्वारा मुकदमा दर्ज करने के बाद उनके पद को लेकर कई सवाल उठने लगे हैं. इस बीच बीजेपी नेता स्टिंग मामले पर हरक सिंह रावत द्वारा ही सही जवाब देने की बात कह रहे हैं. सरकार के शासकीय प्रवक्ता मदन कौशिक की मानें तो जब एक पत्रकार ऐसा स्टिंग करता है तो अपने साथ कई लोगों को साथ में लेता है. इसलिए इस मामले में हरक सिंह रावत ही ज्यादा बेहतर तरीके से जवाब दे पाएंगे.

Last Updated : Oct 24, 2019, 9:03 PM IST

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