देहरादून: राज्य गठन के बाद लोगों को विकास की आस बंधी थी. वहीं विशेष रूप से इंडस्ट्री से जुड़े लोगों ने औद्योगिक विकास की परिकल्पना की उड़ान भरी, लेकिन सूबे में उस अनुपात में औद्योगिक क्षेत्र का विकास नहीं हो पाया है. साथ ही जिस रफ्तार से औद्योगिक इकाइयों का दायरा बढ़ना चाहिए था वे भी नहीं बढ़ पाया है. हालांकि छोटे से लेकर बड़े तमाम उद्योग इस प्रदेश में स्थापित हुए जिनसे लाखों बेरोजगार युवाओं को रोजगार भी प्राप्त हुआ. लेकिन सतत औद्योगिक विकास की सुस्त चाल ने प्रदेश के विकास में चार चांद नहीं लगा पाया. जैसे की लोगों को उम्मीदें थी.
गौर हो 9 नवंबर 2000 को उत्तर प्रदेश से अलग होकर उत्तराखंड का गठन हुआ था. अलग पहाड़ी राज्य बनने से क्षेत्र में इंडस्ट्री के नाम पर कुछ खास नहीं था. क्योंकि पहाड़ी क्षेत्र में गिने चुके बड़े उद्योग थे. यही नहीं 11 हजार के करीब सूक्ष्म और लघु उद्योग थे. लेकिन अलग पहाड़ी राज्य बनने के बाद राज्य के भीतर औद्योगिक के क्षेत्र में तेजी से विकास हुआ और राज्य के भीतर सूक्ष्म और लघु उद्योग की संख्या 60 हजार के करीब पहुंच गई, जिसमें 300 बड़े उद्योग हैं.
उत्तराखंड राज्य गठन के बाद पहली निर्वाचित सरकार के मुखिया रहे स्वर्गीय एनडी तिवारी ने साल 2003 में औद्योगिक क्षेत्र के लिए पैकेज दिया था. यही नहीं रुड़की से प्रदेश के विकास का रोडमैप भी तैयार किया था. साथ ही रुड़की के समीप भगवानपुर और हरिद्वार के सिडकुल में करीब 500 से अधिक उद्योगों की स्थापना की थी. जिससे औद्योगिक के क्षेत्र में खरबों के निवेश से लाखों लोगों को नौकरियां मिली और राज्य सरकार को हर साल करोड़ों का राजस्व प्राप्त होता है.
यही नहीं अगर 19 सालों के सफर में उत्तराखंड राज्य बनने और राज्य गठन से पहले इस पहाड़ी क्षेत्र में उद्योगों के स्थिति की बात करें तो राज्य गठन से पहले उद्योगिक क्षेत्र में करीब 7 हजार करोड़ का निवेश था. जिससे करीब 40 हजार लोगों को रोजगार मिल मिला. लेकिन वर्तमान समय मे औद्योगिक क्षेत्र में करीब 40 हजार करोड़ का इन्वेस्टमेंट है और करीब 5 लाख लोगों को रोजगार मिल रहा है.