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इन मुद्दों पर ध्यान दे सरकार तो बदल जाएगी उत्तराखंड की तस्वीर - विकास

उत्तराखंड गठन से लेकर अबतक कई उतार-चढ़ाव देखे गए, लेकिन जिस मकसद से उत्तराखंड का गठन किया गया था वो आज भी अधूरा है. उद्योग जगत से जुड़े लोगों ने औद्योगिक विकास की जो परिकल्पना की थी, वह शायद आज भी पूरी नहीं हो पाई है. ईटीवी भारत बताने जा रहा कि आखिर कैसे हो उत्तराखंड का विकास?

उत्तराखंड का विकास

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Published : Nov 18, 2019, 11:11 AM IST

Updated : Nov 18, 2019, 1:50 PM IST

देहरादून:राज्य गठन के बाद एक तक लम्बा समय बीत जाने के बाद प्रदेश की जनता और उद्योग जगत से जुड़े लोगों ने औद्योगिक विकास की जो परिकल्पना की थी शायद उस अनुपात में औद्योगिक क्षेत्र का विकास नहीं हो पाया है. यही वजह है कि पहाड़ी जिलों में आज भी विकास की दरकार है.

सरकार इन मुद्दों पर ध्यान दे तो बदल जाएगी उत्तराखंड की तस्वीर

ऐसे में उत्तराखंड राज्य को विकसित प्रदेश बनाने के लिए मौजूदा प्रदेश सरकार और सरकारी सिस्टम को अलग से पहल करने की जरूरत है, ताकि पहाड़ी प्रदेश उत्तराखंड का वास्तव में चहुमुखी विकास किया जा सके. देवभूमि और तपोभूमि के नाम से विख्यात उत्तराखंड के पर्वतीय क्षेत्रों में विकास कैसे किया जा सकता है ? आखिर कैसा होना चाहिए उत्तराखंड के विकास का स्वरूप ? इस पर ईटीवी भारत की एक विशेष पड़ताल...

प्रॉपर प्लानिंग और इंफ्रास्ट्रक्चर की जरूरत
उत्तराखंड उद्योग संघ के अध्यक्ष पंकज गुप्ता ने कहा कि पहाड़ के भौगोलिक स्वरूप के मुताबिक विकास का खाखा तैयार होना चाहिए. देवभूमि उत्तराखंड में नेचर रिसोर्स की अपार संभावनाएं है, लेकिन अगर राज्य सरकार औद्योगिक क्षेत्र में कुछ करना चाहती है तो इसके लिए बेहद जरूरी है कि प्रॉपर प्लानिंग की जाये, जो प्रोफेशनल होना चाहिए. जब तक उत्तराखंड राज्य का विकास करने के लिए प्रॉपर प्लानिंग नहीं की जाएगी, तब तक उत्तराखंड राज्य का विकास नहीं कर सकते हैं. राज्य सरकार इंफ्रास्ट्रक्चर को बढ़ाने की दिशा में काम तो कर रही है, लेकिन इंफ्रास्ट्रक्चर को अभी और बढ़ाने की जरूरत है.

तय समय पर योजनाओं को पूरा करने की जरूरत
पंकज गुप्ता ने कहा कि राज्य में प्रोजेक्ट कंप्लीमेंटेशन भी एक सबसे कमजोर कड़ी है, क्योंकि तमाम ऐसे प्रोजेक्ट प्रदेश में आए जो कुछ ही साल में पूरे होने चाहिए थे, लेकिन वह कई सालों तक पूरे नहीं हो पाए. जो एक उत्तराखंड के विकास के बाधा के रूप में सामने आये हैं. ऐसे में उत्तराखंड सरकार के रणनीतिकारों को विकास संबंधित प्रोजेक्ट को धरातल पर लागू करने में गंभीरता बरतनी चाहिए, ताकि विकास कार्यों को सही दिशा के साथ ही निर्धारित समय सीमा में आगे बढ़ाया जा सके. इससे न सिर्फ प्रदेश की जनता को तय समय सीमा में विकास सुविधाओं का लाभ मिल सकेगा, बल्कि सरकार पर अनावश्यक आर्थिक भार भी नहीं पड़ेगा.

जिला कैडर पर फोकस करने की जरूरत
गुप्ता ने बताया उत्तराखंड राज्य सरकार को चाहिए की राज्य स्तरीय कैडर की जगह जिला स्तरीय कैडर बनाया जाये, क्योंकि मूलभूत सुविधाओं से जुड़े अधिकारी पहाड़ों पर चढ़ना नहीं चाहते हैं. लिहाजा अगर राज्य सरकार जिला स्तरीय कैडर बनाती है तो ऐसे में उस जिले का निवासी अपने ही जिले में काम कर पाएगा और शिक्षा, स्वास्थ्य से जुड़ी तमाम बुनियादी सुविधाएं आम लोगों को मिल पाएंगी.

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इकोनॉमिक डेवलपमेंट के लिए ठोस प्लान की जरूरत
पंकज ने कहा कि उत्तराखंड राज्य सरकार को चाहिए कि लोकल इकोनामिक डेवलपमेंट का प्लान बनाए. इसके लिए पूरे प्रदेश का एसडब्ल्यूओटी (Strengths, Weaknesses, Opportunities and Threats) एनालिसिस किया जाए. यही नहीं प्रदेश के सभी जिलों एवं रीजन की एसडब्ल्यूओटी जाने और इसकी स्ट्रैंथ को लेकर वहां उसके अवसर पैदा करें. इन क्षेत्रों में सूक्ष्म और लघु उद्योग को विकसित करें. ताकि उस क्षेत्र के नेचुरल रिसोर्सेज का सदुपयोग कर पाएं. जिससे स्थानीय लोगों को रोजगार मिलेगा, साथ ही पलायन पर भी लगाम लगेगी. यही नहीं स्थानीय निवासियों और बेरोजगारों के स्किल डेवलप किए जाए, ताकि वह खुद रोजगार से जुड़ें या किसी कंपनी-फैक्ट्री में काम करने योग्य बन सकें. जिससे न सिर्फ बेरोजगारी खत्म होगी बल्कि अपने क्षेत्र में रहकर ही नए रोजगार पैदा कर सकेंगे.

समग्र नीति से मिलेगी विकास को गति
राजनीति के जानकार कुलदीप राणा का कहना है कि राजनीतिक अस्थिरता ब्यूरोक्रेसी की लगाम को कमजोर करती है. राजनीतिक शास्त्रों की मानें तो सिर्फ नेताओं का काम सत्ता पर काबिज होना नहीं है, बल्कि समाज निर्माण में भी उनकी अहम भूमिका होनी चाहिए. लेकिन उत्तराखंड में इसका सबसे बड़ा अभाव दिखाई दे रहा है. क्योंकि यहां के नेताओं ने भवनों, सड़कों का निर्माण तो किया, लेकिन समाज निर्माण करने में फेल साबित हुए. समाज निर्माण न होने की वजह से ही जनता और सरकार के बीच दूरियां बढ़ती चली गयीं. उत्तराखंड राज्य में पर्यटन की अपार संभावना हैं. इसके साथ ही जल शक्ति और वन शक्ति आदि की भी अपार संभावनाएं हैं. ऐसे में राज्य सरकार को इन क्षेत्रों के विशेषज्ञों के साथ मिलकर एक समग्र नीति बनाने की जरूरत है. इस समग्र नीति पर दृढ़ निश्चय कर काम करने की जरूरत है. अन्यथा राज्य विकास के लिए ऐसे ही भटकता रहेगा.

उत्तराखंड के चहुंमुखी विकास के दावे तो खूब किए जाते हैं, लेकिन विकास आखिर कैसा होना चाहिए? विकास करने का पैमाना क्या होना चाहिए ? इसके लिए शायद ईमानदारी से कोई भी होमवर्क करने को तैयार नहीं है. अब देखना दिलचस्प होगा कि आखिर भविष्य में किस फॉर्मूले पर उत्तराखड का सर्वांगीण विकास हो पायेगा, या फिर सत्ता सुख भोगने वाले राजनेताओं के सार्वजनिक मंचों से दिए गए राज्य के सर्वांगीण विकास के स्लोगन अधूरे ही रह जाएंगे.

Last Updated : Nov 18, 2019, 1:50 PM IST

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