विकासनगरः चकराता क्षेत्र के इंद्रोली गांव के प्राचीन महाकाली मंदिर में इनदिनों श्रद्धालुओं का तांता लगा हुआ है. मां काली के दर्शन के लिए हजारों की संख्या श्रद्धालु पहुंच रहे हैं. जेष्ठ महीने के पहले रविवार को श्रद्धालु नंगे पांव मीलों चलकर मंदिर पहुंचते हैं. जहां पर वो महाकाली के दर्शन कर आशीर्वाद लेते हैं. माना जाता है कि यहां चावल के एक दाने को प्रसाद के रूप में लेने पर सारी मनोकामनाएं पूरी होती है.
इंद्रोली गांव में स्थित महाकाली मंदिर में उमड़ा आस्था का सैलाब.
बता दें कि जौनसार-बावर के चकराता से करीब 25 किलोमीटर की दूर इंद्रोली गांव स्थित है. इस गांव में महाकाली का एक प्राचीन मंदिर भी है. इस मंदिर में मां काली के दर्शन के लिए सालभर श्रद्धालु पहुंचते हैं, लेकिन ज्येष्ठ महीने के पहले रविवार का इस मंदिर में विशेष महत्व होता है. इस दिन मां का आशीर्वाद लेने के लिए यहां श्रद्धालुओं का तांता लगा रहता है. इस दिन महिलाएं, पुरूष और बच्चे सभी नंगे पांव मीलों चलकर माता के दरबार में अपनी हाजिरी लगाते हैं.
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वैसे तो जौनसार-बावर में महासू देवता को आराध्य देव माना जाता हैं, इसके अलावा स्थानीय देवी-देवताओं का भी यहां अपना विशेष महत्व है. जिसमें नौ देवियों में से एक महाकाली की मुख्य रूप से यहां पूजी जाती है. ज्यादातर श्रद्धालु इंद्रोली महाकाली मंदिर में छत्र-छड़ी के साथ दर्शन करने पहुंचते हैं. जौनसार-बावर के लोग मां काली के छत्र और छड़ी को परिवार की सुख-समृद्धि और खुशहाली के लिए इस मंदिर से विधि विधान के साथ एक दिन के प्रवास पर ले जाते हैं. इंद्रोली गांव में मां काली का विशाल भंडारा भी होता है. इस मंदिर की मान्यता है कि यहां प्रसाद के रूप में मिले एक चावल के दाने से सारी मनोकामनाएं पूरी हो जाती है.
वहीं, इस बारे में मंदिर समिति के बजीर टीकम सिंह ने बताया कि इस महाकाली मंदिर में लोगों की अटूट आस्था है. लोग माता रानी के दर्शन के लिए जौनसार-बावर ही नहीं बल्कि, देश के अन्य राज्यों से भी पहुंचते हैं. उन्होंने बताया कि माता रानी जेष्ठ महीने में साक्षात मंदिर में विराजमान रहती है. जो भी श्रद्धालु सच्चे मन से उनके दरबार में हाजिरी लगाता है. मां काली उनकी सभी मुरादें पूरी करती है. प्रसाद के रूप में मंदिर से मिले एक चावल के दाने से सारे कष्ट दूर हो जाते हैं. जिन दंपति कोसंतान नहीं होती है, उन्हें यहां आकर संतान सुख की भी प्राप्ति होती है.