देहरादून: कभी अपने जमाने में एक मेधावी छात्रा, तेज-तर्रार छात्र नेता और महिलाओं की आवाज को बुलंद करने वाली हंसी आज दर-दर की ठोकरें खाने को मजबूर है. हंसी की मजबूरी, बेचारगी और उसकी परेशानियों को ईटीवी भारत ने प्रमुखता से उठाया था. खबर प्रकाशित होने के बाद से ही असर देखने को मिल रहा है. सरकार, शासन, पक्ष-विपक्ष सभी इस मामले में खुलकर आगे आये हैं. मानवीय संवेदनाओं से जुड़े इस मामले में हर कोई हंसी को हौसलों देने के साथ ही उनकी हर संभव मदद का भरोसा जता रहा है.
ईटीवी भारत पर हंसी के हालातों की खबर प्रकाशिक होने के बाद मदद के हाथ बढ़ने लगे हैं. पहले उत्तराखंड सरकार ने हंसी को उसके परिवार से मिलाने की बीड़ा उठाते हुए अल्मोड़ा डीएम को जानकारियां जुटाने को कहा. उसके बाद हरिद्वार डीएम ने हंसी के पास जाकर उनसे मिलने की बात कही. इस मामले में विपक्ष भी सामने आया है.
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अब नेता प्रतिपक्ष इंदिरा हृदयेश ने भी ईटीवी भारत की खबर का संज्ञान लिया है. नेता प्रतिपक्ष इंदिरा हृदयेश ने कहा प्रदेश की एक मेधावी छात्रा, हालातों से हारकर आज सड़कों पर भीख मांगकर जीवन जीने को मजबूर है, यह बड़े ही दुख की बात है. उन्होंने कहा राज्य सराकर को चाहिए कि वे इस मामले में जल्द से जल्द काम करें, जिससे हंसी को समय रहते मदद की जा सके.
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नेता प्रतिपक्ष इंदिरा हृदयेश ने इस तरह के खबरों के प्रकाशन की तारीफ करते हुए कहा कि इनका काम सरकारों को उसकी नजरों से छूट रही चीजों के बारे में अवगत करवाना होता. ऐसे में सरकार को भी चाहिए कि वे इस मामले में बिना देर किये हुए मदद के हाथ बढ़ाये. साथ ही नेता प्रतिपक्ष इंदिरा हृदयेश ने कहा कि यह बहुत शर्मनाक बात है कि पढ़ा-लिखे होने के बावजूद भी हंसी जैसी मेधावी लड़की को सड़कों पर भीख मांग कर जीवन यापन करना पड़ रहा है.
क्या है हंसी की कहानी
अल्मोड़ा जिले के सोमेश्वर विधानसभा क्षेत्र के हवालबाग विकासखंड के अंतर्गत गोविंदपुर के पास रणखिला गांव निवासी हंसी बचपन से ही काफी मेधावी रहीं हैं. गांव से छोटे से स्कूल से पास होकर उन्होंने कुमाऊं विश्वविद्यालय में एडमिशन लिया. हंसी पढ़ाई लिखाई और दूसरी एक्टिविटीज में इतनी तेज थी कि साल 1998-99 और 2000 वह चर्चाओं में तब आई, जब कुमाऊं विश्वविद्यालय में छात्रा यूनियन की वाइस प्रेसिडेंट बनी. इसके साथ ही कुमाऊं विश्वविद्यालय से दो बार एमए की पढ़ाई अंग्रेजी और राजनीति विज्ञान में पास करने के बाद हंसी ने कुमाऊं विश्वविद्यालय में ही लाइब्रेरियन की नौकरी की. इसके बाद उन्होंने 2008 तक कई प्राइवेट जॉब भी कीं.
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2011 के बाद हंसी की जिंदगी में अचानक से मोड़ आया. उन्होंने बताया कि जो इस वक्त जिस तरह की जिंदगी जी रही हैं, वह शादी के बाद हुई आपसी तनातनी का नतीजा है. शादीशुदा जिंदगी में हुई उथल-पुथल के बाद हंसी कुछ समय तक अवसाद में रहीं और इसी बीच उनका धर्म की ओर झुकाव भी हो गया. उन्होंने परिवार से अलग होकर धर्मनगरी में बसने की सोची और हरिद्वार पहुंच गईं. तब से ही वो अपने परिवार से अलग हैं.
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वे बताती हैं कि इस दौरान उनकी शारीरिक स्थिति भी गड़बड़ रहने लगी और वह सक्षम नहीं रहीं कि कहीं नौकरी कर सकें. इसी दौरान वक्त का पहिया ऐसा घूमा कि वो आज ऐसी स्थिति में भिक्षा मांगने को मजबूर हैं. वह साल 2012 के बाद से ही हरिद्वार में भिक्षा मांग कर अपना और अपने 6 साल के बच्चे का लालन-पालन कर रही हैं.
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उन्होंने अपनी स्थिति को लेकर कई बार मुख्यमंत्री को पत्र भी लिखा, यहां तक कि कई बार सचिवालय विधानसभा में भी चक्कर काट चुकी हैं. इस बात के दस्तावेज भी हंसी के पास मौजूद हैं. वह कहती हैं कि अगर सरकार उनकी सहायता करती है तो आज भी वह बच्चों को अच्छी शिक्षा दे सकती हैं.