उत्तराखंड

uttarakhand

ETV Bharat / state

उत्तराखंड: मुनस्यारी में खुला भारत का पहला लिचेन गार्डन, कई मायनों में है लाभदायक

उत्तराखंड के मुनस्यारी में वन विभाग द्वारा देश का पहला लिचेन गार्डन विकसित किया गया है. शनिवार को इस बगीचे का उद्घाटन कर इसे जनता के लिए खोल दिया गया है.

dehradun news
लिचेन गार्डन.

By

Published : Jun 28, 2020, 6:34 PM IST

Updated : Jun 28, 2020, 7:15 PM IST

देहरादून: वन विभाग के अनुसंधान विंग ने प्रदेश के कुमाऊं क्षेत्र के मनोरम हिल स्टेशन मुनस्यारी में देश का पहला लिचेन गार्डन विकसित किया है. शनिवार को बगीचे का उद्घाटन कर इसे जनता के लिए खोल दिया गया है. वैसे तो लिचेन पर्यावरण के प्रति बहुत संवेदनशील हैं, लिकेन इसका इस्तेमाल वायु प्रदूषण, ओजोन रिक्तीकरण और धातु संदूषण के सस्ते मूल्यांकन के लिए किया जा सकता है.

मुनस्यारी में लिचेन के बगीचे को विकसित करने के लिए एक हॉटस्पॉट के रूप में चुना गया. लीचेन को स्थानीय रूप से 'झीला' या 'पत्थर के फूल' के नाम में भी जाना जाता है. वहीं मुख्य वन संरक्षक संजीव चतुर्वेदी ने बगीचे के विकसित होने की जानकारी पीटीआई (शारीरिक प्रशिक्षण प्रशिक्षक) को दी. उन्होंने बताया कि लगभग दो एकड़ में फैले इस उद्यान में लिचेन की 80 से अधिक प्रजातियां पाई गई हैं. उन्होंने कहा कि कोरोनो वायरस महामारी के मद्देनजर भीड़ से बचने के लिए बगीचे को सीमित तरीके से खोला गया है, लेकिन देश से संक्रमण के खत्म होते ही, यह बागीचा लोगों के लिए पूर्ण तरीके से खोल दिया जाएगा.

यह भी पढ़ें:देहरादून: फर्जी RTO ट्रांसफर मामले में SIT का गठन, सख्त कार्रवाई के निर्देश

लिचेन को चाहिए साफ वातावरण

लिचेन को उगाने के लिए स्वच्छ हवा की आवश्यकता होती है. यह एक विशिष्ट क्षेत्र के वायु प्रदूषण के स्तर को निर्धारित करने के लिए एक महत्वपूर्ण जैव संकेतक के रूप में भी कार्य करता है. लिचेन में चट्टानों को मिटाकर खनिजों को अलग करने की क्षमता होती है. वहीं जब लिचेन मर जाते हैं और पृथ्वी में घुल जाते हैं, तो वे मिट्टी में खनिज और कार्बनिक पदार्थों का मिश्रण छोड़ देते हैं. जो अन्य पौधों के विकास में मदद करते हैं.

वन संरक्षक संजीव चतुर्वेदी ने बताया कि लिचेन हैदराबादी बिरयानी में पड़ने वाला एक महत्वपूर्ण मसाला है, जिसके बिना बिरयानी का स्वाद अधूरा रहता है. इसीलिए हैदराबाद की प्रसिद्ध बिरयानी में एक विशिष्ट स्वाद लाने के लिए इसका प्रयोग किया जाता है. साथ ही इसके सुगंधित गुणों से स्वदेशी इत्र बनाने में भी उपयोग किया जाता है.

यह भी पढ़ें:जानिए कैसे RTO ट्रांसफर की खबर से शासन में मचा हड़कंप

वहीं कुछ जानकारों ने बताया कि यूपी के कन्नौज में एक स्वदेशी इत्र की तैयारी में भी इसका उपयोग किया जाता है. साथ ही विभिन्न गैर-शाकाहारी व्यंजनों में विशेष रूप से बिरयानी में इसका इस्तेमाल होता है. इसके साथ ही लिचेन का उपयोग सनस्क्रीन क्रीम, डाई और दवाओं में भी किया जाता है.

सीसीएफ ने इस बात की जानकारी दी कि बगीचे को पांच साल में विकसित किया जाना था, लेकिन उनकी टीम की काम के प्रति निष्ठा के चलते इसे एक साल में ही पूरा कर लिया गया. उन्होंने बताया कि लिचेन एक सहजीवी जीव है, जो आमतौर पर एक कवक साथी (मायकोबियंट) और एक या एक से अधिक प्रकाश संश्लेषक साझेदार (फोटोबायोट) से बना होता है, जो अक्सर या तो हरे शैवाल या साइनो बैक्टीरियम से बना होता है. ये मुख्य रूप से पेड़ों, दीवारों, चट्टानों, ग्रैवेस्टोन की छतों और मिट्टी के छालों पर बढ़ते हैं.

बताते चलें कि दुनिया भर में लिचेन की 20 हजार से अधिक प्रजातियां पाई जाती हैं. भारत में लगभग 2,714 प्रजातियां हैं, जिनमें से उत्तराखंड में 600 प्रजातियां मुख्य रूप से मुनस्यारी, अस्कोट, बागेश्वर, पिथौरागढ़, रामनगर और नैनीताल में पाई जाती है.

Last Updated : Jun 28, 2020, 7:15 PM IST

ABOUT THE AUTHOR

...view details