देहरादूनःउत्तराखंड के जंगल इन दिनों धू-धू कर जल रहे हैं. इस वनाग्नि में करोड़ों की बहुमूल्य वन संपदा जलकर राख हो चुकी है. कई दुर्लभ पेड़-पौधे और जड़ी बूटियां इस वनाग्नि की भेंट चढ़ गई हैं. लाख प्रयासों के बाद भी आग बुझ नहीं रही है. बीते दिन हुई बारिश और बर्फबारी से न केवल आग आग की लपटें बुझी हैं. बल्कि, धधक रहे जंगलों के लिए संजीवनी साबित हुई है. लेकिन अप्रैल महीने में हुई बर्फबारी से हर कोई अचंभित है. पर्यावरणविदों और जानकारों को भी सोचने पर मजबूर कर दिया कि आखिर कैसे एक ओर भारी बर्फबारी हो रही है तो वहीं, दूसरी ओर पहाड़ जल रहे हैं. ऐसे में एक ही पहाड़ पर आग और बर्फबारी का क्या कनेक्शन है?
उत्तराखंड के पहाड़ों में अजीब सी हलचल हो रही है. कहीं बर्फबारी तो कहीं आग ने तांडव मचाया हुआ है. बीते दिनों ही मौसम में बदलाव से जहां मैदानी क्षेत्रों में हवा के साथ ही हल्की बूंदाबांदी हुई तो उच्च हिमालयी क्षेत्रों में बर्फबारी शुरू हो गई. बदरीनाथ, केदारनाथ और गंगोत्री में जहां बर्फबारी हुई तो वहीं, गढ़वाल और कुमाऊं के तमाम जंगलों आग लगी हुई है. जंगलों में धधक रही आग अब रिहायशी क्षेत्रों में भी पहुंच रही है. आग को लगे हुए एक हफ्ते से भी ज्यादा का समय हो गया है. लगातार जंगलों में आग लगने से करोड़ों की वन संपदा व जीवों को काफी नुकसान पहुंच रहा है.
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वहीं, पर्यावरण के जानकारों की मानें तो उनका कहना है कि हिमालयी क्षेत्रों में मौसम में लगातार परिवर्तन देखने को मिल रहा है. आग लगने का मुख्य कारण चीड़ के जंगल हैं. चीड़ के लीसा और पिरूल में तेज आग लगती है, जिससे आग लगने की घटनाएं गर्मी में बढ़ जाती हैं. इतना ही नहीं अब आग ग्लेशियर के आसपास के जंगलों में भी देखने को मिल रही है. पर्यावरणविदों का कहना है कि जबतक धीरे-धीरे चीड़ को जंगलों से हटाया नहीं जाएगा, तबतक आग लगने की घटनाएं बढ़ती रहेंगी. अगर ग्लेशियर तक इस आग से नुकसान होगा तो हिमालय का ईको सिस्टम बदल जाएगा. जो आने वाले समय के लिए घातक होगा.