देहरादून:उत्तराखंड में सभी राजनीतिक दल विधानसभा चुनाव 2022 (Uttarakhand assembly elections 2022) की तैयारियों में जोर-शोर से जुटे हुए हैं. सभी पार्टियों के केंद्रीय नेता भी उत्तराखंड का चक्कर लगा रहे हैं. लेकिन आम आदमी पार्टी (आप) को छोड़कर किसी भी पार्टी ने मुख्यमंत्री का चेहरा घोषित नहीं किया है. राष्ट्रीय पार्टियां बीजेपी और कांग्रेस के हाईकमान सीएम का चेहरा घोषित करने से कन्नी काट रहे हैं. हालांकि हरीश रावत तो पार्टी हाईकमान से सीएम चेहरा घोषित करने के लिए काफी जोर भी लगा चुके हैं, लेकिन अंत में उन्हें भी निराशा ही हाथ लगी. वैसे उत्तराखंड के चुनावी इतिहास पर नजर डालें तो यहां पर जो भी पार्टी सीएम का चेहरा घोषित करके चुनावी मैदान में उतरी उसे निराशा ही (CM face could not win election in Uttarakhand) हाथ लगी.
उत्तराखंड के चुनावी इतिहास को देखें तो विधानसभा चुनाव में जिस भी पार्टी ने मुख्यमंत्री का चेहरा आगे किया, उसे आगे चलकर मुंह की खानी पड़ी है. कई बार तो ऐसा भी हुआ कि सीएम का चेहरा भी अपनी कुर्सी नहीं बचा सका. ऐसे में ये कहना भी गलत नहीं होगा कि ''जिसने आगे किया चेहरा, उसके सर नहीं सजा जीत का सेहरा''.
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चुनावी इतिहास के पन्नों पर एक नजर: यूपी से अलग करके 9 नवंबर 2000 को नए राज्य के तौर पर उत्तराखंड अस्तिव में आया था. प्रदेश में पहली अंतरिम सरकार बीजेपी की थी. इसके बाद 2002 में प्रदेश में पहली बार विधानसभा चुनाव हुआ था. उत्तराखंड में उस समय बीजेपी का डंका बज रहा था. बीजेपी ने तत्कालीन मुख्यमंत्री भगत सिंह कोश्यारी को आगे रखकर चुनाव लड़ा, जबकि कांग्रेस ने एनडी तिवारी और हरीश रावत जैसे दिग्गज नेताओं के होते हुए भी बिना चेहरे के दांव खेला. इसका परिणाम ये निकला कि बीजेपी को हार का सामना करना पड़ा और कांग्रेस बिना चेहरे के भी चुनाव जीत गई. चुनाव जीतने के बाद कांग्रेस ने एनडी तिवारी को मुख्यमंत्री बनाया और उन्होंने पूरे पांच साल सरकार चलाई.
2007 में कांग्रेस को मुंह की खानी पड़ी: अपने पांच साल के कार्यकाल में एनडी तिवारी ने प्रदेश में चहुमुंखी विकास किया था. प्रदेश में दूर-दूर तक एनडी तिवारी की टक्कर का कोई दूसरा नेता नजर नहीं आ रहा था. इसी वजह से कांग्रेस ने 2007 का विधानसभा चुनाव एनडी तिवारी के चेहरे पर लड़ने का निर्णय लिया. हालांकि एनडी तिवारी ने चुनाव लड़ने के इंकार कर दिया था, क्योंकि उनकी नजर केंद्र पर थी, लेकिन कांग्रेस को भरोसा था कि एनडी तिवारी के नाम पर चुनाव जीत जाएंगे. वहीं बीजेपी पुरानी गलती से सबक लेते हुए बिना सीएम चेहरे के रण में उतरी और चुनाव जीत गई.
खंडूड़ी बने मुख्यमंत्री: 2007 में बीजेपी ने सरकार तो बना ली, लेकिन पार्टी में सीएम पद को लेकर भगत सिंह कोश्यारी और सेवानिवृत्त मेजर जनरल भुवन चंद्र खंडूड़ी की बीच खींचतान शुरू हो गई. हालांकि बीजेपी अलाकमान ने खंडूड़ी पर भरोसा जताया और वे प्रदेश चौथे मुख्यमंत्री बने.