20 साल में 50,000 हेक्टेयर वन भूमि विभागों को आवंटित, पर्यावरणविद चिंतित - उत्तराखंड 50 हजार वन क्षेत्र आवंटित
उत्तराखंड वन बाहुल्य क्षेत्र है. पिछले 20 सालों से विकास कार्यों के नाम पर वन क्षेत्रों का दोहन हो रहा है. इसी का परिणाम है कि पिछले 20 सालों में करीब 50 हजार हेक्टेयर वन भूमि अलग-अलग विभागों को आवंटित कर दी गई है.
वन भूमि अलग-अलग विभागों को आवंटित,
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Published : Dec 19, 2020, 10:34 AM IST
देहरादून: राज्य बनने के बाद 50 हजार हेक्टेयर वन भूमि का अलग-अलग विभागों के लिए आवंटन किया गया. वन विभाग का कहना है कि यह पूरे वन क्षेत्र का केवल 1.5 फ़ीसदी हिस्सा है. 71 फीसदी वन क्षेत्र वाले राज्य में यह स्वाभाविक प्रक्रिया है. जबकि पर्यावरणविदों ने इसको लेकर चिंता जाहिर की है.
वन भूमि अलग-अलग विभागों को आवंटित
हाल ही में हुए खुलासे में सामने आया है कि राज्य बनने के बाद 20 सालों में प्रदेश का 50 हजार हेक्टेयर वन अलग-अलग सरकारी कार्यों और निर्माणों के चलते नष्ट हो चुका है. इसके बाद यह विवाद का विषय बन गया है कि आखिर उत्तराखंड में इतनी बड़ी मात्रा में वनों का दोहन कैसे किया जा रहा है.
एक रिपोर्ट के अनुसार अब तक सबसे ज्यादा वन क्षेत्र लगभग 21,207 हेक्टेयर वन खनन, हाइड्रो पावर प्लांट और सड़कों के कटान में इस्तेमाल किया गया है. अगर विस्तार में देखे तो तकरीबन 8,760 हेक्टयर भूमि खनन में, सड़कों में 7,539 हेक्टेयर, हाइड्रो प्लांट्स में 2,295 हेक्टेयर, पेयजल पाइप लाइनों को बिछाने में 207 हेक्टेयर और सिंचाई विभाग के लिए तकरीबन 71 हेक्टेयर वन भूमि अब तक आवंटित की गई है.
जिलेवार इस्तेमाल में लाया गया वन क्षेत्र
जिले का नाम
वन भूमि क्षेत्र
(हेक्टेयर)
देहरादून
21,303
हरिद्वार
6,826
नैनीताल
4,060
टिहरी
2,671
पिथौरागढ़
2,451
चमोली
3,636
अल्मोड़ा
1,835
उत्तरकाशी
1,632
पौड़ी
1,429
चंपावत
1,312
बागेश्वर
1,269
रुद्रप्रयाग
1,047
उधम सिंह नगर
317
इस तरह से पूरे प्रदेश में अब तक तक़रीबन 49,815 हेक्टयर यानी करीब 50 हजार हेक्टेयर वन क्षेत्र अलग-अलग विभागों को विकास कार्यों के लिए आवंटित किया गया है. अपर प्रमुख वन संरक्षक भूमि सर्वेक्षण निदेशालय डीजी के शर्मा ने बताया कि उत्तराखंड राज्य एक वन बाहुल्य राज्य है. यहां पर 71 फीसदी भूभाग वन क्षेत्र है. उत्तराखंड में वन क्षेत्र लगभग 38 हजार वर्ग किलोमीटर में फैला है, जिसके मुकाबले 50 हजार हेक्टयर भूमि मात्र 1.5 फीसदी के बराबर है. उन्होंने कहा कि इतने बड़े भूभाग में फैले वन क्षेत्र में से केवल कुछ एक फीसदी वन क्षेत्र को विकास के लिए दिया जाना एक सतत और स्वाभाविक प्रक्रिया है. इसमें इतना घबराने वाली बात नहीं है.
वहीं, दूसरी तरफ पर्यावरणविद इस बात पर अपनी गहरी चिंता व्यक्त कर रहे हैं. पर्यावरणविद् अनिल जोशी का कहना है कि उत्तराखंड में केवल 2 ही प्रकार के लोग हैं या तो विकास विरोधी या तो पर्यावरण विरोधी. उन्होंने कहा कि किसी भी विषय पर कोई बीच का रास्ता निकालने की कोशिश नहीं करता है.
अनिल जोशी ने कहा कि यहां सरकारी कर्मचारी केवल नेताओं के आगे नतमस्तक है. उन्हें उनके आदेश का पालन करना होता है और कुछ लोग केवल विरोध के लिए विरोध करते हैं. उनका कहना है कि उत्तराखंड की क्षीण होती प्राकृतिक संपदा को बचाने का यही उचित समय है.