देहरादून:फर्श पर फैली गंदगी और दीवारों पर लगे मकड़ी के जाले. कोविड-19 के हालातों के बीच बिना ग्लव्स खाना बनाते रसोइए. और गंदगी के बीच रखा चावल का बड़ा टब. जी हां इस रसोई में किसी भी स्वस्थ व्यक्ति को बीमार करने का पूरा इंतजाम किया गया है. लेकिन आपको जानकर हैरानी होगी कि कैंटीन में बन रहा खाना हकीकत में बीमार लोगों के लिए ही है. सबसे बड़ी बात यह है कि कैंटीन का यह पूरा हिस्सा अस्पताल के बीचों-बीच बना हुआ है. अस्पताल प्रशासन से लेकर बड़े अफसरों तक को कैंटीन का ये स्याह सच मालूम है. अब सवाल यह है कि जब अस्पताल के अधिकारियों को इसकी जानकारी है तो फिर क्यों अस्पताल में भर्ती मरीजों और उनके तीमारदारों की जिंदगी के साथ खिलवाड़ किया जा रहा है.
सीएमएस भी हो गए निरुत्तर. CMS ने माना कैंटीन की हालत ठीक नहीं
इसी सवाल का जवाब जानने के लिए सबसे पहले हमने दून मेडिकल कॉलेज अस्पताल के सीएमएस डॉक्टर केसी पंत से बात करना मुनासिब समझा. अस्पताल में बनी कैंटीन को लेकर ताबड़तोड़ एक के बाद एक सवाल पूछ डालें. फिर क्या ईटीवी भारत के सवालों पर डॉक्टर केसी पंत को कहना ही पड़ा कि दून मेडिकल कॉलेज की कैंटीन के हालात खराब हैं.
सीएमएस साहब के जवाब सुनकर हम भी हैरान थे. ऐसा इसलिए कि जब अस्पताल के सीएमएस को यह पहले से ही पता है कि कैंटीन के हालात खराब हैं और वो खुद इस बात को कैमरे पर कुबूल भी कर रहे हैं, तो आगे उनसे क्या जाना जाए.
दून मेडिकल कॉलेज में मरीजों पर अत्याचार. मरीजों को मिल रहा अन हाईजीनिक भोजन
अब ये साफ हो गया कि अस्पताल में गंदगी के बीच बन रहा खाना अस्पताल के अधिकारियों की सहमति के बाद मरीजों को दिया जा रहा है. कैंटीन के ठेकेदार के साथ भी जरूर कोई ना कोई ऐसी साठगांठ है कि इतना कुछ पता होने के बावजूद भी उसको इसकी इजाजत दी जा रही है. हालांकि सीएमएस साहब ने नोटिस देने की बात भी कह दी और जवाब तलब करने का इरादा भी बना लिया. बहरहाल अस्पताल की कैंटीन हाइजीनिक खाना मरीजों तक देने में पूरी तरह से फेल नज़र आई.
ठेकेदार को मेन्यू की परवाह नहीं. मेन्यू कुछ और भोजन कुछ और
अब अगला सवाल हमारा यह था कि स्वच्छ खाना नहीं दे पाने वाले इस ठेकेदार के द्वारा क्या गुणवत्ता युक्त खाना दिया जा रहा है, और जिस मैन्यू के लिए अस्पताल ने उसके साथ करार किया है क्या वह मरीजों तक पहुंच रहा है. सबसे पहले उस सूची को भी देख लीजिए जो अस्पताल में मरीजों को तीनों टाइम खाना दिए जाने के रूप में लगाया गया है.
पानी वाली दाल से काम चलाते हैं मरीज
इसमें मैन्यू को देखकर कोई भी अंदाजा लगा लेगा कि अस्पताल में मरीजों को बेहतर प्रोटीन युक्त खाना मिल रहा है. अब इस सूची की हकीकत जानने की बारी थी. लिहाजा हमने मरीजों से ही बात करने की कोशिश की. वैसे तो कई मरीजों ने इस मामले में बेहद डरे हुए अंदाज में कुछ भी कहने से इनकार कर दिया, लेकिन कुछ लोग ऐसे भी थे जो अस्पताल में खराब हालातों को बदलना चाहते थे. ऐसे लोगों ने कैमरे के सामने जो कुछ कहा वह भी चौंकाने वाला था.
दून मेडिकल कॉलेज में खाने की गुणवत्ता खराब. मरीजों और तीमारदारों ने कहा कि खाने में दाल कम पानी ज्यादा होता है. यह तो गुणवत्ता के हाल हैं. जहां तक सूची की बात है तो अस्पताल में लगाई गई सूची से आधा खाना भी मरीजों को नहीं दिया जा रहा है. ना ब्रेड है. ना मक्खन है. ना अंडे हैं और ना ही दूध दिया जा रहा है. वह बात अलग है कि ईटीवी भारत की टीम की मौजूदगी में कैंटीन कर्मचारियों ने खाने में उस दिन अंडे की व्यवस्था कर दी.
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प्रदेश भर में सरकारी अस्पतालों में मरीजों और उनके तीमारदारों को मुफ्त भोजन की व्यवस्था की गई है. इसके लिए अस्पताल स्तर पर ही टेंडर किए जाते हैं. इसमें कैंटीन संचालक टेंडर लेकर खाने की व्यवस्था करते हैं और इसमें बकायदा टेंडर के दौरान खाने का मैन्यू और गुणवत्ता समेत हाइजीनिक खाना देने की भी शर्त होती है. लेकिन न जाने क्या मजबूरी है कि अस्पताल प्रशासन इन सभी शर्तों को भूल जाता है.
खाने का कोई नहीं करता निरीक्षण
नियम कहता है कि अस्पताल में खाने की गुणवत्ता का नियमित रूप से निरीक्षण होना चाहिए. लेकिन हमारी टीम ने पाया कि ना तो खाना ले जाने के बाद किसी भी व्यक्ति ने इसका निरीक्षण किया और ना ही अस्पताल में खाद्य सुरक्षा से जुड़े अधिकारी समय-समय पर खाने की गुणवत्ता को कभी चेक करते हैं.
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वैसे यह बात भी जानने वाली है कि इससे पहले कई बार खाने में कीड़े मिलना और खाना खाने के बाद मरीजों की तबीयत बिगड़ने की घटनाएं भी हुई हैं. कोविड-19 के दौरान तो खाने की गुणवत्ता पर भी कई बार सवाल खड़े हो चुके हैं. अब इन सभी स्थितियों के बीच भी यदि स्वास्थ्य विभाग और चिकित्सा शिक्षा विभाग सोया हुआ है तो इसके पीछे जरूर कोई ना कोई तो गड़बड़ झाला है.