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आंगनबाड़ी, आशा और भोजन माताओं ने किया महिला दिवस का विरोध, किया सचिवालय कूच - देहरादून सचिवालय समाचार

देहरादून में आशा, स्वास्थ्य वर्कर यूनियन, आंगनबाड़ी वर्कर्स, सेविका कर्मचारी यूनियन और उत्तराखंड भोजन माता कामगार यूनियन ने अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस के मौके पर सचिवालय कूच किया. प्रदर्शनकारी महिलाओं ने सीटू कार्यालय से सचिवालय तक जुलूस निकालकर प्रदर्शन किया. आशावर्करों की मांग है कि उनका वेतन 18 हजार रुपए किया जाए.

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Published : Mar 8, 2021, 7:38 PM IST

देहरादूनःसोमवार को उत्तराखंड आशा स्वास्थ्य कार्यकत्री यूनियन, आंगनबाड़ी कार्यकत्री, सेविका कर्मचारी यूनियन और उत्तराखंड भोजन माता कामगार यूनियन ने अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस के मौके पर सचिवालय कूच किया.

महिला दिवस का विरोध.

आशा, आंगनबाड़ी कार्यकत्रियों और भोजन माताओं ने सीटू कार्यालय से सचिवालय तक जुलूस निकालकर प्रदर्शन किया. इस दौरान प्रदर्शनकारी महिलाओं ने सरकार के खिलाफ जबरदस्त नारेबाजी करते हुए अपना विरोध दर्ज कराया. प्रदर्शन के दौरान आंगनबाड़ी यूनियन की प्रांतीय महामंत्री चित्रकला ने कहा कि आंगनबाड़ी मिनी केंद्रों को पूर्ण केंद्र घोषित किया जाए. इसके साथ ही आंगनबाड़ी कार्यकत्रियों का मानदेय समय पर भुगतान किया जाए.

आशा वर्करों ने भी अपनी आवाज उठाते हुए कहा कि कोरोना काल में उन्होंने पूरी मेहनत के साथ अपनी सेवाएं दी. लेकिन सरकार उनकी मांगों को अनसुना कर रही है. आशा वर्करों का कहना है कि मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र रावत द्वारा अल्मोड़ा में की गई घोषणा के मुताबिक आशाओं को 18 हजार रुपया वेतन दिया जाए.

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भोजन माता मोनिका का कहना है कि सरकार को भोजन माताओं की पीड़ा से कोई लेना देना नहीं है. विगत कई वर्षों से वे अपनी मांगों को लेकर सरकार से गुहार लगाती आ रही हैं. लेकिन सरकार उनकी मांगों पर ध्यान नहीं दे रहा है. प्रदर्शनकारी भोजन माताओं की मांग है कि 60 वर्ष के बाद पेंशन व ग्रेजुएटी का लाभ दिया जाए.

प्रदर्शन में शामिल आशा, आंगनबाड़ी कार्यकत्रियां और भोजन माताएं सरकार से अपनी मांगे ना माने जाने से नाराज नजर आईं. उन्होंने कहा कि उन्हें मजबूरी में महिला दिवस को विरोध दिवस के रूप में मनाना पड़ रहा है. आज तक उनकी मांगों पर गौर नहीं किया गया. सरकार आंगनबाड़ी कार्यकत्रियों से बीएलओ, आर्थिक गणना, पशु गणना जैसे काम लेती रहती है. उन्होंने कोरोना काल में लोगों के घर-जा घर जाकर अपनी सेवाएं दी. लेकिन सरकार उन्हें संतोषजनक मानदेय नहीं दे रही है.

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