देहरादून:भारत में चीतों को वापस लाने वाला 'Project Cheetah' दुनिया के सबसे बड़े वाइल्ड लाइफ ट्रांसलोकेशन प्रोजेक्ट (Wildlife Translocation Project) में से एक है. प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने अपने बर्थडे (17 सितंबर, 2022) पर नामीबिया से लाए गए 8 चीतों को मध्यप्रदेश के कूनो नेशनल पार्क छोड़े थे. आज हम आपको पीएम मोदी के चीता प्रोजेक्ट का उत्तराखंड कनेक्शन बताएंगे.
2010 में 300 करोड़ का प्रोजेक्ट बना था: तकरीबन 12 साल पहले जुलाई, 2010 में केंद्रीय वन एवं पर्यावरण मंत्रालय ने भारत में अफ्रीकी चीते लाने के प्रस्ताव को मंजूरी दी थी. उस वक्त इसके लिए 300 करोड़ रुपये का प्रोजेक्ट तैयार किया गया था. लेकिन कानूनी पेंच फंसने के कारण अब तक यह प्रोजेक्ट लटका रहा. इस कानूनी गुत्थी को सुलझाने में लगभग 10 वर्ष का समय लग गया. दिलचस्प बात यह है कि इसमें देहरादून स्थित भारतीय वन्य जीव संस्थान (Wildlife Institute of India) के वैज्ञानिकों की अहम भूमिका रही.
इसलिए रुक गई थी चीतों की राह: अफ्रीकी चीतों को हिन्दुस्तान लाने में कानूनी पेंच कैसे फंसा, इसके पीछे एक दिलचस्प घटनाक्रम है. हुआ यूं कि साल 2011 में गुजरात के गिर अभयारण्य में संरक्षित एशियाई शेरों में से कुछ को मध्य प्रदेश के पालपुर कूनो अभयारण्य में लाने की योजना बनाई गई. इसके विरोध में सुप्रीम कोर्ट में एक जनहित याचिका दायिर की गई. याचिका पर सुनवाई के दौरान ही नामीबिया व दक्षिण अफ्रीका से चीते लाने का मुद्दा भी उठा.
सुप्रीम कोर्ट के फैसले में एक शब्द से ठंडा पड़ा था मामला: मई 2012 में सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि नामीबिया से अफ्रीकी चीते भारत लाने की अनुमति नहीं दी जा सकती. क्योंकि विलुप्त होने की कगार पहुंची 'जंगली भैंसा' और 'ग्रेट इंडियन बस्टर्ड' जैसी देशी प्रजातियों के संरक्षण को प्राथमिकता दी जानी चाहिए. कोर्ट के इस ऑर्डर में एक शब्द यह लिखा गया कि विदेश से हिन्दुस्तान में चीता लाना illegal यानि अवैधानिक है. उसके बाद अफ्रीकी चीतों को हिन्दुस्तान नहीं लाया जा सका.
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