देहरादून: दुनिया के सबसे बेहतरीन सैन्य अफसर तैयार करना कोई आसान काम नहीं है. भारतीय सेना के लिए इसका बीड़ा उठाया है भारतीय सैन्य अकादमी ने. जंग लड़ने और फतह हासिल करने के लिए सबसे जरूरी जिस बात की जरूरत है उस साहस, हिम्मत और शौर्य को जगाती है इंडियन मिलिट्री एकेडमी.
देहरादून में करीब 1,400 एकड़ में फैली ये विशाल धरोहर न केवल ऐतिहासिक है, बल्कि ये पराक्रमी सैन्य अफसरों का प्रशिक्षण केंद्र भी है. इतिहास गवाह है कि यहां तैयार होने वाले वीरों ने पराक्रम की हर परकाष्ठा को पार किया है. दुश्मन कोई भी हो भारतीय शेरों की दहाड़ के सामने हर हथियार और तकनीक धरी की धरी रह गयी.
भारतीय सैन्य अकादमी की स्थापना 1932 में हुई. पहले बैच में 40 जेंटलमैन कैडेट्स शामिल थे. साल 1971 के भारत-पाकिस्तान युद्ध के नायक रहे फील्ड मार्शल सैम मानेकशॉ इसी पहले बैच के छात्र थे. पहले बैच में शामिल स्मिथ डन ने बर्मा और मुहम्मद मूसा खान ने पाकिस्तान की सेना का नेतृत्व किया. भारतीय सैन्य अकादमी अब तक देश और दुनिया को 62 हजार से ज्यादा सैन्य अफसर दे चुकी है. इसमें 2,500 विदेशी सैन्य अफसर भी शामिल हैं.
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कहा जाता है कि द्रोण नगरी देहरादून में भारतीय सैन्य अकादमी के इसी क्षेत्र में गुरु द्रोणाचार्य ने पांडवों और कौरवों को शास्त्र और युद्ध की शिक्षा दी थी. अब गुरु द्रोण की इसी स्थली पर जेंटलमैन कैडेट्स को देश सेवा के लिए शारीरिक दक्षता, मानसिक मजबूती, नेतृत्व क्षमता और हथियारों का प्रशिक्षण दिया जाता है. अकादमी में वॉर मेमोरियल भी स्थापित किया गया है, जहां अकादमी से पास आउट हुए शहीद सैन्य अफसरों के नाम अंकित किये गए हैं.
भारतीय सैन्य अकादमी के 88 साल पुराने गौरवमई इतिहास की यादें यहां मौजूद म्यूजियम में सजाई गई हैं. भारत में स्थित ब्रिटिश सरकार के कमांडर इन चीफ फील्ड मार्शल सर फिलिप चैटवुड से लेकर पाकिस्तान को खंड-खंड करने वाले 1971 युद्ध के नायक फील्ड मार्शल सैम मानेकशॉ की पुरानी तस्वीरें यहां मौजूद हैं. ब्रिटिश कालीन हथियारों से लेकर देश के सर्वोच्च मेडल और पाकिस्तान का वह झंडा जिसे 1971 में जीत के बाद सरेंडर किये गए पाकिस्तानी सैनिकों से लिया गया को यहां पर रखा गया है.
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