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चमोली ग्लेशियर हादसा: IIRS के एक्सपर्ट्स से जानिए आखिर 'तीसरे ध्रुव' में हुआ क्या था

चमोली के रैंणी गांव की आपदा को लेकर ईटीवी भारत ने IIRS के निदेशक ने प्रकाश चौहान से खास बातचीत की. इस खास बातचीत में प्रकाश चौहान ने चमोली ग्लेशियर हादसे की असली वजह बताई.

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IIRS के निदेशक प्रकाश चौहान से खास बातचीत

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Published : Oct 14, 2021, 9:59 PM IST

Updated : Oct 14, 2021, 10:45 PM IST

देहरादून: चमोली में आई भीषण आपदा के दंश आज भी तपोवन में मौजूद हैं. इस आपदा में NTPC के पावर प्लांट जमींदोज हो गया था. इसमें बड़ी संख्या में जनहानि हुई थी. इस आपदा के बाद से ही इसके पीछे के कारणों पर रिसर्च की गई. देश की सर्वश्रेष्ठ संस्थाओं ने इस आपदा को लेकर अपनी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई. इस पूरे मामले में ईटीवी भारत ने आईआईआरएस के निदेशक प्रकाश चौहान से खास बातचीत की. जिसमें हमने इस घटना के पीछे के कारणों से साथ ही इसे लेकर इसरो द्वारा चलाए जा रहे प्रोजेक्ट के बारे में बात की.

सकते में थीं सभी रिसर्च एजेंसियां:7 फरवरी को उत्तराखंड के चमोली जोशीमठ में रैणी गांव के पास से आई भीषण त्रासदी के बाद घटे तमाम घटनाक्रम को इंडियन स्पेस रिसर्च ऑर्गेनाइजेशन यानी इसरो के उपक्रम इंडियन इंस्टीट्यूट आफ रिमोट सेंसिंग के निदेशक प्रकाश चौहान ने साझा किया. उन्होंने बताया यह सचमुच में एक चौंकाने वाला हादसा था. जिसने सभी को सरप्राइज किया. उन्होंने कहा इस तरह की घटनाओं की उम्मीद अक्सर मानसून या फिर खराब मौसम में की जाती है. लेकिन 7 फरवरी 2021 कि सुबह बिल्कुल साफ मौसम और चटक धूप थी. इसके बावजूद आई आपदा ने कई रिसर्च एजेंसियों को सकते में डाल दिया.

IIRS के निदेशक प्रकाश चौहान से खास बातचीत

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सबसे पहले जारी किया गया इंटरनेशनल चार्टर:इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ रिमोट सेंसिंग के निदेशक प्रकाश चौहान ने बताया जैसे ही 7 फरवरी की सुबह तकरीबन 10:30 बजे यह हादसा रिपोर्ट किया गया, वैसे ही इसरो ने सबसे पहले इस घटना को लेकर इंटरनेशनल चार्टर जारी किया.

क्या होता है इंटरनेशनल चार्टर:रिमोट सेंसिंग इंस्टीट्यूट के निदेशक प्रकाश चौहान ने बताया कि इंटरनेशनल चार्टर एक विशेष प्रकार की स्पेस संधि है, जिसके अनुसार विश्व में कहीं भी जब कोई दुर्घटना या फिर आपदा आती है तो उस क्षेत्र के ऊपर से गुजरने वाले सैटेलाइट को उस देश की अथॉरिटी से डाटा शेयर करने की अनिवार्यता होती है.

उन्होंने बताया जिस समय नंदा देवी की पहाड़ियों पर यह घटना घटी उस समय एक अमेरिकी सैटेलाइट प्लेनेट लाइव घटनास्थल के ऊपर से गुजर रहा था. हादसे के तुरंत बाद जैसे ही इंटरनेशनल चार्टर लागू हुआ तो यह सूचना मिल गई कि प्लेनेट लैब के पास इस हादसे की तस्वीरें मौजूद हैं. जिसके बाद तुरंत इन तस्वीरों का संकलन कर हादसे के कारणों का पता लगाया गया.

चमोली हादसे की टाइमलाइन.

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सामने आईं कईं भ्रामक थ्योरी:आईआईआरएस के निदेशक प्रकाश चौहान ने बताया जैसे-जैसे चमोली हादसे की खबर आग की तरह फैल रही थी. वैसे-वैसे इस हादसे को लेकर अलग-अलग थ्योरियां भी सामने आने लगीं थीं. कोई इसे न्यूक्लियर विस्फोट बता रहा था तो कोई इसे ग्लेशियर झील की वजह से आई आपदा करार दे रहा था. मगर इसरो द्वारा जारी किए गए इंटरनेशनल चार्टर के बाद इंडियन इंस्टीट्यूट आफ रिमोट सेंसिंग को मिली तस्वीरों ने इन सभी भ्रामक थ्योरियों पर विराम लगा दिया था.

वास्तविकता में हादसे के शुरुआती बिंदु पर क्या हुआ था, यह पूरी दुनिया के सामने लाया गया. वहीं दूसरी तरफ आईआईआरएस द्वारा तस्वीरों के साथ साथ तमाम तरह के डाटा को आपदा प्रबंधन के साथ साझा किया गया. जिसके बाद राहत और बचाव कार्यों को लेकर आपदा प्रबंधन को मदद मिली.

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पहली बार हुई ऐसी घटना, ये रही वजह:7 फरवरी 2021 को चमोली में नंदा देवी की पहाड़ियों से आई इस आफत को लेकर शोधकर्ताओं का कहना है कि यह अपने आप में एक बेहद यूनिक और अलग तरह की घटना थी. शोधकर्ता प्रकाश चौहान ने बताया चमोली हादसे के पीछे की वजह एक पहाड़ी का टूट जाना था.

चमोली हादसे की टाइमलाइन.

शोधकर्ताओं का कहना है कि नंदा देवी बायोस्फीयर रिर्जव जोन एक फ्रजाइल जोन है, इसीलिए इस क्षेत्र को संरक्षित क्षेत्र भी घोषित किया गया है. उन्होंने कहा चमोली हादसा सभी शोध संस्थाओं के लिए एक आंख खोलने वाली घटना थी. क्योंकि किसी ने भी इस तरह की घटना की उम्मीद नहीं की थी. अमूमन बरसात के मौसम में इस तरह की घटनाओं की आशंका बनी रहती है लेकिन चमोली आपदा ने सभी को चौंकया.

शोधकर्ताओं के अनुसार क्षेत्र में लगातार बर्फबारी होती रहती है. बर्फ भी गलती रहती है. इस तरह से पुरानी बर्फ और नई बर्फ का जमाव घाटी में होता रहता है. जिससे की जमीन लगातार कमजोर होती जाती है. जिससे बड़ी-बड़ी पहाड़ियां दरक जाती हैं.

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ISRO ने शुरू किया काम:आईआईआरएस के निदेशक प्रकाश चौहान ने बताया कि चमोली हादसे से हम सबको सीखने की जरूरत है. उन्होंने बताया हिमालय में इस तरह के न जाने कितने कमजोर पहाड़ और ग्लेशियर हैं. उन्होंने कहा इस तरह के सभी ग्लेशियर को लेकर इसरो मैपिंग का काम कर रहा है.

उत्तराखंड सरकार के साथ मिलकर इस तरह के सभी ग्लेशियर को आईडेंटिफाई किया जाएगा. साथ ही उन जगहों पर जहां पर किसी तरह के हाइड्रो पावर लगे हुए हैं, वहां पर भी डाटा कलेक्शन का काम किया जाएगा. भविष्य में इस तरह की आपदा की संभावनाएं कम हो इसके लिए शोध और स्टडी की जाएगी.

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फॉरेस्ट फायर पर भी इसरो कर रहा है काम:देहरादून में मौजूद इंडियन इंस्टीट्यूट आफ रिमोट सेंसिंग उत्तराखंड में भीषण आपदा का स्वरूप लेती जा रही फॉरेस्ट फायर पर भी लगातार काम कर रहा है. रिमोट सेंसिंग इंस्टीट्यूट के निदेशक प्रकाश चौहान ने बताया कि हाल ही में उनके संस्थान द्वारा की गई स्टडी में यह साफ हुआ है कि 2020 में जब लॉकडाउन था तो फॉरेस्ट फायर की घटनाएं बहुत कम रिपोर्ट की गई.

जिससे साफ हुआ है कि जंगलों में लगने वाली आग के पीछे इंसानी हाथ है. इसके अलावा रिमोट सेंसिंग इंस्टीट्यूट के माध्यम से फॉरेस्ट फायर को सैटेलाइट के माध्यम से ट्रैक किया जाता है. रिमोट सेंसिंग इंस्टीट्यूट द्वारा एक एप्लीकेशन भी डेवेलप किया गया है. जिसके माध्यम से फॉरेस्ट फायर की जियो टैगिंग की जाएगी. जिससे वन विभाग को काफी मदद मिलेगी.

Last Updated : Oct 14, 2021, 10:45 PM IST

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