देहरादून:गढ़वाल क्षेत्र के पहाड़ी जनपद पौड़ी, टिहरी, चमोली और उत्तरकाशी के पहाड़ी इलाकों में 'इगास बग्वाल' लोक पर्व को पारंपरिक तौर से मनाया जाता है. इस दिन पहाड़ी क्षेत्रों में हर त्यौहार की तरह विभिन्न तरह के पहाड़ी खान-पान बनते हैं. दीपावली की तरह इस दिन भी लोग घरों में दिए जलते हैं. साथ ही देवदार के छिलकों से तैयार किए गए "भैलो" देखने को मिलते हैं. यह बिल्कुल अलग तरह से किया जाने वाला एक आयोजन है. जिसमें लोग देवदार की लकड़ी के छिलके को एक रस्सी या बेल में बांध कर घुमाते हैं.
इगास लोक पर्व की दो मान्यताएं सबसे ज्यादा प्रचलित: लोक कथाओं के अनुसार इगास पर्व मनाने के पीछे कई अलग-अलग कहानी हैं, लेकिन सबसे प्रचलित दो कहानी हैं. पहली कहानी गढ़वाल के वीर सेनापति माधव सिंह भंडारी की है. दरअसल वह गढ़वाल नरेश के ऐसे सेनापति थे जो की दुश्मन से लड़ते-लड़ते तिब्बत बॉर्डर से आगे चले गए थे और इस दौरान दीपावली का पर्व आया, लेकिन गढ़वाल क्षेत्र में किसी ने दीपावली नहीं मनाई और दीपावली के ठीक 11 दिन बाद जब वीर सैनिक माधव सिंह भंडारी वापस अपने प्रांत लौटे, तो फिर पूरे गढ़वाल क्षेत्र में धूमधाम से दीपावली का पर्व मनाया गया.
भगवान राम के वनवास से वापस लौटने की देर से मिली थी सूचना:इसके अलावा एक और कहानी इगास लोक पर्व को लेकर बेहद प्रचलित है. ऐसा कहा जाता है कि भगवान राम के वनवास से वापस लौटने के मौके पर जब दीपावली मनाई जा रही थी, तो उस वक्त पहाड़ों में सूचना का कोई साधन ना होने की वजह से भगवान राम के वापस आने की सूचना लोगों को देर से मिली थी. जिससे पहाड़ों में दीपावली के 11 दिन बाद दीपावली मनाई जाती है, जिसे लोक पर्व इगास के रूप में जाना जाता है.