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उत्तराखंड में आग के गोले से खेलते हुए आज मनाई गई दीपावली, जानिए इगास लोकपर्व का महत्व

Igas Bagwal festival celebrated in Uttarakhand उत्तराखंड अपनी पारंपरिक संस्कृति, परंपराओं और लोक पर्व के लिए प्रदेश में एक अलग स्थान रखता है. देवभूमि के लोक पर्व पर पूरी तरह से लोक परंपराओं, संस्कृति और खान-पान पर आधारित हैं. इसी तरह का एक लोक पर्व है दीपावली के ठीक 11 दिनों बाद मनाया जाने वाला 'इगास बग्वाल' लोक पर्व.

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By ETV Bharat Uttarakhand Team

Published : Nov 23, 2023, 9:46 PM IST

Updated : Nov 23, 2023, 10:31 PM IST

उत्तराखंड में आग के गोले से खेलते हुए आज मनाई गई दीपावली

देहरादून:गढ़वाल क्षेत्र के पहाड़ी जनपद पौड़ी, टिहरी, चमोली और उत्तरकाशी के पहाड़ी इलाकों में 'इगास बग्वाल' लोक पर्व को पारंपरिक तौर से मनाया जाता है. इस दिन पहाड़ी क्षेत्रों में हर त्यौहार की तरह विभिन्न तरह के पहाड़ी खान-पान बनते हैं. दीपावली की तरह इस दिन भी लोग घरों में दिए जलते हैं. साथ ही देवदार के छिलकों से तैयार किए गए "भैलो" देखने को मिलते हैं. यह बिल्कुल अलग तरह से किया जाने वाला एक आयोजन है. जिसमें लोग देवदार की लकड़ी के छिलके को एक रस्सी या बेल में बांध कर घुमाते हैं.

इगास बग्वाल लोक पर्व पर जलाए गए दीपक

इगास लोक पर्व की दो मान्यताएं सबसे ज्यादा प्रचलित: लोक कथाओं के अनुसार इगास पर्व मनाने के पीछे कई अलग-अलग कहानी हैं, लेकिन सबसे प्रचलित दो कहानी हैं. पहली कहानी गढ़वाल के वीर सेनापति माधव सिंह भंडारी की है. दरअसल वह गढ़वाल नरेश के ऐसे सेनापति थे जो की दुश्मन से लड़ते-लड़ते तिब्बत बॉर्डर से आगे चले गए थे और इस दौरान दीपावली का पर्व आया, लेकिन गढ़वाल क्षेत्र में किसी ने दीपावली नहीं मनाई और दीपावली के ठीक 11 दिन बाद जब वीर सैनिक माधव सिंह भंडारी वापस अपने प्रांत लौटे, तो फिर पूरे गढ़वाल क्षेत्र में धूमधाम से दीपावली का पर्व मनाया गया.

इगास बग्वाल लोक पर्व में शामिल हुए कैबिनेट मंत्री सुबह उनियाल

भगवान राम के वनवास से वापस लौटने की देर से मिली थी सूचना:इसके अलावा एक और कहानी इगास लोक पर्व को लेकर बेहद प्रचलित है. ऐसा कहा जाता है कि भगवान राम के वनवास से वापस लौटने के मौके पर जब दीपावली मनाई जा रही थी, तो उस वक्त पहाड़ों में सूचना का कोई साधन ना होने की वजह से भगवान राम के वापस आने की सूचना लोगों को देर से मिली थी. जिससे पहाड़ों में दीपावली के 11 दिन बाद दीपावली मनाई जाती है, जिसे लोक पर्व इगास के रूप में जाना जाता है.

भावी पीढ़ी तक लोक पर्व को पहुंचा रही समाज सेवी संस्था:देहरादून में उत्कर्ष जन कल्याण सेवा समिति के प्रवक्ता नरेंद्र प्रसाद रतूड़ी ने बताया कि उनकी पूरी कोशिश है कि हमारी परंपराएं और लोक पर्व आने वाली पीढ़ी तक पहुंचे. जिस तरह से पुराने समय में पहाड़ों पर लोक पर्व मनाए जाते थे, अब उस तरह पर्व नहीं मनाए जाते हैं, लेकिन उनकी कोशिश है कि इन पर्वों के महत्व और उनकी लोक परंपराएं हम सब के बीच मौजूद रहे. उन्होंने कहा कि आज समिति द्वारा एक कार्यक्रम आयोजित किया गया था. जिसमें कोशिश की गई कि सभी कार्यक्रम अपनी लोक भाषा गढ़वाली में हो और कार्यक्रम का स्वरूप पूरी तरह से अपने लोक संस्कृति के अनुसार हो.

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कैबिनेट मंत्री सुबह उनियाल ने कहा कि उत्तराखंड के लोक पर्व जो कि एक समय विरोध की कगार पर थे, लेकिन आज लोगों की जागरूकता और युवा समाज ने इन्हें नई ऊर्जा देने का काम किया है. यही वजह है कि आज की युवा इन लोक पर्व के प्रति बेहद आकर्षक नजर आ रहे हैं. उन्होंने ने बताया कि सोशल मीडिया के माध्यम से भी पहाड़ों के लोक पर्व आज हर एक तक पहुंच रहे हैं.
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Last Updated : Nov 23, 2023, 10:31 PM IST

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