ऋषिकेश/मसूरीः उत्तराखंड लोक संस्कृति का ऐतिहासिक पर्व इगास यानि पहाड़ की दीपावली के नाम से विख्यात यह पर्व खास महत्व रखता है. लोक संस्कृति समिति द्वारा तीर्थनगरी ऋषिकेश के 14 बीघा प्रांगण में धूमधाम से मनाया गया. जिसमें सैकड़ों की संख्या में स्थानीय लोगों ने प्रतिभाग किया. वहीं मसूरी में जलते हुए भेलू को हाथों में लेकर कलाकारों ने इगास पर्व मनाया.
धूमधाम से मनाया गया इगास-बग्वाल का त्योहार कार्यक्रम के मुख्य अतिथि कृषि मंत्री सुबोध उनियाल ने कहा कि उत्तराखंड एक युवा प्रदेश है. जिसको बने 18 साल पूरे होने जा रहे हैं. यह अपनी संस्कृति व त्योहारों को लेकर बड़ा ही महत्व रखता है. ऐसे में उत्तराखंड की संस्कृति को बचाने के लिए जितने भी त्योहार और पर्व मनाए जाते हैं. उनको समझ कर आने वाली पीढ़ियों को बताना अत्यंत आवश्यक है.
दीपावली के ग्यारह दिन बाद मनाए जाने वाले इगास यानि पहाड़ी दीपावली का पर्व बड़ी ही धूमधाम से मनाया जाता है. इसी क्रम में तीर्थनगरी ऋषिकेश में चौदह बीघा क्षेत्र में इगास पर्व बड़ी धूमधाम से मनाया गया. जिसमें हजारों की संख्या स्थानीय लोग पहुंचे.
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युवा, वृद्ध, महिला व बच्चा हर वर्ग के लोगों के अंदर कार्यक्रम को लेकर उत्साह देखने को मिला. गढ़वाली संगीत व नृत्य का भी कार्यक्रम हुआ. जिसमें गढ़वाल के लोकप्रिय गायक व कलाकारों ने अपनी प्रस्तुति दी.
मसूरी में भी गढ़वाल महासभा के तत्वावधान में पारंपरिक वाद्य यंत्रों के साथ इगास बग्वाल त्योहार को शहीद स्थल पर धूमधाम के साथ मनाया गया. इस दौरान जलते हुए भेलू को हाथों में लेकर कलाकारों के साथ पूर्व पालिकाध्यक्ष मनमोहन सिंह मल्ल और पर्यटकों ने जमकर पारंपरिक वाद्य यंत्रों की धुन पर नृत्य किया. साथ ही स्थानीय देवताओं की पूजा की गई.
पूर्व पालिकाध्यक्ष मनमोहन सिंह मल्ल ने बताया कि देश-विदेश से आए पर्यटकों को अपनी संस्कृति के महत्व के बारे में बताने का प्रयास किया जा रहा है. उन्होंने कहा कि भगवान रामचंद्र के वनवास से अयोध्या लौटने के बाद पहाड़ी क्षेत्रों में करीब एक माह के बाद पता चला और ग्रामीणों में खुशी की लहर दौड़ गई. जिसके स्वरूप में ग्रामीण इस दिवस को इगास बग्वाल के रूप में मनाते हैं.