ऋषिकेशःगुजरात के मोरबी में मच्छु नदी के ऊपर बने केबल पुल टूटने से सैकड़ों लोगों की मौत हो गई. इस हादसे ने पूरे देश को झकझोर कर रख दिया. उत्तराखंड में भी कई पुल हैं, जिसकी नींव ब्रिटिश काल में रखी गई थी. लिहाजा, इन पुलों से आवाजाही करना कितना सुरक्षित है, यह सवाल सभी के जहन में आता है. इसी कड़ी में ऋषिकेश स्थित देश के प्रसिद्ध पुलों में शामिल लक्ष्मण झूला और राम झूला पुल की स्थिति के बारे में जानते हैं.
बता दें कि, लक्ष्मण झूला पुल को तीर्थनगरी ऋषिकेश की पहचान कहा जाता है. यहां देश-विदेश से आने वाले पर्यटक खासतौर पर राम झूला और लक्ष्मण झूला को देखने के लिए पहुंचते हैं. ऐसे में आज ईटीवी भारत आपको बताएगा कि यह पुल कब बने थे और उनकी स्थिति क्या है?
लक्ष्मण झूला कब बना?लक्ष्मण झूला पुल का निर्माण 1923 में शुरू हुआ था. जो 1924 में बाढ़ के चलते ढह गया था. इसके बाद एक बार फिर से पुल की नींव अंग्रेजी हुकूमत ने 1927 में रखी थी. 11 अप्रैल 1930 को पुल बनकर तैयार हुआ था. जिसके बाद 1930 में लोगों की आवाजाही के लिए इस पुल को खोल दिया गया था. लक्ष्मण झूला (Lakshman Jhula Bridge Rishikesh) 450 फीट लंबा झूलता हुआ पुल (Lakshman Jhula Suspension Bridge) है.
बताया जाता है कि पहले यह पुल जूट से बना था, जिसे 1939 में लोहे के झूलते हुए पुल के रूप में पुनर्निर्मित किया गया था. यह पुल गंगा नदी के ऊपर बना हुआ है. इसे देखने के लिए देश विदेश से बड़ी संख्या में पर्यटक यहां पहुंचते हैं. जहां से नदी, मंदिरों और आश्रमों का अद्भुत दृश्य देखने को मिलता है. ऋषिकेश का लक्ष्मण झूला क्षेत्र की पहचान इस पुल से ही होती है. कहा जाता है कि लक्ष्मण ने इसी स्थान पर जूट की रस्सियों के सहारे गंगा नदी को पार किया था.
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राम झूला कब बना?ऋषिकेश में ही राम झूला पुल (Ram Jhula Bridge Rishikesh) भी है. जो काफी प्रसिद्ध है. साल 1986 में राम झूला पुल तैयार किया गया था. करीब 230 मीटर लंबे राम झूला पुल का निर्माण सिर्फ पैदल यात्रियों की आवाजाही के लिए किया गया था, लेकिन अब पैदल यात्रियों के साथ दोपहिया वाहनों की आवाजाही भी इस पुल पर रहती है. इस पुल की भार वहन क्षमता 220 किलोग्राम प्रति स्क्वायर मीटर है.