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बाल दिवस विशेष: हिंदी साहित्य के लिए अलंकरण से कम नहीं 'अलंकृता'

देहरादून की रहने वाली अंलकृता का छोटी सी उम्र में हिंदी साहित्य के प्रति लगाव देखते ही बनता है. अंलकृता को न सिर्फ हिंदी साहित्य में रुचि है, बल्कि उसे कविता लिखने और सुनाने का भी बड़ा शौक है.

अंलकृता का छोटी सी उम्र में हिंदी साहित्य के प्रति लगाव देखते ही बनता है.

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Published : Nov 14, 2019, 3:26 PM IST

देहरादून: आधुनिकता की दौड़ में जहां युवा पीढ़ी का हिंदी साहित्य से मोह भंग होता जा रहा है. वहां देहरादून की रहने वाली अंलकृता का छोटी सी उम्र में हिंदी साहित्य के प्रति लगाव देखते ही बनता है. अंलकृता को न सिर्फ हिंदी साहित्य में रुचि है, बल्कि उसे कविता लिखने और सुनाने का भी बड़ा शौक है.

अंलकृता का छोटी सी उम्र में हिंदी साहित्य के प्रति लगाव देखते ही बनता है.

देहरादून के नामी-गिनामी सेंट जोसफ स्कूल में कक्षा 6 में पढ़ने वाली अलंकृता अंग्रेजी बोलती है और बिल्कुल नई पीढ़ी होने का अहसास भी कराती है, लेकिन जब अलंकृता हिंदी में लिखी खुद की कविताएं सुनाती है तो लगता कि उसने अपने आसपास की चीजों को बढ़े सलीके से अपनी कविताओं में पिरोया है.

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हिंदी साहित्यकार लीलाधर जगूड़ी की पोती अलंकृता देहरादून में रहती हैं. अलंकृता बताती है कि उन्होंने अपनी पहली कविता पहली क्लास में लिखी थी, जब टीचर ने सभी बच्चों को घर से कुछ कर रचनात्मक आर्ट बना कर लाने की कहा तो अलंकृता कविता लिख कर लेकर गयी जो सभी को बहुत पसंद आया.

अलंकृता ने बताया कि उनकी मम्मी उनकी टाइप राइटर है और उनकी भावनाओं को उनकी मम्मी शब्दों में पिरोती हैं. अलंकृता प्रदूषण, प्रकृति के अलावा समाज से जुड़े तमाम विषयों पर कविताएं लिखती हैं.

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