देहरादून:14 सितंबर पूरे देश में हिंदी दिवस के रूप में मनाया जाता है. इस मौके पर ईटीवी भारत आपको मिलाने जा रहा है एक ऐसी शख्सियत से जिन्होंने हिंदी साहित्य में अपने कार्य के लिये पद्मश्री सम्मान के अलावा कई पुरस्कार प्राप्त किए हैं. उत्तराखंड के टिहरी जनपद में जन्मे 70 वर्षीय लीलाधर जगूड़ी के नाम कई गद्य व काव्य संग्रह हैं.
पद्मश्री जगूड़ी बोले- 'हिंदी बिन नहीं हिंदुस्तान की कल्पना'. भारतीयता से बनी है हिंदी
साहित्यकार लीलाधर जगूड़ी ने ईटीवी भारत से बातचीत करते हुए बताया कि एक दौर वो भी था जब हिंदी को क्षेत्र विशेष से जोड़कर देखा जाता था, लेकिन आज हिंदी भाषा केवल अवधि और ब्रजभाषा का मिश्रण मात्र नहीं रह गई है बल्कि अब यह हिंदुस्तान की भाषा है, हिंदुस्तान की पहचान है.
हिंदी का देश की आजादी में था अहम योगदान
साहित्यकार लीलाधर जगूड़ी ने देश के इतिहास में हिंदी के भूमिका को बताते हुए कहा कि हिंदी की असल ताकत देश के स्वतंत्र आंदोलन में देखने को मिली, जहां खुद गुजरात से होने के बावजूद भी राष्ट्रपिता महात्मा गांधी ने हिंदी भाषा को तवज्जो दी और इसकी सबसे बड़ी वजह थी कि हिंदी पूरे देश को जोड़ती थी.
मौजूदा दौर में हिंदी और अंग्रेजी के बीच चल रही जद्दोजहद को साहित्यकार लीलाधर जगूड़ी बिल्कुल गलत मानते हैं. उन्होंने कहा कि भाषाएं किसी दायरे में सीमित रहने वाली नहीं हैं. भाषा में शब्द भी यात्रा करते हैं और सहूलियत के हिसाब से वह अपनी जगह बनाते हैं. ऐसे में हमें भाषा को बंदिशों में रखने की जरूरत नहीं है और न ही किसी पर थोपने की जरूरत है.
उन्होंने कहा कि भाषा खुद अपनी जगह बनाती है बशर्ते भाषाओं के लिए केवल खिड़की ही नहीं बल्कि दरवाजे भी खुले होने चाहिए यानी भाषा को हम क्षेत्र और व्यक्ति विशेष न देकर उसे भाव से जोड़कर देखें.
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हिंदी समझने वालों में कमी
जगूड़ी का मानना है कि हिंदी को गहराई से समझने वालों में जरूर थोड़ा कमी जरूर आई है लेकिन हिंदी ने अपना अस्तित्व नहीं खोया है. अंग्रेजी और हिंदी बोलने वालों के बीच अंतर हमारी उपनिवेशवादी मानसिक गुलामी को दर्शाता है.
खुद अंग्रेजी भाषा में बात करने के माहिर हिंदी साहित्यकार लीलाधर जगूड़ी ने कहा कि हिंदी बोलने वाले और अंग्रेजी बोलने वाले के बीच अंतर देखने वाली जो धारणा है वह उपनिवेशवादी है. उन्होंने कहा कि व्यक्ति की पहचान उसके विचारों से होनी चाहिए, भाषा केवल माध्यम है और माध्यम कभी भी किसी व्यक्ति के विचार और भाव में अंतर नहीं डालता है.
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पीएम मोदी ने दिलाया ऊंचा दर्जा
पद्मश्री लीलाधर जगूड़ी ने इस दौरान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की तारीफ करते हुये कहा कि पीएम मोदी के हिंदी बोलने से भाषा को ऊंचा दर्जा मिला है. आज के दौर में हिंदी को अगर किसी ने सबसे ज्यादा तवज्जो दी है तो वह देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने दी है. पीएम मोदी को देश के भीतर ही नहीं अंतरराष्ट्रीय मंचों पर भी कई बार हिंदी बोलते हुए देखा गया है. वह एक राजनेता होने के नाते जानते हैं कि किस तरह से वह अपने देश के लोगों की भावना तक पहुंच सकते हैं और हिंदी इसका एकमात्र सबसे बड़ा माध्यम है.
कौन हैं साहित्यकार लीलाधर जगूड़ी
- पद्मश्री सम्मान व साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित प्रसिद्ध कवि व साहित्यकार लीलाधर जगूड़ी बीती एक जुलाई को 70 वसंत देख चुके हैं.
- टिहरी गढ़वाल के धगड़ गांव में 1940 को जन्मे जगूड़ी का जीवन संघर्षों से भरा हुआ है.
- एक आम परिवार में जन्मे लीलाधर जगूड़ी ने सेना में नौकरी करने से शुरुआत की थी, इसके बाद चौकीदारी का काम भी देखा.
- साहित्यकार बनने तक जगूड़ी की यात्रा काफी संघर्षपूर्ण रही. इस सफर में लीलाधर जगूड़ी ने अपने 15 काव्य संग्रहों के साथ-साथ कई गद्य संग्रह भी लिखे, जिनमें उन्हें कई सुप्रसिद्ध रचनाओं के लिए सम्मानित किया गया.
- लीलाधर जगूड़ी को वर्ष 2004 में तत्कालीन राष्ट्रपति डॉ एपीजे अब्दुल कलाम द्वारा पद्मश्री पुरस्कार से नवाजा गया.
- उन्हें 1997 में केंद्रीय साहित्य अकादमी का सर्वोच्च पुरस्कार उनके काव्य खंड "अनुभव के आकाश में चांद" के लिए मिल चुका है.
- साल 2018 में जगूड़ी द्वारा रचित सबसे लोकप्रिय काव्य खंड "जितने लोग उतने प्रेम" के लिए उन्हें व्यास सम्मान भी मिल चुका है.
- इसके अलावा उनके काव्य खंड "भय भी शक्ति देता है" के लिए उन्हें पश्चिम बंगाल सरकार द्वारा सतदल पुरस्कार भी दिया गया है.