देहरादून: पिछले कई सालों से वैज्ञानिक हमें जलवायु परिवर्तन और ग्लोबल वॉर्मिंग को लेकर चेतावनी देते आ रहे हैं. लेकिन, दिन प्रतिदिन हालात गंभीर होते जा रहे हैं. एशिया और अफ्रीकी क्षेत्रों में ज्यादा प्रदूषण और धूल की वजह से हिमालय की बर्फ तेजी से पिघल रही है. एक नए अध्ययन में यह दावा किया गया है. शोध में बताया गया है कि पश्चिमी हिमालय में ऊंचे पहाड़ों पर उड़ने वाली धूल बर्फ के तेजी से पिघलने के प्रमुख कारकों में से एक है.
नेचर क्लाइमेट चेंज में प्रकाशित रिसर्च पर जानकारी देते हुए वाडिया इंस्टीट्यूट ऑफ हिमालयन जियोलॉजी के वैज्ञानिक डॉ. संतोष कुमार राय ने कहा कि बर्फ से ढके हिमालय के पहाड़ों के ऊपर उड़ने वाली धूल, बर्फ के पिघलने की प्रक्रिया को तेज कर सकती है. ऐसा इसलिए होता है क्योंकि धूल सूरज की रोशनी को अवशोषित कर सकती है और बाद में आसपास के क्षेत्र को गर्म कर सकती है.
उन्होंने कहा है कि तेजी से पिघलने वाली ध्रुवीय बर्फ की चोटियां चिंता का विषय हैं, नियमित बर्फ पिघलना भी प्राकृतिक पारिस्थितिकी का हिस्सा है. ग्लेशियर से जो मीठा पानी बहकर नीचे उतरता है, वही नदियों में प्रवाहित होते हैं. यह सामान्य स्नोमेल्ट प्रक्रिया के परिणामस्वरूप होता है. लेकिन, एशिया और अफ्रीका की धूल कई किलोमीटर का सफर तक कर हिमालय पहुंचती हैं और ग्लेशियरों को नुकसान पहुंचाती है.
700 मिलियन लोग बर्फ पर निर्भर
एक अनुमान के मुताबिक, दक्षिण पूर्व एशिया के लगभग 700 मिलियन लोग अपनी मीठे पानी की जरूरतों के लिए हिमालय की बर्फ पर निर्भर हैं. गंगा, ब्रह्मपुत्र, यांग्त्ज़ी, और हुआंग सहित भारत और चीन की प्रमुख नदियां हिमालय से ही उत्पन्न होती हैं. इसलिए, इस तरह के अध्ययनों का विश्लेषण करना महत्वपूर्ण है कि इन क्षेत्रों में स्नोमेल्ट पहले जैसा है या नहीं और अगर इसमें बदलाव हुआ है तो यह क्यों हुआ है.