देहरादून:बासमती चावल के लिए अलग पहचान रखने वाली दून नगरी अपनी ये पहचान खोती जा रही है. जब दून की अधिकतर जमीन में बासमती चावल की फसल लहलहाया करती थी. लेकिन बदलते मौसम के साथ दून घाटी से बासमती की खेती गायब होती जा रही है.
बता दें कि बीज प्रमाणीकरण कंपनियों की सर्वे रिपोर्ट के अनुसार साल 1981 तक देहरादून जिले में 6000 एकड़ कृषि भूमि में बासमती की पैदावार हुआ करती थी. लेकिन साल 1990 में यह घटकर 200 एकड़ रह गई. वहीं, साल 2010 के आते-आते यह केवल 55 एकड़ में सिमट कर रह गई है. जिसके बाद साल 2019 में मात्र 11 एकड़ कृषि भूमि में ही दून बासमती उगाई जा रही है. जिसमें टाइप थ्री दून बासमती की पैदावार काफी कम है.
देहरादून में सिमटती जा रही बासमती की खेती. कृषि विशेषज्ञ एके सक्सेना ने बताया कि देहरादून से बासमती की खेती कम होने का एक बहुत बड़ा कारण ग्लोबल वार्मिंग है. बासमती की पैदावार के लिए 25 से 28 डिग्री सेल्सियस तक के निर्धारित तापमान की जरूरत है. लेकिन वर्तमान में घाटी का तापमान कई गुना बढ़ गया है. साथ ही बताया कि साल दर साल दून घाटी में बढ़ती जनसंख्या भी बासमती की पैदावार कम होने का एक कारण है. दरअसल, जनसंख्या बढ़ने के साथ ही कृषि भूमि घटती जा रही है. जिसके चलते बासमती की पैदावार काफी कम हो चुकी है.
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गौरतलब है कि हाल ही में गोविंद बल्लभ पंत कृषि विश्वविद्यालय पंतनगर के वैज्ञानिकों ने दून की प्रसिद्ध बासमती का जैविक प्रजनक बीज तैयार कर लिया है. साथ ही इस बीज को एक निजी कंपनी को भी उपलब्ध करा दिया है.