देहरादून: कांग्रेस के वरिष्ठ नेता और उत्तराखंड के पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत ने सूबे की ग्रीष्मकालीन राजधानी गैरसैंण को लेकर एक बार फिर बीजेपी सरकार को आड़े हाथों लिया है. हरीश रावत कल 14 जुलाई को गैरसैंण में किसी सरकारी दफ्तर में सांकेतिक तौर पर तालाबंदी कर अपना विरोध जाहिर करेंगे. उनका आरोप है कि बीजेपी सरकार ने गैरसैंण को लेकर सिर्फ कोरे वादे ही किए हैं.
हरीश रावत ने कहा कि गैरसैंण भराड़ीसैंण गंभीर उपेक्षा की कगार पर हैं. बहुत सारे लोग गैरसैंण अध्याय को बंद कर देना चाहते हैं. आखिर ग्रीष्म कालीन राजधानी या 25 हजार करोड़ रुपए का पैकेज यह भी तो किसी मुख्यमंत्री ने ही कहा? मगर 25 हजार करोड़ तो अलग वहां 25 पैसे नहीं लग रहे हैं और ग्रीष्म कालीन राजधानी के नाम से एक चतुर्थ श्रेणी या तृतीय श्रेणी के सरकारी कर्मचारी को भी वहां नहीं बैठाया गया है.
हरीश रावत ने कहा कि मुख्यमंत्री, मंत्री और सचिव में से कोई एक भी वहां रात तो छोड़िए दिन में भी प्रवास के लिए नहीं जाते हैं. भराड़ीसैंण का भव्यतम विधानसभा भवन बांहें फैलाए हुए अपने कानून बनाने वालों का इंतजार करता रह गया, वो भराड़ीसैंण के चैप्टर को बंद कर देना चाहते हैं.
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हरीश रावत ने कहा कि उनके कार्यकाल में ही गैरसैंण और उसके चारों तरफ के क्षेत्रों में एक हजार करोड़ रुपए से भी ज्यादा व्यय हुआ और वह राज्य का पैसा था. पता नहीं इतिहास भराड़ीसैंण विधानसभा भवन के निर्माण आदि जो कार्य हमारी सरकार ने संपादित किए उन्हें किस तरीके से विश्लेषित करेगा. मगर मेरे मन में एक ज्वाला है और वह ज्वाला उस समय और प्रखर हो जाती है, जब मैं अपनी माताओं-बहनों की राज्य आंदोलन के नारों, उनके संघर्ष और उनके बलिदान को याद करता हूं.
हरीश रावत ने कहा कि बेलमती चौहान और हंसा धनाई तो प्रतीक हैं, उस संघर्ष में महिला शक्ति की भावना के. यह राज्य महिला शक्ति के विद्रोह से बना, उनके बलिदान से बना, मगर उनकी व्यथा इन 22 वर्षों में हम कितनी दूर कर पाए, उनके जीवन में हम कितना परिवर्तन ला पाए, इन सबको विश्लेषित करने की आवश्यकता है.
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गांव की महिला मुखर नहीं है, मगर वो राज्य आंदोलन के नारों को भूली भी नहीं है. एक तरफ उन नारों की गूंज को अपने मन में दोहराती है और दूसरी तरफ अपनी वर्तमान स्थिति को देखती है, उसके मन में कितनी पीड़ा उभर आती होगी, उसके चेहरे पर वह कष्ट किस रूप में झलक दिखाता होगा. मैं इसकी कल्पना मात्र ही करता हूं. इसलिए मां-बहनों का संघर्ष और आज भी कष्टपूर्ण स्थिति मुझे बार-बार गैरसैंण-भराड़ीसैंण की तरफ लेकर के जाती है. मैं कितना सही और कितना गलत कर रहा हूं, निर्णय तो आप करेंगे. लेकिन बिना वहां गए, बिना व्यथा को उडेले, मेरा मन चैन नहीं पाता है. यदि आप मुझसे सहमत हैं, संघर्ष करने के लिए तैयार हैं, तो बताइए. यदि मैं गलत रास्ते पर चल रहा हूं तो भी बताइए.