देहरादून: 'या तो मुख्यमंत्री बनूंगा या घर बैठूंगा'... लगता है जब पूर्व सीएम हरीश रावत ये बयान दे रहे थे तो उनके मुंह में सरस्वती बैठी थी. ठीक ऐसा ही हुआ. न हरीश रावत चुनाव जीते, न वो सीएम बन सकेंगे और अब वो घर ही बैठेंगे. उत्तराखंड की राजनीति के धुरंधर माने जाने वाले पूर्व सीएम हरीश रावत की ये हार उनके राजनीतिक करियर का अंत भी मानी जा रही है. हालांकि, इस दफा बेटी अनुपमा की हरिद्वार ग्रामीण सीट से जीत ने हरदा के जख्म पर थोड़ा मरहम लगाने का काम जरूर किया है. बेटी अनुपमा ने अपने पिता की हार का बदला तो ले लिया, लेकिन राजनीति के माहिर खिलाड़ी माने जाने वाले हरदा लगातार दूसरी बार भी अपनी साख बचाने में नाकाम रहे.
लालकुआं से हारे हरीश रावत: साल 2022 के दंगल में हरीश रावत कांग्रेस के टिकट पर लालकुआं सीट से चुनावी मैदान में थे, लेकिन बीजेपी के प्रत्याशी मोहन सिंह बिष्ट उन्हें करीब 13 हजार 893 वोटों से पटखनी देने में कामयाब रहे. हालांकि, चुनाव परिणाम आने से पहले हरदा कांग्रेस की जीत और खुद को सीएम चेहरा होने का दम भरते रहे, लेकिन प्रदेश की जनता ने उनके साथ ही कांग्रेस को भी एक बार फिर से नकार दिया.
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2017 में दो सीटों से हारे थे: बता दें कि, 2017 में हरीश रावत हरिद्वार ग्रामीण और किच्छा सीट से चुनावी मैदान में उतरे थे, लेकिन स्वामी यतीश्वरानंद और राजेश शुक्ला के सामने उनकी जमानत जब्त हो गई थी. वहीं, इस बार हरदा एक बार फिर से एड़ी चोटी का जोर लगाकर बीजेपी की विजय रथ रोकने का दम भर रहे थे, लेकिन कांग्रेस के 'सेनापति' हरदा को इस बार भी जनता ने बाहर का रास्ता दिखा दिया.
केंद्र में मंत्री भी रहे हैं हरीश रावत: एक वक्त था जब प्रदेश से लेकर केंद्र की सियासत में हरीश रावत का बड़ा कद था. केंद्र की मनमोहन सरकार में वो केंद्रीय जल संसाधन मंत्री रहे हैं. वहीं, 2014 में उन्होंने उत्तराखंड की कमान संभाली थी, जब उनको विजय बहुगुणा के स्थान पर मुख्यमंत्री पद सौंपा गया था. इसके साथ ही वो कांग्रेस के सांसद और राष्ट्रीय महासचिव जैसे पदों पर रहे चुके हैं. इसके बावजूद उनकी साख 2016 के बाद कांग्रेस के साथ-साथ प्रदेश की जनता के बीच गिरती रही.