देहरादून: नदियों के प्रदेश उत्तराखंड में बीते कुछ सालों से पेयजल संकट एक बड़ी समस्या बनती जा रही है. पर्यावरण में आ रहे बदलाव के कारण प्रदेश में भूजल स्तर दिन प्रतिदिन गिरता जा रहा है. गिरते भूजल स्तर को लेकर राजधानी में देहरादून की हालात ठीक नहीं हैं. इसके साथ ही प्रदेश के अन्य जिलों के हालात भी ठीक नहीं हैं.
जनपद देहरादून में मॉनसून से पहले 5 मीटर की गहराई में भूजल की उपलब्धता है ही नहीं. वहीं जनपद में 5 से 10 मीटर की गहराई में जो भूजल की उपलब्धता है, वह भी महज 13.51 फ़ीसदी इलाकों में ही है. इसके अलावा 10 से 15 मीटर से अधिक गहराई पर भूजल की उपलब्धता वाले इलाकों की संख्या 86 फ़ीसदी से अधिक है.
मॉनसून सीजन के दौरान भी जनपद में भूजल की स्थिति में कोई खास सुधार दर्ज नहीं किया जाता. मॉनसून के बाद भी जनपद के 26.32 फीसदी इलाकों में ही 5 मीटर तक की गहराई में भूजल उपलब्ध हो पाता है.
पर्यावरणविद् अनिल जोशी का कहना है कि प्रदेश में घटते भूजल स्तर की एक बहुत बड़ी वजह वाटर शेड यानी की जंगलों कमी होना है. जिस तरह प्रदेश में तेजी से विभिन्न विकास कार्यों के चलते जंगल घट रहे हैं, इससे बारिश होने पर भी पानी ठहर नहीं पा रहा है. जिसकी वजह से भूजल की स्थिति साल दर साल दयनीय होती जा रही है. वहीं, वाटर शेड की कमी ही भारी बारिश की स्थिति में पहाड़ों में भूस्खलन और मैदानी इलाकों में बाढ़ आने की एक बड़ी वजह भी है.
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हालांकि पिछले 2 से 3 महीनों में जिस तरह प्रदेश के विभिन्न इलाकों में कुछ दिनों के अंतराल में बारिश दर्ज की जा रही है, उसे लेकर पर्यावरणविद् अनिल जोशी कहते हैं कि इस बारिश से भूजल की स्थिति में कोई खास सुधार देखने को नहीं मिलने वाला है. इसकी बड़ी वजह यह है कि यह बारिश काफी हल्की है. वहीं दूसरी तरफ गर्मी भी हो रही है. जिसकी वजह से जो हल्की-फुल्की बारिश दर्ज की भी जा रही है. उसका पानी धरती पर समाने से पहले ही भाप बन कर उड़ जा रहा है.
प्रदेश में जिस तरह ट्यूबवेल और बोरिंग के नाम पर भूजल का लगातार अनियंत्रित दोहन हो रहा है, उससे भी भूजल का स्तर कम होता जा रहा है. ऐसे में राज्य सरकार को समय रहते भूजल के अनियंत्रित दोहन पर अंकुश लगाना चाहिए. यदि समय रहते इसका उपाय नहीं तलाशा गया तो वह दिन दूर नहीं होगा जब हज़ारों छोटी-बड़ी नदियों के राज्य उत्तराखंड में पानी का भारी संकट खड़ा हो जाएगा.