देहरादून: अपनी खूबसूरती और प्राकृतिक जल स्रोतों के लिए जाने जाने वाले राज्य उत्तराखंड में मानवीय लापरवाहियों की वजह से आने वाले समय में पेयजल संकट विकराल रूप ले सकता है. इसकी तस्दीक खुद केंद्रीय भू-जल बोर्ड ( CGWB) देहरादून स्थित क्षेत्रीय कार्यालय से प्राप्त आंकड़े कर रहे हैं. यह आंकड़े मई 2021 में बोर्ड की ओर से जुटाए गए हैं.
बता दें केंद्रीय भूजल बोर्ड से मिले आंकड़ों के अनुसार प्रदेश के मैदानी जनपदों जैसे देहरादून, हरिद्वार, उधम सिंह नगर और नैनीताल जनपद के कई इलाकों में भूजल का स्तर इतना नीचे जा चुका है कि यहां 30 से 90 मीटर तक खुदाई करने पर भी लोगों को भूजल नहीं मिल पर रहा है. केंद्रीय भूजल बोर्ड के क्षेत्रीय निदेशक प्रशांत राय ने बताया कि साल दर साल घटता भूजल स्तर प्रदेश वासियों के लिए किसी खतरे की घंटी से कम नहीं है.
साल दर साल घट रहा भू-जल का स्तर पढ़ें-सतपाल महाराज का प्लान, युवाओं को चारधाम में फुट मसाज से देंगे काम
यही कारण है कि बोर्ड की ओर से बीते वर्ष राज्य सरकार को जल स्रोतों के आर्टिफिशियल रिचार्ज के लिए मास्टर प्लान सौंपा गया था. वहीं दूसरी तरफ सिर्फ सरकार पर निर्भर न होने होए लोगों को भी जल संरक्षण को लेकर जागरूक होने की जरूरत है. यदि सभी लोग अपने घरों से ही जल संरक्षण की शुरुआत करें तो इससे काफी हद तक भूजल के घटते स्तर को नियंत्रित किया जा सकता है.
पढ़ें-त्रिवेंद्र ने बताई फ्री की हकीकत, बोले- 1 हजार करोड़ की बिजली खरीद रहा उत्तराखंड
जनपद देहरादून के कई इलाकों में भूजल स्तर काफी नीचे पहुंच गया है. इसमें लाडपुर में 91.55, तरला नागल में 76.25, नानूरखेड़ा में 69.08 mbgl है. हरिद्वार के बहादराबाद (लालढांग ) में भूजल स्तर 64.72,भगवानपुर (चुड़ियाला) में 23.85mbgl है.
पढ़ें-श्रीनगर: नियमितीकरण का बाट जोह रहे 400 स्वास्थ्यकर्मी, स्वास्थ्य मंत्री से की भेंट
डोईवाला में के चांदमारी में भूजल स्तर 39.24,धुधली में 37.15, लाल टप्पर में 24.38 mbgl है. विकासनगर के तिमली में 67.94,भालुवाला 34.58, लक्ष्मीपुर 34.58 mbgl है. हल्द्वानी के बेलपड़ाव में 57.16, लामाचौड़ 52.52, खाट बांस में 37.7 mbgl है. रामनगर के ढेला में 66.48,चिलकिया में 57.47, दोहनिया में भू जलस्तर 52.38 mbgl है.
पढ़ें-200 करोड़ का आर्थिक पैकेज जारी, CM धामी ने समझा उत्तराखंड का दर्द
गौरतलब है कि केंद्रीय भूजल बोर्ड की ओर से साल में 4 बार भूजल का स्तर मापा जाता है. इसमें जनवरी, मई, अगस्त और नवंबर माह निर्धारित हैं. केंद्रीय भूजल बोर्ड देहरादून के क्षेत्रीय निदेशक प्रशांत राय बताते हैं कि मॉनसून सीजन में भूजल के स्तर में 15 से 20% तक का सुधार देखने को मिलता है. जैसे-जैसे पोस्ट मॉनसून सीजन शुरू होता है वैसे वैसे ही एक बार फिर भूजल स्तर घटने लगता है. इसकी एक बहुत बड़ी वजह यह भी है कि प्रदेश के मैदानी इलाकों में तेजी से आबादी बढ़ रही है. वहीं, अपने पानी की जरूरत को पूरा करने के लिए लोग बोरिंग का सहारा ले रहे हैं. जिसकी वजह से सीधे तौर पर अनियंत्रित तरह का दोहन हो रहा है.