देहरादूनःआगामी वर्षों में होने वाला पेयजल संकट इस वक्त केंद्र से लेकर राज्यों सरकारों तक चिंता का सबसे बड़ा कारण है. इसी के चलते उत्तराखंड के देहरादून शहर में भी आने वाले कुछ सालों में पेयजल संकट को दर्शाया गया है. केंद्र द्वारा पेयजल संकट से राष्ट्रीय स्तर पर निपटने के लिए जल शक्ति मंत्रालय का गठन किया गया है. जिसके अंतर्गत देहरादून शहर में पेयजल संकट से निपटने के लिए सौंग बांध परियोजना को लिया गया है.
ईटीवी भारत ने इस परियोजना को लेकर ग्राउंड रिपोर्टिंग की और परियोजना के सभी पहलुओं पर पड़ताल की. जिसमें सामने आया कि योजना पर सरकार द्वारा युद्धस्तर पर काम किया जा रहा है, लेकिन प्रभावित क्षेत्र में भी ध्यान देने की जरूरत है.
सौंग बांध क्यों है जरूरी?
सौंग बांध पेयजल योजना उत्तराखंड के भविष्य की चिंता का एक जवाब है. सौंग बांध की अहमियत तब पता चलेगी, जब भविष्य में देश पेयजल संकट के मुहाने पर खड़ा होगा. भविष्य में जो शहर पेयजल संकट के मुहाने पर खड़े हैं, उन में से एक देहरादून भी है. जिसका आंकलन अभी से सरकारों ने कर लिया है.
यही वजह है कि टिहरी और देहरादून जिले की 3 विधानसभाओं के संगम पर इस बांध की नींव को रखा जा रहा है. सौंग बांध के प्रस्तावित प्रोजेक्ट के अनुसार इसकी लागत 1100 करोड़ होगी. सौंग बांध की गहराई 109 मीटर होगी और लंबाई 4 किलोमीटर होगी.
सौंग बांध परियोजना से राजधानी को 24 घंटे पानी मिलेगा. इसकी जद में 10 हेक्टेयर निजी भूमि के साथ कुल 140 हेक्टेयर वन भूमि जलमग्न हो जाएगी. सरकार की मानें तो इस बांध से देहरादून शहर को 150 MLD पानी प्रतिदिन सप्लाई होगा. जिससे देहरादून शहर को 24 घंटे पानी मिल पाएगा.
सौंग बांध प्रभावित क्षेत्र में टिहरी जिले की धनोल्टी विधानसभा, देहरादून जिले की डोइवाला और रायपुर विधानसभा का कुछ हिस्सा आएगा. जिसमें खासतौर से सौंदना, प्लेट, गुड़साल और रगड़ गांव सहित कई गांवों की भूमि इस परियोजना से प्रभावित होगी.
सुविधाओं से वंचित लोगों में जगी उम्मीद
सौंग बांध की जद में न केवल वन भूमि बल्कि सौंग घाटी में बसे कई गांव भी आएंगे. सरकारी आंकड़ों के अनुसार 150 से 200 परिवार इस परियोजना की जद में आएंगे और इन परिवारों के साथ-साथ सौंग घाटी में सदियों से फल-फूल रहा सामाजिक ताना-बाना भी इस योजना के चलते टूट जाएगा. सौंग परियोजना की जद में आने वाली भूमि का निश्चित ही सरकार मुआवजा देगी, लेकिन घाटी में बसे लोगों का कहना है कि इस घाटी से जुड़ी उनकी सामाजिक भावनाओं का मूल्य सरकार नहीं चुका सकती, जोकि एक कड़वा सच है, लेकिन इसके बावजूद भी गांव वालों का कहना है कि अगर प्रदेश हित में उन्हें यह कुर्बानी देनी है तो वे देंगे. लेकिन सरकार उन्हें उनके घर से निकालकर सड़क पर न छोड़े.
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इतना ही नहीं देश की आजादी से अबतक विकास से कोसों दूर इस क्षेत्र के लोगों की उम्मीदें भी जवाब दे चुकी हैं. क्षेत्र में पहले से ही तमाम समस्याओं का अंबार है. क्षेत्र में पहुंचने के लिए संपर्क मार्ग, शिक्षा के लिए स्कूल, चिकित्सा के लिए अस्पताल सहित तमाम तरह की मूलभूत सुविधाओं नहीं हैं. यही कारण है कि लोगों को देहरादून की पेयजल से ज्यादा जरूरी अपनी मूलभूत सुविधाएं लगती हैं. सौंग बांध से प्रभावित ग्रामीणों का कहना है कि सरकार को बांध बनाना है तो बिल्कुल बनाए, देहरादून के लोगों को सुविधाएं देनी है, तो बिल्कुल दे लेकिन थोड़ी उनकी भी सुध ले. ग्रामीणों का कहना है कि क्षेत्र में सड़क नहीं है. बरसात के मौसम में कई महीनों तक संपर्क टूट जाता है. बहरहाल अब बांध को लेकर सरकारी नुमाइंदे क्षेत्र में पहुंच रहे हैं तो लोगों को उम्मीद भी जगी है कि शायद सरकार उनके साथ न्याय करेगी.
युद्धस्तर पर चल रहा है काम
उत्तराखंड सरकार की ओर से ग्रामीणों को उनकी भूमि के मुआवजे को लेकर पूरा आश्वासन दिया जा रहा है. टिहरी गढ़वाल और देहरादून जिले की 3 विधानसभाओं की सीमाओं से सटी सौंग बांध पेयजल परियोजना को लेकर उत्तराखंड सरकार द्वारा कवायद तेज कर दी गई है. सरकारी नुमाइंदों के अनुसार इस परियोजना के पूरे होने के बाद जहां देहरादून शहर के पेयजल संकट से निजात मिलेगी तो वहीं एक पर्यटक केंद्र भी इस बांध के चारों तरफ विकसित होगा जोकि आसपास के लोगों के लिए एक विकास की बयार लेकर आएगा.
बांध परियोजना से जुड़े विस्थापन और मुआवजे के विषय पर उत्तराखंड सरकार के पास अनुभव की कमी नहीं है. टिहरी बांध इसका सबसे बड़ा जीता जागता उदाहरण है, लेकिन उदाहरण कुछ ऐसे भी हैं जिनसे हमें सीखने की जरूरत है. बहरहाल सौंग बांध परियोजना की जरूरत बड़ी है और इसके चलते सरकारी मशीनरी युद्धस्तर पर जुटी हुई है और सब कुछ सामान्य रहा तो अगले कुछ सालों में यहां नजारा बदला हुआ दिखेगा.